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नवरात्रि विशेष: हाड़ौती और मालवा क्षेत्र में श्रद्धा का बड़ा केंद्र राता देवी मंदिर

शारदीय नवरात्रि की शुरूआत हो गई है. शक्ति की देवी मां दुर्गा की अराधना के इस पर्व को लेकर लोगों में उत्साह है. मां दुर्गा की उपासना के इस पर्व पर आपको हाड़ौती और मालवा क्षेत्र में श्रद्धा का बड़ा केंद्र राता देवी धाम लेकर चलते है. देखिए नवरात्रि स्पेशल..

rata devi temple, राता देवी मंदिर
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Published : Sep 29, 2019, 4:19 PM IST

झालावाड़. शहर से 32 किलोमीटर दूर मुकुंदरा की पहाड़ियों के बीच में राता देवी मंदिर स्थित है. जो कि हाड़ौती और मालवा क्षेत्र में श्रद्धा का बड़ा केंद्र है. यहां पहुंचने के लिए सर्पीली सड़कों से होते हुए गुजरना होता है. मंदिर के आसपास की हरियाली, पहाड़ी व तालाब को देखकर हर कोई रोमांचित हो उठाता है.

हाड़ौती और मालवा क्षेत्र में श्रद्धा का बड़ा केंद्र राता देवी मंदिर

राता देवी खींची राजवंश की कुलदेवी मानी जाती है. ऐसे में नवरात्रों में सबसे पहले आरती खिलचीपुर राज परिवार के द्वारा ही की जाती है. मूर्तियों का विशेष श्रृंगार के दौरान पुलिस के द्वारा सलामी दी जाती है. इस मंदिर के गर्भ गृह में राता देवी के पास ही में अन्नपूर्णा माता की मूर्ति भी स्थापित की हैं. ऐसे में यह मंदिर राजपूतों के साथ ही ब्राह्मणों के भी श्रद्धा का केंद्र है. गर्भ ग्रह में देवियों के अलावाकाल भैरव की मूर्ति स्थापित है.

पढ़ें- नवरात्रि विशेष: शिला माता मंदिर की रोचक कहानी...बंगाल से लाकर राजा मानसिंह प्रथम ने आमेर में की स्थापित

इस मंदिर के इतिहास पर अगर नजर डालें तो राता देवी गागरोन के राजा अचलदास खींची की बहन थी. ऐसे में युद्ध के दौरान जब खींची राजपरिवार महल छोड़कर जा रहा था. तभी रा तादेवी यहीं पर प्रतिमा के रूप में स्थापित हो गयी. जिसके बाद लोगों के द्वारा इनकी पूजा की जाने लगी और सन 2000 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया. राता देवी मंदिर से कुछ ही दूरी पर उनके भाई अचलदास खींची का भी मंदिर बनाया गया है.

पढ़ें- नवरात्रि विशेष: राजस्थान में देवी का एकमात्र मंदिर जहां हर दिन दूध से होता है अभिषेक...5000 साल से भी पुराना है इतिहास

नवरात्रों के दौरान यहां पर भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. जिनकी संख्या हजारों में होती है. यहां पर नवरात्रों में 9 दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है. मंदिर में अष्टमी और नवमी की पूजा खींची राजवंश के राजपरिवार के द्वारा की जाती है.

झालावाड़. शहर से 32 किलोमीटर दूर मुकुंदरा की पहाड़ियों के बीच में राता देवी मंदिर स्थित है. जो कि हाड़ौती और मालवा क्षेत्र में श्रद्धा का बड़ा केंद्र है. यहां पहुंचने के लिए सर्पीली सड़कों से होते हुए गुजरना होता है. मंदिर के आसपास की हरियाली, पहाड़ी व तालाब को देखकर हर कोई रोमांचित हो उठाता है.

हाड़ौती और मालवा क्षेत्र में श्रद्धा का बड़ा केंद्र राता देवी मंदिर

राता देवी खींची राजवंश की कुलदेवी मानी जाती है. ऐसे में नवरात्रों में सबसे पहले आरती खिलचीपुर राज परिवार के द्वारा ही की जाती है. मूर्तियों का विशेष श्रृंगार के दौरान पुलिस के द्वारा सलामी दी जाती है. इस मंदिर के गर्भ गृह में राता देवी के पास ही में अन्नपूर्णा माता की मूर्ति भी स्थापित की हैं. ऐसे में यह मंदिर राजपूतों के साथ ही ब्राह्मणों के भी श्रद्धा का केंद्र है. गर्भ ग्रह में देवियों के अलावाकाल भैरव की मूर्ति स्थापित है.

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इस मंदिर के इतिहास पर अगर नजर डालें तो राता देवी गागरोन के राजा अचलदास खींची की बहन थी. ऐसे में युद्ध के दौरान जब खींची राजपरिवार महल छोड़कर जा रहा था. तभी रा तादेवी यहीं पर प्रतिमा के रूप में स्थापित हो गयी. जिसके बाद लोगों के द्वारा इनकी पूजा की जाने लगी और सन 2000 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया. राता देवी मंदिर से कुछ ही दूरी पर उनके भाई अचलदास खींची का भी मंदिर बनाया गया है.

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नवरात्रों के दौरान यहां पर भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. जिनकी संख्या हजारों में होती है. यहां पर नवरात्रों में 9 दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है. मंदिर में अष्टमी और नवमी की पूजा खींची राजवंश के राजपरिवार के द्वारा की जाती है.

Intro: झालावाड़ से 32 किलोमीटर दूर मुकुंदरा की पहाड़ियों के बीच में राता देवी का मंदिर स्थित है जो कि हाड़ौती और मालवा क्षेत्र में श्रद्धा का बड़ा केंद्र है।

स्टोरी से सम्बंधित रॉ फुटेज भिजवाए गए है। स्क्रिप्ट तैयार करके भेजी गई है। Body:शक्ति की उपासना के पर्व नवरात्रों की शुरुआत होने जा रही है जिसमें पूरे देश में घट स्थापना के साथ देवी के विभिन्न रूपों की पूजा की जाएगी। ऐसे में हम पहुंचे हैं राजस्थान के झालावाड़ की राता देवी मंदिर में जो कि मालवा व हाडोती क्षेत्र का सबसे प्रसिद्ध मंदिर माना जाता है। यह मंदिर झालावाड़ मुख्यालय से तकरीबन 32 किलोमीटर दूर मुकुंदरा की सुंदर पहाड़ियों के बीच में बसा हुआ है जहां पहुंचने के लिए ससर्पीली सड़कों से होते हुए गुजरना होता है। मंदिर के आसपास की हरियाली, पहाडी व तालाब को देखकर हर कोई रोमांचित हो उठाता है। रातादेवी खींची राजवंश की कुलदेवी मानी जाती है ऐसे में नवरात्रों में सबसे पहले आरती खिलचीपुर राज परिवार के द्वारा ही की जाती है। मूर्तियों का विशेष श्रंगार के दौरान पुलिस के द्वारा सलामी दी जाती है। इस मंदिर के गर्भ गृह में रातादेवी के पास ही में अन्नपूर्णा माता की मूर्ति भी स्थापित की हैं। ऐसे में यह मंदिर राजपूतों के साथ ही ब्राह्मणों के भी श्रद्धा का केंद्र है। गर्भ ग्रह में देवियों के अलावाकाल भैरव की मूर्ति स्थापित है।

इस मंदिर के इतिहास पर अगर नजर डालें तो राता देवी गागरोन के राजा अचलदास खींची की बहन थी। ऐसे में युद्ध के दौरान जब खींची राजपरिवार महल छोड़कर जा रहा था तभी रातादेवी यहीं पर प्रतिमा के रूप में स्थापित हो गयी। जिसके बाद लोगों के द्वारा इनकी पूजा की जाने लगी तथा सन 2000 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया। रातादेवी कि मंदिर से कुछ ही दूरी पर उनके भाई अचलदास खींची का भी मंदिर बनाया गया है।

नवरात्रों के दौरान यहां पर भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। जिनकी संख्या हजारों में होती है। यहां पर नवरात्रों में 9 दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। मंदिर में अष्टमी और नवमी की पूजा खींची राजवंश के राजपरिवार के द्वारा की जाती है।Conclusion:बाइट - राजूलाल नाथ (पुजारी)
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