झालावाड़. महान भारतीय दार्शनिक, विद्वान और राजनीतिज्ञ डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जन्मजयंती के उपलक्ष्य में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है. यह दिन भारत का भविष्य कहे जाने वाले विद्यार्थियों के शिक्षकों को समर्पित रहता है. वहीं, भारत में शिक्षा को सबसे पवित्र पेशा माना गया है. इसीलिए देश में शिक्षा को व्यवसाय की नहीं, बल्कि सेवा की श्रेणी में रखा गया है, ऐसे में हम निजी स्कूलों के शिक्षकों के बारे में बात करेंगे जो कम सुविधाओं और वेतन के बावजूद देश का भविष्य संवारने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. लेकिन कोरोना काल में उनको सबसे ज्यादा परेशानियां उठानी पड़ रही हैं.
झालावाड़ जिले में करीब 700 प्राइवेट स्कूल हैं, जिनमें लगभग 10 हजार शिक्षक शिक्षण कार्य करते हैं. प्राइवेट शिक्षक बेहद कम तनख्वाह में बच्चों के जीवन का बेहद महत्वपूर्ण कार्य करते हैं. लेकिन कोरोना काल में सबसे ज्यादा प्राइवेट शिक्षकों की स्थिति को ही नजर अंदाज किया जा रहा है.
शिक्षकों का कहना है कि शिक्षक दिवस उनके लिए वर्ष में सबसे खास दिन होता है. लेकिन पहली बार उनको इसे काला दिवस के रूप में मनाना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि कोरोना के कारण जब सारी गतिविधियां बंद हो गई तो उनके निजी विद्यालय भी बंद कर दिए गए. शुरू में तो उनको सैलरी देने का आश्वासन दिया गया, लेकिन उसके बाद उनको सैलरी देना भी पूरी तरह से बंद कर दिया गया है. इससे उनका जीवन यापन करना भी मुश्किल हो गया है.
लॉकडाउन के कारण उनकी सारी बचत भी खत्म हो गई है और आगामी दिनों में भी उनको स्कूल खुलते हुए नजर नहीं आ रहे हैं. शिक्षकों ने बताया कि इसको लेकर जब स्कूल संचालकों से बात की जाती है तो उनके द्वारा या तो स्कूल से निकाल देने की धमकी दी जाती है या फिर बहुत ही बुरे तरीके से बर्ताव किया जाता है, जिसके चलते शिक्षक मानसिक रूप से भी प्रताड़ना का शिकार हो रहे हैं.
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शिक्षकों ने बताया कि सरकार के ऊपर स्कूल संचालक हमारे नाम से दबाव बना रहे हैं और कह रहे हैं कि शिक्षकों को सैलरी देनी है. लेकिन शिक्षकों को स्कूल संचालकों के द्वारा फूटी कौड़ी भी नहीं दी जा रही है. स्कूल संचालकों को तो सरकार की तरफ से आरटीई के पैसे भी दिए जा रहे हैं. लेकिन, शिक्षकों के लिए सरकार कोई व्यवस्था नहीं कर रही है.
शिक्षकों ने बताया कि सरकार की तरफ से शैक्षणिक संस्थान खोलने को लेकर कोई स्पष्ट गाइडलाइन नहीं आ रही है. हर बार बस स्कूल खोलने की तारीख एक महीने तक बढ़ा दी जाती है, जिसके चलते शिक्षकों का आर्थिक स्थिति खराब होती जा रही है. ऐसे में शिक्षकों की मांग है कि सरकार के द्वारा या तो उन्हें आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाई जाए या फिर जल्द से जल्द शैक्षणिक संस्थान खोलने के आदेश दिए जाएं. शिक्षकों का कहना है कि ऐसा नहीं करने की स्थिति में शिक्षक आत्महत्या को मजबूर हो सकते है.
गौरतलब है कि कोरोना काल लगभग सभी वर्गों की व्यवस्थाएं धीरे-धीरे पटरी पर लौटती हुई नजर आ रही है. लेकिन बच्चों के जीवन में उजाला लाने वाले शिक्षकों के जीवन में अभी भी अंधेरा ही छाया हुआ है. कोरोना के कारण शिक्षकों की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर हो चुकी है, जिसकी वजह से उनका घर चला पाना भी दुभर हो गया है.