पोकरण (जैसलमेर). क्षेत्र में गौ सेवा, शिक्षा एवं पर्यावरण की सुरक्षा के लिए समर्पित रहे संत हरवंश सिंह निर्मल उर्फ भादरिया महाराज जीवन के अंतिम क्षणों में भी शैक्षिक जागृति का प्रयास करते हुए 15 फरवरी 2010 को ब्रह्मलीन हो गए थे. ऐसे में उनकी बरसी के मौके पर कई तरह के कार्यक्रम आयोजित हुए.
फील्ड फायरिंग रेंज की आगोश में बसे एक छोटे से गांव भादरिया को संपूर्ण देश में एक नई पहचान देने वाले संत हरवंशसिंह 1960 में भादरिया आए थे।. यहां पर स्थित भादरिया राय के मंदिर में उन्हें चमत्कारी शांति एवं आध्यात्मिक अनुभूति का आभास होने पर वे यहीं के होकर रह गए. 1930 में जन्मे संत हरवंशसिंह निर्मल विद्या वाचस्पति अलंकार से विभूषित होने के साथ-साथ बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे.
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बरसी का आयोजन
लाठी क्षेत्र के शक्तिपीठ मंदिर में भादरिया महाराज की बरसी उत्साह के साथ मनाई जाएगी. जगदंबा सेवा समिति राष्ट्रीय सचिव जुगल किशोर आसेरा ने बताया कि महाराज की बरसी के अवसर पर रविवार को भादरिया मंदिर परिसर में शक्ति हवन का आयोजन किया गया. जिसमें कई श्रद्धालुओं ने शक्ति हवन में आहुतियां देकर अमन चेन की कामना की. वहीं शाम को भजन संध्या का आयोजन किया गया. जिसमें कई कलाकारों की ओर से रात भर भजनों की सरिता बहाई.
महाराज की बरसी कार्यक्रम को लेकर कार्यकर्ताओं ने भादरिया मंदिर परिसर और भादरिया महाराज की समाधि स्थल को भव्य रूप दिया गया. जगदम्बा सेवा समिति परिवार और भक्तजनों की ओर से सोमवार की सुबह 9 बजे भादरिया महाराज की समाधि पर विशेष पूजा अर्चना की जाएगी. इसके साथ सैकड़ों श्रद्धालुओं की ओर से चरण पादुका पूजन किया जाएगा.
चरण पादुका पूजन के बाद महाप्रसादी का आयोजन किया जाएगा. मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के लिए दर्शन बैरिकेडिंग लगाकर व्यवस्था की जाएगी. समिति की ओर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए ठहरने और विश्राम करने की माकूल व्यवस्था की गई है. समिति के सदस्यों द्वारा क्षेत्र के आस पास के लोगों को पुण्य लाभ लेने का आह्वान किया। महाराज की बरसी को लेकर आसपास के क्षेत्र के कई श्रद्धालु रविवार की शाम को रवाना होते दिखाई दिए.
निर्मल संप्रदाय से दीक्षित संत
हरवंश सिंह राष्ट्रीय विचारधारा के पथिक और मानवता के सच्चे उपासक थे. उनका विश्वास था कि इस दुनिया में मूलत: कोई भी बुरा नहीं है. वे कहते थे कि मानव की सोच अथवा चिंतन जब गलत दिशा लेते हैं, तब उनके अगले कदम आज नहीं तो कल या कालांतर में उसी दिशा में उठते हैं. सहृदयता से ही विचारों में परिवर्तन संभव है. भादरिया महाराज आपसी झगड़ों और युद्धों के विरोधी और विश्व शांति के पक्षपाती थे। उनका मानना था कि वर्तमान हालात में प्रत्येक विवाद और समस्याओं को आपसी बातचीत से सुलझाना चाहिए. वे कहते थे कि चाहे समस्या एक बार की बातचीत से सुलझे या अनेक बार की.
जीवन भर की गौ सेवा
1960 में जिस समय भादरिया महाराज ने भादरिया मंदिर को अपनी कर्मभूमि बनाया. उस समय भारत पाक सीमा पर तारबंदी नहीं होने के कारण हजारों की संख्या में गौ वंश की तस्करी होती थी. इसकी जानकारी मिलने पर स्वयं संत ने सीमा पर जाकर गायों की तस्करी को अपनी आंखों से देखा तभी से उन्होंने गौ रक्षा का मन ही मन संकल्प लेकर उसे साकार करने में जुट गए. संत ने कुछ दान दाताओं ने सहयोग लेकर भादरिया में एक गौशाला शुरू की. 55 वर्षों के बाद आज भादरिया गोशाला में सैकड़ों गायों की सेवा की जा रही है.
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पर्यावरण एवं नशा उन्मूलन के क्षेत्र में किया कार्य
भादरिया को कर्मभूमि के रूप में अपनाने के पश्चात संत हरवंशसिंह निर्मल ने गौ सेवा, शिक्षा एवं पर्यावरण की सुरक्षा को अपना मूल लक्ष्य बनाया. इसके अन्तर्गत उन्होंने प्रदेश के 33 जिलों में नवयुवकों की टोलियां भेजकर अनेक लाभकारी पौधों के बीज बांटे. इसी के साथ उन्होंने नशा उन्मूलन के लिए भी भरसक प्रयास किया. इसके तहत संत ने अफीम और शराब मुक्ति के साथ साथ चाय छोड़ने के लिए हजारों लोगों से संकल्प पत्र भरवाए.