झालावाड़. आज के इस वैज्ञानिक दौर में नए-नए प्रयोगों से समाज में कुछ अलग करने का प्रयास किया जा रहा है. जिनसे आगे आने वाली पीढ़ी भी लाभान्वित होगी. ऐसा ही एक प्रयोग है हाइड्रोपोनिक खेती का. यूं तो खेती की यह पद्धति पुरानी ही मानी जाती हैं, लेकिन इसका प्रचलन बिलकुल न के बराबर है.
ऐसे में झालावाड़ की उद्यानिकी और वानिकी कॉलेज में हाइड्रोपोनिक खेती का प्रयोग सफल होता हुआ नजर आ रहा हैं. जिसमें बिना मिट्टी के पानी में ही पौधे उगाए गए हैं और न सिर्फ पौधे उग आए हैं बल्कि उनके फल भी लगने लगे हैं.
पढ़ेंः पानी के तेज बहाव की चपेट में आई कार...ग्रामीणों ने कड़ी मशक्कत के बाद चालक की बचाई जान
उद्यानिकी और वानिकी कॉलेज के डीन आईबी मौर्य ने बताया कि हाइड्रोपोनिक खेती का सीधा सा अर्थ है कम क्षेत्रफल और संसाधनों में अधिक उत्पादन. इसे बिना मिट्टी से की जाने वाली खेती भी कहा जाता है. हाइड्रोपोनिक खेती में बिना जमीन के छोटी सी जगह में पानी की बचत करते हुए अधिक उत्पादन किया जाता है. जिसके चलते आज के दौर में हाइड्रोपोनिक खेती का प्रचलन काफी तेजी से बढ़ रहा है. इसमें सिर्फ पानी और पोषक तत्वों के माध्यम से ही पूरी खेती की जाती है.
पढ़ेंः झालावाड़ अस्पताल में परिजनों और अधीक्षक के बीच हुई तीखी नोंक-झोंक
हाइड्रोपोनिक खेती की पूरी प्रक्रिया
इसके लिए जरूरी संसाधनों में वाटर टैंक, पानी की मोटर, पानी में हवा पहुंचाने के लिए इरेटर की जरूरत पड़ती है. इनको व्यवस्थित रूप से तैयार करने के बाद पौधों को एक प्लास्टिक के डिब्बे में जिसमें साइड और नीचे से छेद रहते हैं उनमें रखा जाता है. उनको बनाए गए ढांचे में रख दिया जाता है. हाइड्रोपोनिक का ढांचा सुविधानुसार हॉरिजॉन्टल और वर्टिकल दोनों तरीके से बनाया जा सकता है. इनमें हर घंटे पानी की सप्लाई की जाती है. मौर्य ने बताया कि पौधों के लिए 16 तरह के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है. जिसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटाश और सल्फर है. जिनको जरूरत के अनुसार सीधे पानी में डाल दिया जाता है. जो पौधों में पहुंच जाते हैं.
उन्होंने बताया कि आज के दौर में मृदा में पोषक तत्वों की कमी होती जा रही है जिसके चलते गुणवत्तापूर्ण उत्पादन नहीं मिल पाता है. लेकिन हाइड्रोपोनिक खेती में पोषक तत्वों को आसानी से जरूरत के अनुसार सीधा पौधे के अंदर पहुंचा दिया जाता है. मौर्य ने बताया कि हाइड्रोपोनिक खेती के दौरान सबसे ज्यादा सावधानी पीएच और टीडीएस की मात्रा में रखा जानी चाहिए.
पढ़ेंः गणपति विसर्जन के दौरान मुस्लिमों ने शरबत और पानी पिलाकर की सेवा
पौधों को जो पानी दिया जा रहा है उसका पीएच 7 से ज्यादा नहीं होना चाहिए और टीडीएस की मात्रा 1500 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि यह प्रयोग भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली की तरफ से राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा परियोजना के अंतर्गत युवाओं को नई तकनीकी के बारे में सिखाने के उद्देश्य से किया जा रहा है. इसके तहत झालावाड़ में पहले चरण में मानसून की ऋतु को देखते हुए 7 फसलों को गाया गया है. जिनमें टमाटर, खीरा, मिर्च, पालक, धनिया, तुलसी व गोभी की खेती की जा रही है जिनमें फल भी लगने लग गए हैं.
हाइड्रोपोनिक खेती से होने वाले फायदें
इसमें सबसे बड़ा फायदा पानी का होता है. सामान्य खेती में जहां एक बीघा के लिए 20 लाख लीटर की पानी जरूरत होती है वहीं हाइड्रोपोनिक खेती में 2.50 लाख लीटर पानी से ही काम हो जाता है. वहीं दूसरा सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह खेती काफी कम स्थान में ही हो जाती है. इसके लिए अधिक जमीन की जरूरत नहीं होती है. साथ ही समय और मेहनत की भी बचत होती है. तीसरा सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें पोषक तत्व सीधे फसलों तक पहुंच जाते हैं. हानिकारक बैक्टीरिया का इसमें कोई इफेक्ट नहीं होता है. जिससे हमारे स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.