झालावाड़. कोरोना वायरस के चलते सभी क्षेत्रों को नुकसान हो रहा है. इसी कड़ी में काला सोना यानी अफीम की खेती करने वाले किसान भी हैं. जिन्हें लॉकडाउन की भारी कीमत चुकानी पड़ रही है.
दरअसल नारकोटिक्स विभाग ने झालावाड़ में 1494 किसानों को अफीम की खेती करने के पट्टे दिए हुए हैं. ऐसे में किसानों ने अफीम की अच्छे से खेती भी की. लेकिन देरी से हो रही तुलाई के कारण किसान चिंतित हो रहे हैं. दरअसल हर बार अफीम की तुलाई मार्च के आखिर तक पूरी हो जाती थी. लेकिन लॉकडाउन की वजह से इस बार डेढ़ महीने देरी से अफीम की तुलाई हो रही है. जिसके चलते अफीम का मॉइस्चर खत्म हो रहा है और किसानों के पास रखे-रखे ही अफीम का वजन कम हो रहा है.
बता दें कि अफीम के पौधों को पकने के बाद उसमें से दूध निकालने के लिए चीरा लगाया जाता है और उसी समय उस दूध का वजन किसानों को रजिस्टर में दर्ज करना होता है. ऐसे में किसानों ने चीरा लगाकर दूध निकालने का काम तो तय समय पर कर लिया, लेकिन नारकोटिक्स विभाग अफीम की तुलाई देरी से कर रहा है. जिसके चलते अफीम का वजन कम हो रहा है. ऐसे में अफीम का वजन कम होने से किसानों की चिंताएं बढ़ी हुई है. क्योंकि नारकोटिक्स विभाग किसानों से चीरा लगाते समय दर्ज किए गए वजन के हिसाब से ही अफीम लेता है.
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ऐसे में कम हुआ अफीम का वजन किसानों को मुसीबत में डाल सकता है. किसानों ने बताया कि अफीम का वजन कम हो जाने से नारकोटिक्स विभाग उनका लाइसेंस रद्द कर सकता है. साथ ही कानूनी कार्रवाई की भी आशंका रहती है. वहीं नारकोटिक्स विभाग के अधिकारियों का कहना है कि लॉकडाउन की वजह से तुलाई डेढ़ महीने देरी से हो रही है. लेकिन किसानों की अफीम का वजन कम होने की बात है तो वो तो तुलाई के बाद ही कहा जा सकेगा.