झालावाड़. कोरोना के खिलाफ ग्रामीण योद्धाओं की जंग में हम चछलाव ग्राम पंचायत की बात करेंगे जिसे राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे ने गोद ले रखा हैं. वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री आदर्श ग्राम योजना के तहत 2015 में चछलाव ग्राम पंचायत को गोद लिया था. ऐसे में लॉकडाउन के दौर में वसुंधरा राजे की गोद ली हुई इस ग्राम पंचायत के ग्रामीण योद्धाओं ने किस तरह से कोरोना से मुकाबला किया, हम इस खास रिपोर्ट में जानेंगे.
मुख्यमंत्री आदर्श ग्राम योजना के तहत वसुंधरा राजे की ओर से गोद ली गई चछलाव ग्राम पंचायत पिड़ावा पंचायत समिति में आती है. जो झालावाड़ और सुनेल कस्बे के बीच में स्थित है. चछलाव ग्राम पंचायत झालावाड़ से 35 किलोमीटर और सुनेल कस्बे से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. चछलाव ग्राम पंचायत के चार मुख्य गांव चछलाई, चछलाव, पाऊखेड़ी और काल्या खेड़ी हैं. जिनकी कुल जनसंख्या 4 हजार हैं.
यह भी पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के गोद लिए तीतरवासा गांव ने ऐसे लड़ी COVID-19 के खिलाफ जंग
ग्राम पंचायत के सरपंच कमलेश ने बताया कि लॉकडाउन की घोषणा होते ही ग्राम पंचायत में सैनिटाइजर का छिड़काव करवाया गया और लोगों को मास्क भी वितरित किए गए. इसके अलावा लोगों के लिए राशन की व्यवस्था भी करवाई गई. सरपंच ने बताया कि गांव में करीबन 48 लोग गुजरात, जयपुर और कोटा से आए. जिनको होम क्वॉरेंटाइन करवाया गया और 14 दिन तक बाहर नहीं निकलने के निर्देश दिए गए.
गोद लेने का नहीं है कोई फायदा
सरपंच ने बताया कि वसुंधरा राजे ने इस ग्राम पंचायत को गोद ले रखा है, लेकिन कोरोना और लॉकडाउन के दौर में उनके गोद लेने का कोई फायदा नजर नहीं आया है. यहां तक कि ना तो वसुंधरा राजे ने और ना ही उनके बेटे और सांसद दुष्यंत सिंह ने हमारी ग्राम पंचायत की कोई खबर ली है. इसके अलावा कोई कांग्रेसी नेता भी यहां नहीं आया है. ऐसे में ग्राम पंचायत ने अपने खुद के स्तर से ही कोरोना से बचने और लड़ने के उपाय किए हैं.
गांव की महिलाओं ने बताया कि वो तो पहले से ही घूंघट करती है. इसके अलावा बाहर जाते समय मुंह पर कपड़ा बांध लेती है, जिससे कोरोना से बचाव हो जाता है. इसके अलावा ग्राम पंचायत की ओर से समय-समय पर राशन सामग्री की व्यवस्था करवाई गई जिसके चलते लॉकडाउन में अधिक परेशानी नहीं हुई और लोग घरों पर ही रहें.
ग्रामीण कोरोना काल में घरों से नहीं निकले बाहर
ग्रामीणों ने बताया कि उनके एक तरफ तो बड़ा कस्बा सुनेल है, जहां पर अब तक दो कोरोना पॉजिटिव केस आए हैं. वहीं, दूसरी तरफ झालरापाटन कस्बा है जो कि कोरोना संक्रमण का हॉट स्पॉट था. ऐसे में ग्रामीणों के ज्यादातर काम इन्हीं दोनों कस्बे में पड़ते थे, इसके बावजूद लोगों ने संयम रखा और गांव के बाहर नहीं गए. जिसके चलते आज उनका गांव कोरोना से बचा हुआ है.
यह भी पढ़ें- झालावाड़: सड़क हादसे में बाइक सवार की मौत
वहीं, ग्रामीणों ने बताया कि इस दौरान उन्होंने गांव से बाहर जाने वाले अन्य लोगों से भी समझाइश की और बाहर से गांव के अंदर आने वाले लोगों को भी रोका ताकि कोरोना का संक्रमण नहीं फैले. इसके अलावा लॉकडाउन के दौरान सभी लोग घरों पर ही रहे और प्रशासन के बताए गए समय के हिसाब से ही बाजारों में गए. ग्रामीणों ने बताया कि अब जैसे ही लॉकडाउन के नियमों में छूट मिली है तो वे घर से मुंह पर कपड़ा बांधकर निकलते हैं और शहर में जाते हैं तो हेलमेट लगाकर जाते हैं और वापस आने पर साबुन से हाथ धोते हैं. जिससे कोरोना संक्रमण से बचाव हो सके.
गांव के किसानों पर नहीं हुआ लॉकडाउन का असर
गांव के किसानों ने बताया कि उन पर लॉकडाउन का कोई खास असर नहीं हुआ है. वो तो पहले भी गांव में ही रहते हुए खेती का काम करते थे. ऐसे में लॉकडाउन की घोषणा होने के बाद भी वे गांव में ही रहे और खेती का काम करते रहे. बस अब जब खेत और बाहर कहीं जाते हैं तो मुंह पर गमछा या कपड़ा बांध लेते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के गोद लेने का उनको कोई खास फायदा नहीं हुआ है. गोद लेने के समय ही गांव में हॉस्पिटल और पानी की टंकी बनी थी. उसके बाद से ना तो गांव में सड़कें बनी हैं और ना ही कोरोना के समय में कोई राहत मिली है. इस दौरान उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के चलते उनकी खेती में काफी नुकसान भी हुआ है. ऐसे में सरकार को उनके लिए आर्थिक मुआवजे की घोषणा करनी चाहिए.