जैसलमेर. शहर के ट्रांसपोर्ट नगर चौराहा के पास बसी भील बस्ती में सैकड़ों पाकिस्तान से विस्थापित होकर महिलाएं यहां रहती है. लेकिन वो अपने साथ सिंध की प्रसिद्ध कशीदाकारी कला भी साथ लाई है. यह महिलाएं कला के हुनर से अपनी आजीविका चलाने के प्रयास में लगी है. लेकिन उनके हुनर को प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है. जिसके कारण महिलाओं द्वारा बनाए गए आकर्षक हस्तशिल्प उत्पाद बिक्री के अभाव में घर पर बेकार पड़े है.
सिंध की कला के जरिए अलग-अलग हस्तशिल्प उत्पादों का निर्माण
बता दें कि भील बस्ती में करीब 800 महिलाएं कशीदाकारी का कार्य कर रही है. वहीं करीब 11-11 सदस्यों के दस स्वयं सहायता समूह भी है. जो कशीदाकारी कला के माध्यम से हाथपंखे, चद्दर, रल्ली, थैले, बच्चों के बिछोने, इंढोणी, सजावट के सामान आदि कशीदे से सजाते है. भील बस्ती की रहने वाली कुंजा देवी बताती है कि करीब 25 साल से वह कशीदाकारी का कार्य कर रही है. उनके परिवार का गुजारा भी इस कार्य से चल रहा है. उन्होंने सिंध की कला के जरिए भिन्न-भिन्न तरह के हस्तशिल्प उत्पादों का निर्माण किया है. उनके इन उत्पादों को विश्व स्तर पर भी पहचान मिली हुई है. लेकिन सरकार की ओर से उनकी इस कला को यहां कोई प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है.
प्रोत्साहन के अभाव में उनके हुनर को पहचना नहीं
भील बस्ती में मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रही महिलाएं हुनर के बावजूद भी रोजगार से वंचित है. यहां पाक से विस्थापित महिलाओं का कहना है कि हालांकि समूह जरूर बनें हुए है. जिनके द्वारा निर्मित हस्तशिल उत्पादों को आगे भेजा जाता है. कभी-कभी वे इस कला से चार-पांच हजार तक कमा लेती है. महिलाएं अपना पैसा खर्च कर व काफी मेहनत कर ऐसे उत्पाद बनाती है. जिसे देश-विदेश के लोग भी पसंद करते है. लेकिन सरकार की ओर से प्रोत्साहन के अभाव में उनके हुनर को पहचना नहीं मिल पा रही है.
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हजारों महिलाओं को मिल सकता है रोजगार
सरकार की ओर से यदि प्रोत्साहन मिले तो इस कला के माध्यम से बस्ती की हजारों महिलाएं रोजगार प्राप्त कर सकती है. कशीदाकारी कला से जुडी़ महिलाओं को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न स्तर पर हैरिटेज फैशन वीक, मेले, सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं भी कार्य करती है. बस्ती की पाक विस्थापित महिलाओं के अनुसार उन्हें प्रोत्साहन व सुविधा मिले तो वे इस कला के माध्यम से अपना स्थाई रोजगार प्राप्त कर सकती है.