रानीवाड़ा (जालोर). जिले के रानीवाड़ा भीनमाल सड़क मार्ग पर स्थित संत बगदाराम महाराज आश्रम पर गुरुदेव की मूर्ति पर फूल माला और हवन कर गुरु पूर्णिमा मनाई गई. जीनगर समाज के लोगों ने मुंह पर मास्क बाधकर और आपसी दूरी का ख्याल रखते हुए गुरु महाराज की वंदन की. वहीं प्रत्येक गुरु भक्त को आश्रम में सैनिटाइज कर प्रवेश दिया गया.
कमेटी के अध्यक्ष तगाराम ने बताया कि इस दौरान सभी ने एक जगह संगठीत होकर गुरु महाराज का भव्य मंदिर बनाने का संकल्प लिया. साथ ही समाज के लोगों से निवेदन किया गया कि चुनाव प्रक्रिया के तहत सदस्य और संरक्षक बनकर सहयोग करे. वहीं गुरू महाराज को सभी भक्तों ने पूजा प्रसादी कर गुरु पूर्णिमा मनाया.
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क्या है गुरु शिष्य परंपरा
गुरु ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं, मतलब गुरु साक्षात ईश्वर स्वरूप होता है. हर किसी व्यक्ति के जीवन में गुरु का अहम महत्व होता है. गुरु ही है जो शिष्य को सही राह दिखा कर उसमें ज्ञान की ज्योति प्रकाशित करता है. शास्त्रों में लिखा है कि माता पिता और गुरु साक्षात ईश्वर समान है, क्योंकि यहीं से ज्ञान का कुंज प्रकाशमान होता है.
गुरु-शिष्य परंपरा प्राचीन समय से ही चली आ रही है और व्यक्ति में नैतिक चारित्रिक और आध्यात्मिक विकास का आधार ही गुरु शिष्य परंपरा रही है. देश में ऐसी कई गाथाएं हैं, जो गुरु शिष्य परंपरा ऊपर ही आधारित है. वह लोगों को आज भी प्रेरणा देती है. ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने गुरु की प्रेरणा से ही विकास की नई इबारत लिखी है. साथ ही इससे समाज और देश को नई दिशा मिली है.