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झालावाड़ः महकने से पहले ही उजड़ गई फूलों की बगियां, जानवरों का चारा बन रहे खिले फूल

सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रमों की शोभा बढ़ाने में फूलों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है. फूलों के बिना हर कार्यक्रम फीका नजर आता है, लेकिन कोरोना और लॉकडाउन के चलते फूलों की बगियां उजड़ने लगीं है.

झालावाड़ खबर ,Jhalawar news
उजड़ गई फूलों की बगियां
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Published : Apr 23, 2020, 3:56 PM IST

झालावाड़. कोरोना वायरस के चलते घोषित किये गए लॉकडाउन में झालावाड़ के सैकड़ों किसानों के खेत भले ही रंग बिरंगे फूलों से भरे हुए हो, लेकिन किसानों के चेहरों के रंग उड़े हुए नजर आ रहे हैं. इन किसानों में मुख्य रूप से माली समाज के लोग हैं. जिनका पारंपरिक काम फूलों की खेती करना ही होता है.

उजड़ गई फूलों की बगियां

किसानों पर संकट

झालावाड़ में करीबन 600 माली परिवार हैं, जो फूलों की खेती करते हैं और पूर्णतया उसी पर निर्भर रहते हैं. लेकिन लॉकडाउन की वजह से इन परिवारों के सामने बड़ा संकट खड़ा होता जा रहा है. जहां खेतों में फूल तो पूरी तरह से खिल गए है, लेकिन फूलों की बिक्री नहीं हो पाने के कारण किसानों के चेहरे मुरझा गए हैं. जो फूल मंदिरों और कार्यक्रमों की सुंदरता बढ़ाने के काम आते थे. अब वे फूल जानवरों का चारा बन रहे हैं.

पढ़ेंः झालावाड़ में कार्ड होते हुए भी राशन से वंचित हैं लोग, चालू करवाने के लिए लगा रहे चक्कर

मुरझा रहे फूल

किसानों ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से किसी प्रकार के सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रम नहीं हो पा रहे है. साथ ही नवरात्रि और हनुमान जयंती जैसे त्यौहार भी नहीं मनाए गए और शादियां भी नहीं हो रही है. जिससे उनके फूलों के व्यवसाय पर भयंकर प्रभाव पड़ा है. फूलों की न तो मंडी में बिक्री हो पा रही है और न ही कोई ग्राहक मिल पा रहा है. ऐसे में अब तो किसान फूलों को तोड़ना भी मुनासिब नहीं समझ रहें हैं. जिससे फूल पौधों पर लगे ही मुरझाने लगे हैं.

जानवरों का बन रहे चारा

आपको बता दें कि झालावाड़ के झालरापाटन और खानपुर क्षेत्र में बड़ी तादाद में फूलों की खेती होती है. फूलों में मुख्य रूप से नौरंगा, गुलाब, मोगरा और गेंदा होता है, जो यहां से मध्यप्रदेश और राजस्थान के अनेक जिलों में भेजा जाता है. लेकिन लॉकडाउन की वजह से इस बार फूल खेतों में ही मुरझा रहे हैं और जानवरों के चारे के रूप में काम में लिए जा रहे हैं.

झालावाड़. कोरोना वायरस के चलते घोषित किये गए लॉकडाउन में झालावाड़ के सैकड़ों किसानों के खेत भले ही रंग बिरंगे फूलों से भरे हुए हो, लेकिन किसानों के चेहरों के रंग उड़े हुए नजर आ रहे हैं. इन किसानों में मुख्य रूप से माली समाज के लोग हैं. जिनका पारंपरिक काम फूलों की खेती करना ही होता है.

उजड़ गई फूलों की बगियां

किसानों पर संकट

झालावाड़ में करीबन 600 माली परिवार हैं, जो फूलों की खेती करते हैं और पूर्णतया उसी पर निर्भर रहते हैं. लेकिन लॉकडाउन की वजह से इन परिवारों के सामने बड़ा संकट खड़ा होता जा रहा है. जहां खेतों में फूल तो पूरी तरह से खिल गए है, लेकिन फूलों की बिक्री नहीं हो पाने के कारण किसानों के चेहरे मुरझा गए हैं. जो फूल मंदिरों और कार्यक्रमों की सुंदरता बढ़ाने के काम आते थे. अब वे फूल जानवरों का चारा बन रहे हैं.

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मुरझा रहे फूल

किसानों ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से किसी प्रकार के सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रम नहीं हो पा रहे है. साथ ही नवरात्रि और हनुमान जयंती जैसे त्यौहार भी नहीं मनाए गए और शादियां भी नहीं हो रही है. जिससे उनके फूलों के व्यवसाय पर भयंकर प्रभाव पड़ा है. फूलों की न तो मंडी में बिक्री हो पा रही है और न ही कोई ग्राहक मिल पा रहा है. ऐसे में अब तो किसान फूलों को तोड़ना भी मुनासिब नहीं समझ रहें हैं. जिससे फूल पौधों पर लगे ही मुरझाने लगे हैं.

जानवरों का बन रहे चारा

आपको बता दें कि झालावाड़ के झालरापाटन और खानपुर क्षेत्र में बड़ी तादाद में फूलों की खेती होती है. फूलों में मुख्य रूप से नौरंगा, गुलाब, मोगरा और गेंदा होता है, जो यहां से मध्यप्रदेश और राजस्थान के अनेक जिलों में भेजा जाता है. लेकिन लॉकडाउन की वजह से इस बार फूल खेतों में ही मुरझा रहे हैं और जानवरों के चारे के रूप में काम में लिए जा रहे हैं.

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