अकलेरा (झालावाड़). इस साल मानसून किसान सहित आम लोगों के साथ खिलवाड़ कर रहा है. बारिश नहीं होने से किसानों की चिंता बढ़ गई है. लोग बारिश के लिए इंद्र देव को मनाने के लिए पूजा-पाठ कर रहे हैं. ग्रामीणों ने गांव बाहर जाकर विधिवत परंपरा अनुसार इंद्र देव के साथ ही माता जी, गणेश जी और तमाम देवी-देवताओं को विधिवत जल चढ़ाया. इसके बाद कच्चे खाने के चूरमा और रोट का भोग लगाया.
कामखेड़ा थाना प्रभारी मदनलाल वर्मा ने बताया कि ग्रामीण अंचल के विभिन्न लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए अपने-अपने खेतों पर जाकर भगवान की पूजा आराधना कर खेतों पर ही भोजन बनाया और खाया.
जिन किसानों ने अपने खेतों में प्री मानसून में बुवाई कर दी थी. अब उनती फसलें सूखने की स्थिति में आ गई हैं. उड़द, मूंग, सोयाबीन, तिल और मक्का की बुवाई हो चुकी है. इस कारण किसानों को फसल के बर्बाद होने की चिंता सता रही है. किसानों द्वारा खेतों में डाले गए बीज अंकुरित तो हुए, लेकिन मिट्टी में नमी नहीं होने की वजह से वह या तो जमीन से बाहर नहीं निकल पाए या फिर निकले तो मुरझाने लगे हैं.
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जिन किसानों के पास सिंचाई के लिए पानी के साधन हैं, वह खेतों में पानी दे रहे हैं. जबकि, अधिकांश किसानों ने फसलें पैदा नहीं होने की उम्मीद में खेतों की दोबारा जुताई शुरू कर दी है. आषाढ़ का महीना निकल गया है और सावन के दस दिन बीत जाने के बाद भी पानी नहीं बरस रहा है. तेज धूप से पौधे सूखने लगे हैं.
किसानों पर कुदरत का कहर
बारिश नहीं होने से खेतों में फसल सूखने लगी है. मक्का और सोयाबीन पर ज्यादा असर हो रहा है. बारिश न होने से आलम यह है कि क्षेत्र की 25 फीसदी फसल का नुकसान किसान को हो चुका है और यदि अगले दो तीन दिनों में बारिश नहीं होती है तो यह नुकसान 80 से 90 फीसदी पहुंच जाएगा. क्षेत्र के कई स्थानों पर फसलों में पीलापन आना शुरू हो गया है.
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किसानों के भारी नुकसान की आशंका
इतने लम्बे सूखे के बाद अब भले ही अच्छी बारिश हो जाए, लेकिन किसान का नुकसान तो तय है, क्योंकि इस एक माह में कम बारिश से पौधों की समुचित बढ़वार नहीं हो पाई और हर वर्ष जितनी फसल होती थी, इस बार उससे कम होगी. किसानों के नुकसान को लेकर किसान गिरिराज प्रसाद शर्मा ने बताया कि अभी तक जो बारिश नहीं हुई है, उससे किसानों को 25 फीसदी नुकसान हो चुका है.