मनोहरथाना (झालावाड़). कार्तिक महीने की पूर्णिमा पर स्नान का विशेष महत्व होता है. इस दिन पुण्य प्राप्ति के लिए लोग गंगा में डुबकी लगाते हैं. साथ ही मां गंगा की पूजा-अर्चना भी करते हैं. स्नान के बाद भक्त बहती गंगा में दीप दान करते हैं. मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा में नहाने से पुण्य प्राप्त होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा विशेष फल देने वाली होती है. जो भी भक्त सच्चे मन और विश्वास के साथ गंगा में डुबकी लगाते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं.
इस कार्तिक पूर्णिमा के पावन पर्व पर झालावाड़ जिले के मनोहरथाना में श्रीराम संध्याघाट पर आस्था और श्रद्धा का नजारा दिखा. जहां हजारों श्रद्धालु घाटों पर स्नान के लिए पहुंचे. श्रीराम संध्याघाट में कार्तिक पूर्णिमा के दिन सूर्य की पहली किरण के साथ ही श्रद्धालुओं ने नदी में आस्था की डुबकी लगाना शुरू कर दिया. सभी ने आस्था और विश्वास का प्रतीक मानते हुए डुबकी लगाई और पूजा आराधना की. साथ ही गौ माता को विभिन्न प्रकार के व्यंजन, मिष्ठान्न और चारा खिलाकर पुण्य प्राप्त किया.
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कार्तिक पूर्णिमा पर 7 दिवसीय मेले का आयोजन
कार्तिक पूर्णिमा पर आने वाले सभी श्रद्धालुओं के लिए यहां 7 दिवसीय मेला आयोजित किया गया. जिसमें विभिन्न प्रकार की दुकान और तरह-तरह के झुले, मेले में आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. वहीं सर्दी के माहौल को देखते हुए अधिकतर बाजारों में ऊनी कपड़ों की खरीदारी ज्यादा हुई. इस बार भी मेले में सर्दी के मौसम को देखते हुए लोगों ने जमकर खरीदारी का लुफ्त उठाया. यह मेला हाड़ौती संभाग के ग्रामीण स्तर पर सबसे बड़ा मेला माना जाता है. जिसमें राजस्थान और मध्यप्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के लोग कार्तिक पूर्णिमा के दिन पहुंचते हैं. वहीं मेला प्रशासन द्वारा सभी व्यवस्थाएं चाक-चौबंद रखी गई हैं.
गंगा में स्नान के साथ की जाती है विष्णु और शिव की पुजा
स्कंद पुराण की माने तो आज के दिन स्वर्ग से देवतागण धरती पर आते हैं. इसीलिए भोले नाथ की नगरी में गंगा में स्नान और पूजन करने से शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु भी प्रसन्न होते हैं और भक्तों को मोक्ष मिलता है. कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर श्रीराम संध्याघाट पर श्री श्री 1008 रामानुज संप्रदाय संत और क्षेत्र से आए हुए साधु संत पहला स्नान करते हैं.
इसी दिन विष्णु भगवान ने लिया था ये अवतार
विष्णु के भक्तों के लिए यह दिन इसलिए खास है क्योंकि भगवान विष्णु का पहला अवतार इसी दिन हुआ था. प्रथम अवतार में भगवान विष्णु मत्स्य यानी मछली के रूप में धरती पर आए थे. भगवान को यह अवतार वेदों की रक्षा, प्रलय के अंत तक सप्तऋषियों, अनाजों और राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था. इससे सृष्टि का निर्माण कार्य फिर से आसान हुआ.
इस वजह से कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं
शिव भक्तों के अनुसार इसी दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का संहार किया था. इससे देवगण बहुत प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने शिव जी को त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेक नामों में से एक है. इसलिए इसे 'त्रिपुरी पूर्णिमा' भी कहते हैं.
कुंवारी कन्याएं रखती है मौन वर्त
कार्तिक पूर्णिमा पर कुंवारी कन्या और सभी श्रद्धालु श्रद्धा और विश्वास के साथ गंगा स्नान के लिए पहुंचते हैं. वहीं कुंवारी कन्या कार्तिक पूर्णिमा के दिन मोक्ष दायिनी गंगा में पहला स्नान करती है. ऐसा कहा जाता है कुंवारी कन्या सुख, समृद्धि और अच्छे वर प्राप्ति के लिए सवा महीने तक लगातार मौन व्रत धारण करके यहां स्नान करने के लिए आती है.