भीनमाल (जालोर). शारदीय नवरात्रि में जालोर के भीनमाल के पास एक गांव में संत की ओर से लोहे के कीलों की शैय्या बनाकर तप किया जा रहा है. जिले ही नहीं राज्य भर से लोग अद्भुत तप के दर्शन करने के लिए आ रहे है. पूर्व में भी संत की ओर से कई कठोर तप किए गए.
भीनमाल से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित निंबोड़ा में नवरात्रि को लेकर एक संत की ओर से कठोर तप चर्चा का विषय बन गया है. आपको बता दे कि संत लोहे की कीलों पर लेटकर पेट पर ज्वार उगाकर नवरात्रि के दस दिन तक अनुष्ठान कर रहे है. संत के इस अजीबोगरीब तपस्या को देखने और दर्शन लाभ के लिए दूर दूर से लोग आ रहे है.
संत जुनागढ़ गुजरात के गिरनारी संत, रामस्नेही सम्प्रदाय के अनुयायी संत अयोध्यादास महाराज के द्वारा नवरात्रि स्थापना के साथ ही भीष्म शयन नाभि कुम्भ ज्योत प्रज्ज्लवन अनुष्ठान प्रारम्भ किया गया. लगातार दस दिनों का यह अनुष्ठान प्रतिपदा से दशहरा तक चलेगा. दशहरा के दिन यह अनुष्ठान पूर्ण होगा. इस अनुष्ठान में भीष्म शयन यानी की तीर की शैय्या पर शयन करके मां बूट भवानी की आराधना करनी होती है. इसके तहत तीन गुणा छह फीट की एक मोटे प्लाईबोर्ड पर करीब छह-छह इंच के सैकड़ों सरिये लगाये गये. महाराज अब दस दिनों तक इन्हीं नुकीले सरियों पर शयन करेगें. उसके बाद उनकी नाभि पर मिट्टी के साथ ज्वारा रोपण किया गया और कुम्भ की स्थापना की गई. कुम्भ के ऊपर एक बड़े दीपक में अखण्ड ज्योत का प्रज्ज्वलन किया गया.
पढ़ें- स्पेशल स्टोरी : 'सत्ता की देवी' मानी जाती हैं मां त्रिपुरा सुंदरी, तीन रूपों में देती हैं दर्शन
वैसे तो भारत देश के अध्यात्म जगत में मां भगवती को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है और उनकी आराधना के तौर तरीके भी सैकड़ों की संख्या में अलग अलग है. जब साधक खुद के शरीर को असहनीय कष्ट पहुंचाकर माता की आराधना करते है तो माना जाता है कि उन्हें यथेष्ट सिद्धि प्राप्त होती है. महाभारत काल में जब पाण्डवों और कौरवों में युद्ध हुआ तो उनके भीष्म पितामह ने असहनीय कष्ट सहकर तीरों की शैय्या पर शयन किया. इसी तर्ज पर महाराज नवरात्रि की आराधना के तहत प्लाईबोर्ड पर लगे सैकड़ों नुकीले सरियों पर शयन कर रहे है. मात्र सिर के नीचे एक तकिया रखा गया है. जबकि कमर के नीचे मात्र एक अंगोछा लपेटे हुए है, जबकि बाकी शरीर बगैर वस्त्रों के है.
पहले भी किए कष्ट अनुष्ठान
भारत के अध्यात्म जगत में त्याग और तप का अपना विशिष्ट महत्व रहा है. दर्जनों प्रकार के मतों पर चलने वाले विभिन्न साधु संत समूहों की त्याग और तप के लिए अपनी विशिष्ट शैली भी रही है. अध्योध्यादास महाराज ने वर्ष 2017 में नाभि कुम्भ कष्ट अनुष्ठान भी किया था. जिसमें महाराज के सिर व दो हाथों को छोड़कर पूरा शरीर मिट्टी में दबा हुआ था. जिस पर ज्वारा रोपण किया गया था.
पढ़ें- नवरात्रि विशेष: हाड़ौती और मालवा क्षेत्र में श्रद्धा का बड़ा केंद्र राता देवी मंदिर
उसके बाद महाराज ने लगातार 41 दिनों तक रात्रि में खड़े रहकर भगवान शिव की भी आराधना की. उसके बाद महाराज ने जून की गर्मी में धूप में लगातार पांच पांच घण्टे तक बैठकर भगवान विष्णु की पंचधूणी आराधना अनुष्ठान भी संपूर्ण किया. गत वर्ष नवरात्रि में महाराज द्वारा त्रिकुम्भ आराधना भी की गई. जिसमें दोनों हाथों और एक सिर पर एक नजरों के समक्ष कुम्भ की स्थापना होती है और लगातार नौ दिनों तक यह आराधना करनी पड़ती है. महाराज द्वारा पूर्व में गुजरात राज्य के सांलगपुर के पास खाम्भा में और सूरत के पास भीलड़ में यही अनुष्ठान दो बार किया जा चुका है.