झालावाड़. किसानों ने अपनी पारंपरिक खेती को छोड़कर अधिक पैदावार के लालच में खेतों में रासायनिक तत्वों का प्रयोग करना प्रारंभ किया. जिसके कारण किसानों को पैदावार तो मिल रही है, लेकिन जमीन की उत्पादन क्षमता कम होती जा रही है. साथ ही उत्पन्न खाद्यान्न में पोषक तत्वों की भी कमी भी देखी जा रही है. जिसका प्रभाव सीधे तौर पर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ता है. ऐसे में स्वास्थ्य को लेकर बढ़ती चिंताओं को देखते हुए लोग वापस जैविक खेती की ओर बढ़ने लगे हैं. जिससे जैविक खेती करने वाले किसान काफी मालामाल भी हो रहे हैं.
ऐसा ही कुछ झालावाड़ के अकलेरा तहसील के बिंदायगी गांव में देखने को मिल रहा है. जहां पर जैविक खेती करने से प्रगतिशील किसान हंसराज मीणा संपन्न होते जा रहे हैं. साथ ही जैविक खेती में नित नए प्रयोग भी कर रहे हैं. ऐसे में हंसराज मीणा ने क्षेत्र में पहली बार जैविक काले गेंहू की खेती करने का कारनामा किया है. जिससे किसान आर्थिक रूप से सम्पन्न भी हो रहा है और लोगों को स्वास्थ्य का लाभ भी पहुंचा रहा है.
आमतौर पर रबी के सीजन में सभी किसान सामान्य गेहूं की खेती करते हैं. जिसमें रासायनिक तत्वों का भरपूर इस्तेमाल भी करते हैं. अच्छी उपज हो जाने के बाद भी उनको कुछ खास लाभ नहीं मिल पाता है. इसी को देखते हुए प्रगतिशील किसान हेमराज मीणा ने जैविक काले गेहूं की खेती करने का सोचा. जिसके बाद उन्होंने तीन बीघा में काला गेहूं बोया. जिसका उनको जबरदस्त परिणाम देखने को मिल रहा है.
प्रगतिशील किसान हंसराज मीणा ने बताया कि सामान्य गेहूं का भाव जहां 2000 रुपए क्विंटल रहता है. वहीं काले गेहूं का भाव करीब 5 से 6 हजार रूपए क्विंटल रहता है. इसके अलावा इसमें प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व भी रहते हैं. सामान्य गेहूं के मुकाबले काले गेहूं में 60% अधिक आयरन होता है. इसके अलावा जिंक और प्रोटीन भी भरपूर मात्रा में होता है. काला गेहूं साधारण गेहूं से ज्यादा पौष्टिक होता है और कैंसर, शुगर, मोटापा, कोलेस्ट्राल, दिल की बीमारी, तनाव सहित कई बीमारियों में फायदेमंद रहता है. उन्होंने बताया कि इसकी खेती में वो रासायनिक तत्वों का बिल्कुल भी इस्तेमाल भी नहीं करते हैं और पूरी तरह से जैविक खेती करते हैं, जिससे आसपास के क्षेत्र में उनकी मांग होने लगी है.
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उन्होंने बताया कि सामान्य गेहूं की खेती के मुकाबले इसमें करीब 20 से 25 दिन अधिक लगते हैं. इसके अलावा सामान्य गेहूं 4 पानी में तैयार हो जाता है. वहीं काले गेहूं में 6 बार पानी पिलाना पड़ता है. उसके बावजूद सामान्य गेहूं के मुकाबले काले गेहूं की फसल में किसान को ढाई गुना अधिक आमदनी हुई है. इसके साथ ही सरकार से भी उनको 11000 का अनुदान मिला है. ऐसे में वो आगे भी वह जैविक खेती में इस प्रकार के प्रयोग करते रहेंगे.