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जालोर: आधुनिकता और मशीनरी के आगे बर्बाद हो गया हथकरघा बुनकर उद्योग

देश और प्रदेश में कई जगहों पर हथकरघा और बुनकर उद्योग हुआ करता था. जिसके बनाये हुए ऊनी कपड़े बड़े मशहूर हुआ करते थे, लेकिन आधुनिकता के इस दौड़ में यह उद्योग पूरी तरह से बर्बाद हो गया है.

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Published : Aug 8, 2019, 3:15 PM IST

जालोर: आधुनिकता और मशीनरी के आगे बर्बाद हो गया हथकरघा बुनकर उघोग

जालोर. देश में स्वदेशी वस्तुओं के चलन सदियों पुराना है। स्वदेशी वस्तुओं को लेकर समय समय पर कई आंदोलन भी हुए, लेकिन सदियों पहले 7 अगस्त 1905 कोलकत्ता के टाउन हॉल में सबसे पहले स्वदेशी वस्तुओं को लेकर बड़ा आंदोलन हुआ था. उस समय देश में स्वदेशी कपड़े के चलन को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया हथकरघा उद्योग देश भर जल्दी ही फैल गया था. तब से भारत के अलग अलग शहरों व गांवों में हथकरघा उद्योगके तहत ऊनी कपड़े की ओढ़ने की चद्दर बनाई जाने लगी.

जालोर: आधुनिकता और मशीनरी के आगे बर्बाद हो गया हथकरघा बुनकर उद्योग

धीरे धीरे इस उघोग को लोगों ने अपनी आजीविका का साधन बना लिया था, लेकिन अब यह उद्योगआधुनिकता और मशीनरी के कारण पूरी तरह बर्बाद हो गया. इसको वापस जीवित करने के लिए सरकार ने 7 अगस्त 2015 को मद्रास से राष्ट्रीय हथकरघा उद्योग की शुरुआत की और बुनकर का कार्य करने वालों के लिए कई योजनाएं भी शुरू की, लेकिन यह योजनाएं कागजों में ही दम तोड़ रही है.

हथकरघा उद्योग का कार्य करने वालों ने ज़्यादातर इस कार्य को बंद कर दिया है और मजबूरी में दूसरे कार्य करने शुरू कर दिए, लेकिन जिले में दो गांव आज भी ऐसे है जो इन उद्योग को जीवित रखे हुए है. इन दोनों गांवों में बुनकर का कार्य करने वाले ग्रामीणों की हालत खराब है. वक़्त के साथ हथकरघा उघोग बर्बाद होने के कारण इन परिवारों के सामने अपने परिवार का पालन पोषण करने का संकट खड़ा हो गया है. ऐसे में अगर इन दोनों गांवों के बुनकरों को सरकारी योजनाओं का फायदा दिया जाता है तो यह लघु उद्योग विलुप्त नहीं होगा.


जानकारी और सहयोग के अभाव में बर्बाद हो रहा है यह उघोग
इस लघु उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकारों ने कई योजनाओं की शुरुआत कर रखी है, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही के कारण बुनकरों को इनका फायदा नहीं मिल रहा है. चितलवाना के लालपुरा गांव में हथकरघा उघोग चलाने वाले एक युवा बुधराम बताते है कि सरकार की तरफ से इस उघोग को बढ़ावा देने के लिए उचित प्लेटफार्म दिया जाता है तो वापस यब उघोग जीवित हो सकता है. बाड़मेर जिले के धनाऊ में हथकरघा उघोग चलाने वाले गोविंद ने बताया की सरकार हमारे विकास के लिए करोड़ों रुपये का बजट देती है, लेकिन जिला उघोग कार्यालय के अधिकारियों द्वारा गोलमाल कर पैसों को हड़प लिया जाता है तो उघोग चलाने वालों को लाभ नहीं देते है.


तीन साल से नहीं बन पाया बुनकर कार्ड
जिले में हथकरघा उद्योग चलाने वाले लोगों के कार्ड सरकार की तरफ से बनाये जाते हैं, लेकिन जालोर में बुनकरों के कार्ड तक नहीं बनाए गए है. लालपुरा गांव में एक दर्जन से ज्यादा लोग इस उघोग से जुड़े हुए है, इन्होंने 2017, 2018 व 2019 में बुनकर कार्ड के लिए एप्लाई किया है, लेकिन अधिकारियों ने इनको कार्ड तक बनाकर नहीं दिया है.
सरकार ने लोन माफ की घोषणा की, लेकिन किया नहीं बुनकरों व हथकरघा उद्योग का कार्य करने वाले लोगों को सम्बल देने के लिए सरकार ने लोन राशि माफ करने की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक माफ नहीं की गई है.

जालोर. देश में स्वदेशी वस्तुओं के चलन सदियों पुराना है। स्वदेशी वस्तुओं को लेकर समय समय पर कई आंदोलन भी हुए, लेकिन सदियों पहले 7 अगस्त 1905 कोलकत्ता के टाउन हॉल में सबसे पहले स्वदेशी वस्तुओं को लेकर बड़ा आंदोलन हुआ था. उस समय देश में स्वदेशी कपड़े के चलन को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया हथकरघा उद्योग देश भर जल्दी ही फैल गया था. तब से भारत के अलग अलग शहरों व गांवों में हथकरघा उद्योगके तहत ऊनी कपड़े की ओढ़ने की चद्दर बनाई जाने लगी.

जालोर: आधुनिकता और मशीनरी के आगे बर्बाद हो गया हथकरघा बुनकर उद्योग

धीरे धीरे इस उघोग को लोगों ने अपनी आजीविका का साधन बना लिया था, लेकिन अब यह उद्योगआधुनिकता और मशीनरी के कारण पूरी तरह बर्बाद हो गया. इसको वापस जीवित करने के लिए सरकार ने 7 अगस्त 2015 को मद्रास से राष्ट्रीय हथकरघा उद्योग की शुरुआत की और बुनकर का कार्य करने वालों के लिए कई योजनाएं भी शुरू की, लेकिन यह योजनाएं कागजों में ही दम तोड़ रही है.

हथकरघा उद्योग का कार्य करने वालों ने ज़्यादातर इस कार्य को बंद कर दिया है और मजबूरी में दूसरे कार्य करने शुरू कर दिए, लेकिन जिले में दो गांव आज भी ऐसे है जो इन उद्योग को जीवित रखे हुए है. इन दोनों गांवों में बुनकर का कार्य करने वाले ग्रामीणों की हालत खराब है. वक़्त के साथ हथकरघा उघोग बर्बाद होने के कारण इन परिवारों के सामने अपने परिवार का पालन पोषण करने का संकट खड़ा हो गया है. ऐसे में अगर इन दोनों गांवों के बुनकरों को सरकारी योजनाओं का फायदा दिया जाता है तो यह लघु उद्योग विलुप्त नहीं होगा.


जानकारी और सहयोग के अभाव में बर्बाद हो रहा है यह उघोग
इस लघु उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकारों ने कई योजनाओं की शुरुआत कर रखी है, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही के कारण बुनकरों को इनका फायदा नहीं मिल रहा है. चितलवाना के लालपुरा गांव में हथकरघा उघोग चलाने वाले एक युवा बुधराम बताते है कि सरकार की तरफ से इस उघोग को बढ़ावा देने के लिए उचित प्लेटफार्म दिया जाता है तो वापस यब उघोग जीवित हो सकता है. बाड़मेर जिले के धनाऊ में हथकरघा उघोग चलाने वाले गोविंद ने बताया की सरकार हमारे विकास के लिए करोड़ों रुपये का बजट देती है, लेकिन जिला उघोग कार्यालय के अधिकारियों द्वारा गोलमाल कर पैसों को हड़प लिया जाता है तो उघोग चलाने वालों को लाभ नहीं देते है.


तीन साल से नहीं बन पाया बुनकर कार्ड
जिले में हथकरघा उद्योग चलाने वाले लोगों के कार्ड सरकार की तरफ से बनाये जाते हैं, लेकिन जालोर में बुनकरों के कार्ड तक नहीं बनाए गए है. लालपुरा गांव में एक दर्जन से ज्यादा लोग इस उघोग से जुड़े हुए है, इन्होंने 2017, 2018 व 2019 में बुनकर कार्ड के लिए एप्लाई किया है, लेकिन अधिकारियों ने इनको कार्ड तक बनाकर नहीं दिया है.
सरकार ने लोन माफ की घोषणा की, लेकिन किया नहीं बुनकरों व हथकरघा उद्योग का कार्य करने वाले लोगों को सम्बल देने के लिए सरकार ने लोन राशि माफ करने की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक माफ नहीं की गई है.

Intro:देश व प्रदेश में कई जगहों पर हथकरघा व बुनकर उघोग हुआ करता था। जिसके बनाये हुए ऊनी कपड़े बड़े मशहूर हुआ करते थे, लेकिन आधुनिकता के इस दौड़ में यह उघोग पूरी तरह से बर्बाद हो गया है। इसके संरक्षण को लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 अगस्त 2015 को राष्ट्रीय हथकरघा उघोग दिवस मनाने की घोषणा की थी, लेकिन धरातल पर कार्य करने वाले लोगों के लिए कई योजना भी शुरू की, परंतु सरकारी योजनाओं का फायदा इन बुनकरों तक नहीं पहुंच पाया है। जिसके कारण यह उघोग आज भी सरकारी मदद के इंतजार में दम तोड़ रहा है।


Body:आधुनिकता व मशीनरी के आगे बर्बाद हो गया हथकरघा लघु उघोग, बुनकरों के सामने परिवार का पालन पोषण करने का खड़ा हुआ संकट
जालोर
देश में स्वदेशी वस्तुओं के चलन सदियों पुराना है। स्वदेशी वस्तुओं को लेकर समय समय पर कई आंदोलन भी हुए, लेकिन सदियों पहले 7 अगस्त 1905 कोलकत्ता के टाउन हॉल में सबसे पहले स्वदेशी वस्तुओं को लेकर बड़ा आंदोलन हुआ था। उस समय देश में स्वदेशी कपड़े के चलन को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया हथकरघा उघोग देश भर जल्दी ही फैल गया था। तब से भारत के अलग अलग शहरों व गांवों में हथकरघा उघोग के तहत ऊनी कपड़े की ओढ़ने की चद्दर बनाई जाने लगी। धीरे धीरे इस उघोग को लोगों ने अपनी आजीविका का साधन बना लिया था, लेकिन अब यह उघोग आधुनिकता व मशीनरी के कारण पूरी तरह बर्बाद हो गया। इसको वापस जीवित करने के लिए सरकार ने 7 अगस्त 2015 को मद्रास से राष्ट्रीय हथकरघा उघोग की शुरुआत की और बुनकर का कार्य करने वालों के लिए कई योजनाएं भी शुरू की, लेकिन यह योजनाएं कागजों में ही दम तोड़ रही है। हथकरघा उघोग का कार्य करने वालों ने ज़्यादातर इस कार्य को बंद कर दिया है और मजबूरी में दूसरे कार्य करने शुरू कर दिए, लेकिन जिले में दो गांव आज भी ऐसे है जो इन उघोग को जीवित रखे हुए है। इन दोनों गांवों में बुनकर का कार्य करने वाले ग्रामीणों की हालत खराब है। वक़्त के साथ हथकरघा उघोग बर्बाद होने के कारण इन परिवारों के सामने अपने परिवार का पालन पोषण करने का संकट खड़ा हो गया है। ऐसे में अगर इन दोनों गांवों के बुनकरों को सरकारी योजनाओं का फायदा दिया जाता है तो यह लघु उद्योग विलुप्त नहीं होगा।
जानकारी व सहयोग के अभाव में बर्बाद हो रहा है यह उघोग
इस लघु उघोग को बढ़ावा देने के लिए सरकारों ने कई योजनाओं की शुरुआत कर रखी है, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही के कारण बुनकरों को इनका फायदा नहीं मिल रहा है। चितलवाना के लालपुरा गांव में हथकरघा उघोग चलाने वाले एक युवा बुधराम बताते है कि सरकार की तरफ से इस उघोग को बढ़ावा देने के लिए उचित प्लेटफार्म दिया जाता है तो वापस यब उघोग जीवित हो सकता है। बाड़मेर जिले के धनाऊ में हथकरघा उघोग चलाने वाले गोविंद ने बताया की सरकार हमारे विकास के लिए करोड़ों रुपये का बजट देती है, लेकिन जिला उघोग कार्यालय के अधिकारियों द्वारा गोलमाल कर पैसों को हड़प लिया जाता है तो उघोग चलाने वालों को लाभ नहीं देते है।
तीन साल से नहीं बन पाया बुनकर कार्ड
जिले में हथकरघा उघोग चलाने वाले लोगों के कार्ड सरकार की तरफ से बनाये जाते हैं, लेकिन जालोर में बुनकरों के कार्ड तक नहीं बनाए गए है। लालपुरा गांव में एक दर्जन से ज्यादा लोग इस उघोग से जुड़े हुए है, इन्होंने 2017, 2018 व 2019 में बुनकर कार्ड के लिए एप्लाई किया है, लेकिन अधिकारियों ने इनको कार्ड तक बनाकर नहीं दिया है।
सरकार ने लोन माफ की घोषणा की, लेकिन किया नहीं
बुनकरों व हथकरघा उघोग का कार्य करने वाले लोगों को सम्बल देने के लिए सरकार ने लोन राशि माफ करने की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक माफ नहीं की गई है। कांग्रेस के

बाईट - नरसिंग पढियार, प्रदेश महासचिव,कांग्रेस कमेटी खादी व ग्रामोद्योग प्रकोष्ठ जयपुर
बाईट - गोविंद, बुनकर कारीगर
बाईट- बुधाराम, बुनकर कारीगर



Conclusion:
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