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स्पेशल: ब्रिटिश स्थापत्य कला का अद्भुत उदारहण यह नहर हो रही 'दुर्दशा' का शिकार - Built building without permission

झालावाड़ के गांवड़ी तालाब की ऐतिहासिक नहर इन दिनों दुर्दशा की शिकार हो रही है. बता दें कि निजी स्कूल और लोगों द्वारा नहर को तोड़कर रास्ता निकाल लिया गया है और बिना अनुमति के ही निजी स्कूल द्वारा भवन निर्माण भी कर लिया गया है. वहीं प्रशासन का कहना है अगर ऐसा है तो स्कूल संचालक और लोगों पर कठोर कार्रवाई की जाएगी.

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झालावाड़ के गांवड़ी तालाब की ऐतिहासिक नहर हो रही दुर्दशा की शिकार
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Published : Dec 17, 2019, 9:55 AM IST

झालावाड़. ऐतिहासिक दृष्टि से झालावाड़ काफी समृद्ध जिला माना जाता है. यहां पर वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल गागरोन किले जैसी अनेक ऐसी ऐतिहासिक धरोहरें हैं. जो पूरे विश्व में द्वितीय और अनूठी हैं. ऐसी ही एक ऐतिहासिक धरोहर है, ब्रिटिश स्थापत्य कला में बनी गांवड़ी तालाब की नहर. स्थानीय भाषा में इसे धोरा कहा जाता है.

बता दें कि गांवड़ी तालाब की नहर का निर्माण 19वीं शताब्दी के पहले दशक में करवाया गया था. ये नहर झालावाड़ शहर के रेलवे स्टेशन रोड पर मौजूद है और मिनी सचिवालय से महज 500 मीटर की दूरी पर स्थित है. प्रशासनिक अधिकारियों के मुख्यालय के इतनी नजदीक होने के बावजूद भी नहर की देखभाल कोसों दूर है, क्योंकि एक निजी स्कूल के द्वारा इस नहर को मनचाहे तरीके से तोड़कर इस पर से रास्ता निकाल लिया गया और अतिक्रमण कर लिया गया है. वहीं प्रशासन आंखे मूंद कर बैठा हुआ है.

झालावाड़ के गांवड़ी तालाब की ऐतिहासिक नहर हो रही दुर्दशा की शिकार

आपको बता दें कि निजी स्कूल के दुस्साहस को देखकर कुछ स्थानीय लोगों ने भी नहर पर से रास्ते निकाल लिए हैं. ईटीवी भारत ने जब इस मामले की गंभीरता से लिया और नगर परिषद से जवाब मांगा की नहर पर से रास्ता निकालने की और निर्माण करने की स्वीकृतियां किस-किस को मिली हई है तो चौंका देने वाली बात सामने आयी.

नगर परिषद द्वारा निजी स्कूल को न तो नहर के ऊपर से रास्ता निकालने की स्वीकृति दी गई है और न ही नहर के आसपास निर्माण की. उसके बावजूद निजी स्कूल के संचालक ने मनमर्जी करते हुए नहर के ऊपर निर्माण कर लिया और नहर को तोड़ते हुए उस पर से रास्ता भी निकाल लिया है.

इस मामले को लेकर जब हमने जिला कलेक्टर सिद्धार्थ सिहाग से बात की तो उनका कहना था कि ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण को लेकर जिला प्रशासन गंभीर है. ऐसे में अगर ऐतिहासिक नहर को तोड़ने व इसके ऊपर अतिक्रमण का मामला है तो भले ही वह कोई व्यक्ति हो या कोई भी स्कूल, उनपर कठोर कार्रवाई की जाएगी.

यह भी पढ़ें : CAA : असम में सुधर रहे हालात, हटेगा कर्फ्यू, इंटरनेट सेवाएं होंगी बहाल

नहर का इतिहास...

इतिहासकार ललित शर्मा ने बताया कि इस नहर का निर्माण 19वीं शताब्दी के पहले दशक में तत्कालीन राजा राणा भवानी सिंह ने करवाया था. उस दौरान झालावाड़ एक छावनी हुआ करती थी और तालाब में से पहले रेहट से पानी निकाला जाता था. इसी नहर के माध्यम से छावनी में पानी की व्यवस्था की जाती थी.

ब्रिटिश स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण...

यह नहर ब्रिटिश स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है. पूरे राजस्थान में एकमात्र झालावाड़ में ही इस तरह की नहर मौजूद है. ये नहर ऐतिहासिक और पर्यावरण की दृष्टि से बहुत ही महत्ती धरोहर है और शुरुआत में ये नहर लगभग 2 किलोमीटर लंबी हुआ करती थी, लेकिन बाद में अतिक्रमण के चलते लोगों ने इसे तोड़ना शुरू कर दिया. ऐसे में इसका संरक्षण झालावाड़ के ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत जरूरी है.

झालावाड़. ऐतिहासिक दृष्टि से झालावाड़ काफी समृद्ध जिला माना जाता है. यहां पर वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल गागरोन किले जैसी अनेक ऐसी ऐतिहासिक धरोहरें हैं. जो पूरे विश्व में द्वितीय और अनूठी हैं. ऐसी ही एक ऐतिहासिक धरोहर है, ब्रिटिश स्थापत्य कला में बनी गांवड़ी तालाब की नहर. स्थानीय भाषा में इसे धोरा कहा जाता है.

बता दें कि गांवड़ी तालाब की नहर का निर्माण 19वीं शताब्दी के पहले दशक में करवाया गया था. ये नहर झालावाड़ शहर के रेलवे स्टेशन रोड पर मौजूद है और मिनी सचिवालय से महज 500 मीटर की दूरी पर स्थित है. प्रशासनिक अधिकारियों के मुख्यालय के इतनी नजदीक होने के बावजूद भी नहर की देखभाल कोसों दूर है, क्योंकि एक निजी स्कूल के द्वारा इस नहर को मनचाहे तरीके से तोड़कर इस पर से रास्ता निकाल लिया गया और अतिक्रमण कर लिया गया है. वहीं प्रशासन आंखे मूंद कर बैठा हुआ है.

झालावाड़ के गांवड़ी तालाब की ऐतिहासिक नहर हो रही दुर्दशा की शिकार

आपको बता दें कि निजी स्कूल के दुस्साहस को देखकर कुछ स्थानीय लोगों ने भी नहर पर से रास्ते निकाल लिए हैं. ईटीवी भारत ने जब इस मामले की गंभीरता से लिया और नगर परिषद से जवाब मांगा की नहर पर से रास्ता निकालने की और निर्माण करने की स्वीकृतियां किस-किस को मिली हई है तो चौंका देने वाली बात सामने आयी.

नगर परिषद द्वारा निजी स्कूल को न तो नहर के ऊपर से रास्ता निकालने की स्वीकृति दी गई है और न ही नहर के आसपास निर्माण की. उसके बावजूद निजी स्कूल के संचालक ने मनमर्जी करते हुए नहर के ऊपर निर्माण कर लिया और नहर को तोड़ते हुए उस पर से रास्ता भी निकाल लिया है.

इस मामले को लेकर जब हमने जिला कलेक्टर सिद्धार्थ सिहाग से बात की तो उनका कहना था कि ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण को लेकर जिला प्रशासन गंभीर है. ऐसे में अगर ऐतिहासिक नहर को तोड़ने व इसके ऊपर अतिक्रमण का मामला है तो भले ही वह कोई व्यक्ति हो या कोई भी स्कूल, उनपर कठोर कार्रवाई की जाएगी.

यह भी पढ़ें : CAA : असम में सुधर रहे हालात, हटेगा कर्फ्यू, इंटरनेट सेवाएं होंगी बहाल

नहर का इतिहास...

इतिहासकार ललित शर्मा ने बताया कि इस नहर का निर्माण 19वीं शताब्दी के पहले दशक में तत्कालीन राजा राणा भवानी सिंह ने करवाया था. उस दौरान झालावाड़ एक छावनी हुआ करती थी और तालाब में से पहले रेहट से पानी निकाला जाता था. इसी नहर के माध्यम से छावनी में पानी की व्यवस्था की जाती थी.

ब्रिटिश स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण...

यह नहर ब्रिटिश स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है. पूरे राजस्थान में एकमात्र झालावाड़ में ही इस तरह की नहर मौजूद है. ये नहर ऐतिहासिक और पर्यावरण की दृष्टि से बहुत ही महत्ती धरोहर है और शुरुआत में ये नहर लगभग 2 किलोमीटर लंबी हुआ करती थी, लेकिन बाद में अतिक्रमण के चलते लोगों ने इसे तोड़ना शुरू कर दिया. ऐसे में इसका संरक्षण झालावाड़ के ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत जरूरी है.

Intro:स्पेशल रिपोर्ट:

ईटीवी भारत की इस स्पेशल रिपोर्ट में झालावाड़ के गांवड़ी तालाब की ऐतिहासिक नहर की दुर्दशा को हम बताएंगे जिसको निजी स्कूल और लोगों के द्वारा तोड़कर रास्ता निकाल लिया गया तथा बिना अनुमति के ही निजी स्कूल के द्वारा भवन निर्माण भी कर लिया गया है। वहीं प्रशासन का कहना है अगर ऐसा है तो स्कूल संचालक व लोगों के ऊपर कठोर कार्यवाई की जाएगी।




Body:ऐतिहासिक दृष्टि से झालावाड़ काफी समृद्ध जिला माना जाता है। यहां पर वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल गागरोन किले जैसी अनेक ऐसी ऐतिहासिक धरोहरें हैं जो पूरे विश्व में द्वितीय और अनूठी हैं। ऐसी ही एक ऐतिहासिक धरोहर है ब्रिटिश स्थापत्य कला में बनी गांवड़ी तालाब की नहर... स्थानीय भाषा मे इसे धोरा कहा जाता है। जिसका निर्माण 19वीं शताब्दी के पहले दशक में करवाया गया था। ये नहर झालावाड़ शहर के रेलवे स्टेशन रोड पर मौजूद है और मिनी सचिवालय से महज 500 मीटर की दूरी पर स्थित है। प्रशासनिक अधिकारियों के मुख्यालय के इतनी नजदीक होने के बावजूद भी नहर की देखभाल कोसों दूर है। क्योंकि एक निजी स्कूल के द्वारा इस नहर को मनचाहे तरीके से तोड़कर इसपर से रास्ता निकाल लिया गया और अतिक्रमण कर लिया गया है। वहीं प्रशासन आंखे मूंद कर बैठा हुआ है। निजी स्कूल के दुस्साहस को देखकर कुछ स्थानीय लोगों ने भी नहर पर से रास्ते निकाल लिए।

ईटीवी भारत ने जब इस मामले की गंभीरता से लिया और नगरपरिषद से जवाब मांगा की नहर पर से रास्ता निकालने की और निर्माण करने की स्वीकृतियां किस किस को मिली हई है तो चौंका देने वाली बात सामने आयी। नगर परिषद के द्वारा निजी स्कूल को न तो नहर के ऊपर से रास्ता निकालने की स्वीकृति दी गई है और न ही नहर के आसपास निर्माण की। उसके बावजूद निजी स्कूल के संचालक ने मनमर्जी करते हुए नहर के ऊपर निर्माण कर लिया और नहर को तोड़ते हुए उस पर से रास्ता भी निकाल लिया। इस पूरे मामले में 'हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और' जैसा मुहावरा सटीक बैठता है क्योंकि इसी स्कूल के संचालक महोदय का नाम हेरिटेज टू हेरिटेज साइकिल रैली के आयोजकों में होता है। साथ ही मंच के ऊपर खड़े होकर ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण की बड़ी बडी बातें की जाती है लेकिन वास्तविक स्थिति में इन्हें के द्वारा नहर को दौड़ते हुए रास्ता निकाला गया और उसके ऊपर बिना अनुमति के ही निर्माण भी कर लिया गया।

इस मामले को लेकर जब हमने जिला कलेक्टर सिद्धार्थ सिहाग से बात की तो उनका कहना था कि ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण को लेकर जिला प्रशासन गंभीर है। ऐसे में अगर ऐतिहासिक नहर को तोड़ने व इसके ऊपर अतिक्रमण का मामला है तो भले ही वह कोई व्यक्ति हो या कोई भी स्कूल... उनके ऊपर कठोर कार्रवाई की जाएगी।

नहर का इतिहास -
इतिहासकार ललित शर्मा ने बताया कि इस नहर का निर्माण 19वीं शताब्दी के पहले दशक में तत्कालीन राजा राणा भवानी सिंह ने करवाया था। उस दौरान झालावाड़ एक छावनी हुआ करती थी और तालाब में से पहले रेहट से पानी निकाला जाता था और इसी नहर के माध्यम से छावनी में पानी की व्यवस्था की जाती थी। यह नहर ब्रिटिश स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है पूरे राजस्थान में एकमात्र झालावाड़ में ही इस तरह की नहर मौजूद है। ये नहर ऐतिहासिक व पर्यावरण की दृष्टि से बहुत ही महत्ती धरोहर है और शुरुआत में ये नहर लगभग 2 किलोमीटर लंबी हुआ करती थी लेकिन बाद में अतिक्रमण के चलते लोगों ने इसे तोड़ना शुरू कर दिया। ऐसे में इसका संरक्षण झालावाड़ के ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत जरूरी है।


Conclusion:बाइट 1 - ललित शर्मा (इतिहासकार)
बाइट 2 - दयावंती सैनी (आयुक्त, नगरपरिषद झालावाड़)
बाइट 3 - सिद्धार्थ सिहाग (जिला कलेक्टर, झालावाड़)
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