ETV Bharat / state

स्पेशल स्टोरी: पाक विस्थापित महिलाओं का दर्द...सिंध की प्रसिद्ध कशीदाकारी कला को नहीं मिल रहा प्रोत्साहन

पाकिस्तान से आकर जैसलमेर में बसे पाक विस्थापित अपने साथ सिंध की नायाब कशीदाकारी कला भी लेकर आए हैं. लेकिन यहां प्रोत्साहन के अभाव में वो कुछ खास नहीं कर पा रहे है. किस वक्त में उनका ये ही आजीविका का साधन था. लेकिन अब वो आकर्षक हस्तशिल्प उत्पाद बिक्री के अभाव में घर पर बेकार पड़े है. देखिए जैसलमेर से स्पेशल रिपोर्ट...

Sindh embroidered arts,सिंध की कशीदाकारी कला
author img

By

Published : Sep 12, 2019, 10:05 PM IST

जैसलमेर. शहर के ट्रांसपोर्ट नगर चौराहा के पास बसी भील बस्ती में सैकड़ों पाकिस्तान से विस्थापित होकर महिलाएं यहां रहती है. लेकिन वो अपने साथ सिंध की प्रसिद्ध कशीदाकारी कला भी साथ लाई है. यह महिलाएं कला के हुनर से अपनी आजीविका चलाने के प्रयास में लगी है. लेकिन उनके हुनर को प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है. जिसके कारण महिलाओं द्वारा बनाए गए आकर्षक हस्तशिल्प उत्पाद बिक्री के अभाव में घर पर बेकार पड़े है.

पाक विस्थापित महिलाओं का दर्द...सिंध की प्रसिद्ध कशीदाकारी कला को नहीं मिल रहा प्रोत्साहन..देखिए रिपोर्ट

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: जान जोखिम में डाल कर जुगाड़ के पुल से नदी पार कर स्कूल जाते हैं विद्यार्थी, प्रशासन ने मूंदी आंखे

सिंध की कला के जरिए अलग-अलग हस्तशिल्प उत्पादों का निर्माण
बता दें कि भील बस्ती में करीब 800 महिलाएं कशीदाकारी का कार्य कर रही है. वहीं करीब 11-11 सदस्यों के दस स्वयं सहायता समूह भी है. जो कशीदाकारी कला के माध्यम से हाथपंखे, चद्दर, रल्ली, थैले, बच्चों के बिछोने, इंढोणी, सजावट के सामान आदि कशीदे से सजाते है. भील बस्ती की रहने वाली कुंजा देवी बताती है कि करीब 25 साल से वह कशीदाकारी का कार्य कर रही है. उनके परिवार का गुजारा भी इस कार्य से चल रहा है. उन्होंने सिंध की कला के जरिए भिन्न-भिन्न तरह के हस्तशिल्प उत्पादों का निर्माण किया है. उनके इन उत्पादों को विश्व स्तर पर भी पहचान मिली हुई है. लेकिन सरकार की ओर से उनकी इस कला को यहां कोई प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है.

पढ़ें- पाक विस्थापितों की रामसा पीर में गहरी आस्था...100 किलो चावल की बोरी सिर उठाकर ले जाते हैं 184 किमी... देखिए स्पेशल रिपोर्ट

प्रोत्साहन के अभाव में उनके हुनर को पहचना नहीं
भील बस्ती में मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रही महिलाएं हुनर के बावजूद भी रोजगार से वंचित है. यहां पाक से विस्थापित महिलाओं का कहना है कि हालांकि समूह जरूर बनें हुए है. जिनके द्वारा निर्मित हस्तशिल उत्पादों को आगे भेजा जाता है. कभी-कभी वे इस कला से चार-पांच हजार तक कमा लेती है. महिलाएं अपना पैसा खर्च कर व काफी मेहनत कर ऐसे उत्पाद बनाती है. जिसे देश-विदेश के लोग भी पसंद करते है. लेकिन सरकार की ओर से प्रोत्साहन के अभाव में उनके हुनर को पहचना नहीं मिल पा रही है.

पढ़ें- बाड़मेर के 15 पाक विस्थापितों को मिली भारतीय नागरिकता... कई सालों बाद मिला अधिकारी तो खिल उठे चेहरे

हजारों महिलाओं को मिल सकता है रोजगार
सरकार की ओर से यदि प्रोत्साहन मिले तो इस कला के माध्यम से बस्ती की हजारों महिलाएं रोजगार प्राप्त कर सकती है. कशीदाकारी कला से जुडी़ महिलाओं को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न स्तर पर हैरिटेज फैशन वीक, मेले, सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं भी कार्य करती है. बस्ती की पाक विस्थापित महिलाओं के अनुसार उन्हें प्रोत्साहन व सुविधा मिले तो वे इस कला के माध्यम से अपना स्थाई रोजगार प्राप्त कर सकती है.

जैसलमेर. शहर के ट्रांसपोर्ट नगर चौराहा के पास बसी भील बस्ती में सैकड़ों पाकिस्तान से विस्थापित होकर महिलाएं यहां रहती है. लेकिन वो अपने साथ सिंध की प्रसिद्ध कशीदाकारी कला भी साथ लाई है. यह महिलाएं कला के हुनर से अपनी आजीविका चलाने के प्रयास में लगी है. लेकिन उनके हुनर को प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है. जिसके कारण महिलाओं द्वारा बनाए गए आकर्षक हस्तशिल्प उत्पाद बिक्री के अभाव में घर पर बेकार पड़े है.

पाक विस्थापित महिलाओं का दर्द...सिंध की प्रसिद्ध कशीदाकारी कला को नहीं मिल रहा प्रोत्साहन..देखिए रिपोर्ट

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: जान जोखिम में डाल कर जुगाड़ के पुल से नदी पार कर स्कूल जाते हैं विद्यार्थी, प्रशासन ने मूंदी आंखे

सिंध की कला के जरिए अलग-अलग हस्तशिल्प उत्पादों का निर्माण
बता दें कि भील बस्ती में करीब 800 महिलाएं कशीदाकारी का कार्य कर रही है. वहीं करीब 11-11 सदस्यों के दस स्वयं सहायता समूह भी है. जो कशीदाकारी कला के माध्यम से हाथपंखे, चद्दर, रल्ली, थैले, बच्चों के बिछोने, इंढोणी, सजावट के सामान आदि कशीदे से सजाते है. भील बस्ती की रहने वाली कुंजा देवी बताती है कि करीब 25 साल से वह कशीदाकारी का कार्य कर रही है. उनके परिवार का गुजारा भी इस कार्य से चल रहा है. उन्होंने सिंध की कला के जरिए भिन्न-भिन्न तरह के हस्तशिल्प उत्पादों का निर्माण किया है. उनके इन उत्पादों को विश्व स्तर पर भी पहचान मिली हुई है. लेकिन सरकार की ओर से उनकी इस कला को यहां कोई प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है.

पढ़ें- पाक विस्थापितों की रामसा पीर में गहरी आस्था...100 किलो चावल की बोरी सिर उठाकर ले जाते हैं 184 किमी... देखिए स्पेशल रिपोर्ट

प्रोत्साहन के अभाव में उनके हुनर को पहचना नहीं
भील बस्ती में मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रही महिलाएं हुनर के बावजूद भी रोजगार से वंचित है. यहां पाक से विस्थापित महिलाओं का कहना है कि हालांकि समूह जरूर बनें हुए है. जिनके द्वारा निर्मित हस्तशिल उत्पादों को आगे भेजा जाता है. कभी-कभी वे इस कला से चार-पांच हजार तक कमा लेती है. महिलाएं अपना पैसा खर्च कर व काफी मेहनत कर ऐसे उत्पाद बनाती है. जिसे देश-विदेश के लोग भी पसंद करते है. लेकिन सरकार की ओर से प्रोत्साहन के अभाव में उनके हुनर को पहचना नहीं मिल पा रही है.

पढ़ें- बाड़मेर के 15 पाक विस्थापितों को मिली भारतीय नागरिकता... कई सालों बाद मिला अधिकारी तो खिल उठे चेहरे

हजारों महिलाओं को मिल सकता है रोजगार
सरकार की ओर से यदि प्रोत्साहन मिले तो इस कला के माध्यम से बस्ती की हजारों महिलाएं रोजगार प्राप्त कर सकती है. कशीदाकारी कला से जुडी़ महिलाओं को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न स्तर पर हैरिटेज फैशन वीक, मेले, सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं भी कार्य करती है. बस्ती की पाक विस्थापित महिलाओं के अनुसार उन्हें प्रोत्साहन व सुविधा मिले तो वे इस कला के माध्यम से अपना स्थाई रोजगार प्राप्त कर सकती है.

Intro:Body:पाक विस्तापित महिलाओं का दर्द
नहीं मिल रही उनकी कला को प्रोत्साहन
सिंध से लाई नायाब कशीदाकारी कला
प्रोत्साहन के अभाव में नहीं मिल रहा रोजगार

पलायन का मंजर व विस्थापन की पीड़ा को याद कर वो मायूस हो जाती है ...लेकिन सीमा पार सिंध की प्रसिद्ध कला के हुनर से उन्हे काफी उम्मीदे है, बस जरूरत है तो प्रोत्साहन की। जी हाँ.... हम बात कर रहे हौ जैसलमेर शहर के ट्रांसपोर्ट नगर चोराहा के पास बसी भील बस्ती की सैकड़ों महिलाओं की जो पाकिस्तान से विस्तापित होकर यहां आई और अपने साथ संजोए लाई सिंध की प्रसिद्ध कशीदाकारी कला। यह महिलाएं कला के हुनर से अपनी आजीविका चलाने के प्रयास में लगी है लेकिन उनके हुनर को प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है जिसके कारण महिलाओं द्वारा बनाए गए आकर्षक हस्तशिल्प उत्पाद बिक्री के अभाव में घर पर बेकार पड़े हैे।

बस्ती में करीब 800 महिलाएं कशीदाकारी का कार्य कर रही है। वहीं करीब 11-11 सदस्यों के दस स्वयं सहायता समुह भी हे जो कशीदाकारी कला के माध्यम से हाथपंखे, चद्दर, रल्ली, थैले, बच्चों के बिछानों , इंढोणी, सजावट के सामान आदि कशीदे से सजाते है। बस्ती निवासी कुंजा देवी बताती है कि करीब 25 साल से वह कशीदाकारी का कार्य कर रही है। उनके परिवार का गुजारा भी इस कार्य से चल रहा है। उसने सिंध की कला के माध्यम से भिन्न-भिन्न तरह के हस्तशिल्प उत्पादों का निर्माण किया है। उनके इन उत्पादों को विश्व स्तर पर भी पहचान मिली हुई है। लेकिन सरकार की ओर से उनकी इस कला को यहां कोई प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है। भील बस्ती में मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रही महिलाएं हुनर के बावजूद भी रोजगार से वंचित है।

महिलाओं का कहना है कि हालांकि समूह जरूर बने हुए है , जिनके द्वारा निर्मित हस्तशिल उत्पादों को आगे भेजा जाता है। कभी-कभी वे इस कला से चार-पांच हजार तक कमा लेती है। महिलाएं अपना पैसा खर्च कर व काफी मेहनत कर ऐसे उत्पाद बनाती है जिसे देश-विदेश के लोग भी पसंद करते है। लेकिन सरकार की ओर से प्रोत्साहन के अभाव में उनके हुनर को पहचना नहीं मिल पा रही है। सरकार की ओर से यदि प्रोत्साहन मिले तो इस कला के माध्यम से बस्ती की हजारों महिलाएं रोजगार प्राप्त कर सकती है। कशीदाकारी कला से जुडी़ महिलाओं को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न स्तर पर हैरिटेज फैशन वीक, मेले, सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं भी कार्य करती है। बस्ती की पाक विस्थापित महिलाओं के अनुसार उन्हें प्रोत्साहन व सुविधा मिले तो वे इस कला के माध्यम से अपना स्थाई रोजगार प्राप्त कर सकती है।

बाईट-1- कुंजा देवी, पाक विस्तापित महिला
बाईट-2-खिवणी देवी , पाक विस्तापित महिलाConclusion:
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.