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विश्व पर्यटन दिवस: स्वर्णनगरी को पर्यटन ने बहुत कुछ दिया, अब इसको हमारी जरूरत

ऐतिहासिक जैसलमेर शहर देशी-विदेशी सैलानियों के लिए सबसे सुकूनदायी स्थल बनने की ओर अग्रसर है. यही कारण है कि यहां पर्यटकों की आवक का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है. साढ़े आठ सौ साल से ज्यादा प्राचीन इस शहर में सैलानियों को लुभाने वाली सभी खासियतें मौजूद हैं.

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Published : Sep 27, 2019, 2:28 PM IST

जैसलमेर. स्वर्णनगरी को पर्यटन ने बहुत कुछ दिया है, जैसलमेर की पहचान पर्यटन से ही होती है. लेकिन अब पर्यटन को हमारी जरूरत है. जैसलमेर की साख यहां के स्थापत्य कला और सौंदर्य ने बनाई है. अब पर्यटन से जुड़ी कुछ समस्याओं की वजह से जैसलमेर की साख गिर रही है. हालांकि देशी पर्यटकों की आवक बढ़ रही है. लेकिन विदेशी सैलानियों की आवक कम हो रही है. समय रहते पर्यटन संरक्षण के प्रयास नहीं हुए तो जैसलमेर का पर्यटन खत्म हो जाएगा.

स्वर्णनगरी को पर्यटन ने बहुत कुछ दिया

गौरतलब है कि साल 1970 के दशक में कुछ विदेशी पेशेवर मरूस्थलीय जैसलमेर में तेल और गैस के अन्वेषण के कार्य के सिलसिले में आए. यहां आकर उन्हें तेल-गैस के भूगर्भिय भंडारों की थाह तो लगी, लेकिन उससे भी ज्यादा विस्मयपूर्ण और कला का बड़ा खजाना इस रेगिस्तानी शहर में स्थापत्य सौन्दर्य के तौर पर नजर आया. वे लोग अपने देश गए और राजस्थान के इस ‘अजूबा’ शहर के बारे में लोगों को बताया. धीरे-धीरे एक कारवां बनने लगा और आज जैसलमेर वर्तमान में पर्यटन क्षितिज पर पुख्ता पहचान बना चुका है.

पढ़ेंः भीलवाड़ा: जिला स्तरीय पोषण मेले का आयोजन

हर साल 5 लाख से अधिक आते हैं सैलानी
आज यहां हर साल 5 लाख से ज्यादा देशी-विदेशी सैलानी घूमने आते हैं. सैकड़ों की तादाद में होटल्स, गेस्ट हाउस उनकी अगवानी के लिए तैयार हो चुके हैं और हजारों जिला वासियों के साथ बाहरी लोगों को भी यहां का पर्यटन रोजगार प्रदान कर रहा है. पर्यटन व्यवसायियों का मानना है कि जैसलमेर में पर्यटन विकास की अब भी अकूत संभावनाएं हैं, लेकिन उनका दोहन करने से पहले इस राह में आने वाली रुकावटों को दूर किया जाना आवश्यक है.

पर्यटन आजीविका मुख्य स्रोत
राजस्थान के पश्चिमी कोने में बसे जैसलमेर जिले को विश्व भर में ख्याति मिल चुकी है. उसकी वजह पर्यटन है. यहां की ऐतिहासिकता, स्थापत्य कला ने देशी-विदेशी सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित किया है. जिस जैसलमेर को काले पानी की सजा माना जाता था. वहां आज सात समुंदर पार से पर्यटन घूमने के लिए आते हैं. जैसलमेर को पहचान दिलाने में पर्यटन की अहम भूमिका है. जानकारों के अनुसार साल 1980 के बाद से जैसलमेर में पर्यटन ने पांव पसारे और देखते ही देखते पर्यटन यहां की आजीविका का मुख्य स्रोत बन गया.

पढ़ें- राजस्‍थान की बेटी 'पायल' को मिला 'चेंजमेकर अवॉर्ड', कैलाश सत्यार्थी ने दी बधाई

छह साल में छह गुना बढ़े देसी पर्यटक
जैसलमेर की कलात्मकता और यहां का शांत वातावरण देशी पर्यटकों को खूब रास आ रहा है. यहां देशी सैलानियों की आवक साल 1990 के बाद से हो रही है, लेकिन साल 2012 तक इनकी आवक का ग्राफ 1 लाख तक ही पहुंचा. इस दौरान यहां केवल बंगाली और गुजराती पर्यटक ही आते रहे. वहीं साल 2012 के बाद तो देश के हर कोने से पर्यटक यहां पहुंचने लगे. जिससे आवक में इजाफा हुआ और साल 2018 तक छह साल में देसी पर्यटकों की आवक 6 गुना तक बढ़ गई. साल 2018 में यह आंकड़ा 8 लाख के करीब रहा.

विदेशी सैलानियों के आने की आस

विदेशी सैलानियों की आवक भी सुधरी 2012 से 2015 के बीच विदेशी सैलानियों की आवक का ग्राफ नीचे उतरा. जहां पहले सवा लाख विदेशी सैलानी सालाना आते थे. वहीं साल 2012 में 50 हजार और उसके बाद तीन साल तक यह आंकड़ा एक लाख से कम रहा. विदेशी पर्यटकों की आवक गिरने से पर्यटन व्यवसायी चिंतित हो गए और जानकारों के अनुसार कुछ समस्याओं के चलते जैसलमेर का पर्यटन दूसरी तरफ डायवर्ट हो गया. लेकिन 2015 के बाद से फिर विदेशी सैलानियों की आवक बढ़ने लगी और 2018 में 1.36 लाख विदेशी सैलानी जैसलमेर आए. वहीं साल 2019 में अब तक पर्यटकों की आवक में भारी गिरावट दर्ज की गई है. लेकिन पर्यटन से जुड़े लोगों को अभी सीजन के दुसरे पड़ाव में अधिक सैलानियों के आने की आस है.

पढ़ें: सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अब नहीं दिखेंगे प्लास्टिक के झंडे, गृह मंत्रालय ने राज्यों को लिखी चिट्ठी

नहीं दिया ध्यान और गिर गई साख
पर्यटनविदों के अनुसार यहां एक साल में करोड़ों का टर्न ओवर होता है. लेकिन पर्यटन को स्थाई और संरक्षण के लिए किसी ने ध्यान नहीं दिया. जिस कारण सालाना टर्न ओवर कम होता चला गया. इसमें स्थानीय लोगों के साथ-साथ सरकारें भी दोषी हैं. यहां का पर्यटन विभाग मरू महोत्सव के अलावा कभी भी हरकत में दिखाई नहीं देता है.

ऐसे गिरा ग्राफ
साल 2012 में जैसलमेर पर्यटन को बहुत बड़ा झटका लगा, जब सैलानियों की आवक में 40 प्रतिशत की कमी आई. यह कमी साल 2013 में भी बरकरार रही, इन सबके बावजूद अभी तक कोई गंभीर प्रयास नहीं किए जा रहे हैं. हालांकि साल 2014 और 2015 में मामूली बढ़ोतरी हुई है. लेकिन पर्यटन व्यवसायी उसे आशाजनक नहीं मानते हैं, क्योंकि साल 2012 से पहले विदेशी सैलानियों का ग्राफ सवा लाख से ज्यादा था, जो गिरकर एक लाख के अंदर आ गया है.

फैक्ट फाइल

  • होटले- 200
  • रिसोर्ट- 100
  • रेस्टोरेंट- 150
  • सालाना सैलानी- 3 से 4 लाख
  • पर्यटन पर निर्भर आबादी- 50 हजार
  • सालाना टर्न ओवर- 500 करोड़

पढ़ें: आरसीए विवाद से पिछड़ा राजस्थान का क्रिकेट, भारतीय गेंदबाज दीपक चाहर ने की विवाद खत्म करने की अपील

सैलानी बीकानेर की तरफ हो रहे हैं डायवर्ट
जैसलमेर का पर्यटन बीकानेर खींच रहा है. पर्यटन व्यवसायियों के अनुसार जैसलमेर का बिजनेस अब बीकानेर की तरफ जा रहा है. वहां के धोरे सैलानियों को आकर्षित कर रहे हैं और जैसलमेर की तरह वहां सैलानियों के साथ दुर्व्यवहार नहीं हो रहा है. पर्यटन व्यवसायियों के अनुसार देश की बड़ी-बड़ी 40 से अधिक कंपनियों के टूर में जैसलमेर का नाम हटा दिया गया है और उसकी जगह बीकानेर शामिल कर दिया गया है.

इन्होंने बिगाड़ी छवि

  • लपके- जैसलमेर की छवि बिगाड़ने में लपकों का सबसे बड़ा रोल है. जगह-जगह सैलानियों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाओं ने सैलानियों का मोह जैसलमेर से भंग कर दिया.
  • गंदगी- नगर परिषद की ओर से शहर को साफ-सुथरा नहीं रखने से भी सैलानियों के मन में यहां की छवि खराब हुई है.
  • ऊंट संचालक- धोरों पर सैलानियों के साथ होने वाली छीना झपटी व ठगी भी सैलानियों की आवक में कमी का मुख्य कारण है.
  • अस्थाई होटल संचालक- किराए पर लेकर होटल चलाने वाले भी पीछे नहीं है. उनकी ओर से सैलानियों के साथ भारी ठगी की जाती है, जिससे सैलानी अब जैसलमेर आना कम पसंद कर रहे हैं.
  • जाकरूकता की कमी- जैसे-जैसे पर्यटन बढ़ा है, वैसे कई समस्याएं सामने आई. लेकिन जैसलमेर के पर्यटन व्यवसायी इनके प्रति जागरूक नहीं हुए और उन्हें अब नुकसान उठाना पड़ रहा है.

पढ़ें: पिछले 30 साल के रिकॉर्ड में इस साल मानसून रहा अच्छा, प्रतापगढ़ में हुई सबसे ज्यादा बारिश

आकर्षण के नए केन्द्र बने

  • जैसलमेर में सोनार किला, गड़ीसर, कलात्मक हवेलियां, खाभा-कुलधरा के खंडहर तथा सम-खुहड़ी के रेतीले धोरे ही प्रमुख सैलानियों को दिखाए जाते रहे हैं.
  • गत कुछ अर्से से यहां के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त ऐहतियात बरतते हुए बॉर्डर टूरिज्म, जियोलॉजिकल टूरिज्म की दिशा में कदम बढ़ाने की जरूरत महसूस की जा रही है.
  • अब भी जैसलमेर के पास ऐसा बहुत कुछ है, जो दुनिया भर के सैलानियों के लिए आकर्षक साबित हो सकता है.

ऐसे सुधर सकते हैं हालात

  • पर्यटन के लिए नासूर बन चुके लपकों पर सख्ती से लगाम कसी जाए.
  • शहर को साफ-सुथरा रखने में नगर परिषद का आमजनता जागरूकता के साथ सहयोग करें.
  • नए पर्यटन क्षेत्र तलाशे जाकर उन्हें विकसित किया जाए ताकि सैलानियों को यहां कुछ नया मिल सके.
  • बड़े पर्यटन व्यवसायी नई कंपनियों से मिलकर जैसलमेर में पर्यटन बढ़ाने पर जोर दे.
  • धोरों पर ऊंट संचालकों पर सख्ती से लगाम कसने की जरूरत.

पढ़ें: प्रदेश कांग्रेस का विशेष अधिवेशन 1 अक्टूबर को बिरला ऑडिटोरियम में होगा

जैसलमेर और पर्यटन का रिश्ता बहुत पुराना है. जैसलमेर को पहचान दिलाने वाले पर्यटन को बचाने के लिए हमें जागरूक होने की जरूरत है. कुछ असामाजिक लोग थोड़े लालच में पर्यटन को नुकसान पहुंचा रहे हैं. पर्यटकों के साथ होने वाला दुर्व्यवहार पर्यटन के लिए घातक साबित हो रहा है. साफ-सफाई, बाहर से आने वाले सैलानियों का स्वागत, हेरीटेज स्थलों का रख-रखाव आदि काफी प्रयास किए जाते हैं. लेकिन ऐसा जैसलमेर में कुछ नजर नहीं आता है. ईटीवी भारत विचार यही है कि जो लोग पर्यटन से रोजी-रोटी कमा रहे हैं. ऐसे में जैसलमेर के निवासी अपने शहर और अपने पर्यटन के लिए आगे आएं. साथ ही सैलानियों का अतिथि देवो भव की तर्ज पर स्वागत करें.

साल देशी पर्यटक विदेशी पर्यटक
2012 100958 49119
2013 122883 73607
2014 250716 92276
2015 235713 84533
2016 359497 90667
2017 493755 122851
2018 592748 136406
2019 246796 59262 (अब तक)

जैसलमेर. स्वर्णनगरी को पर्यटन ने बहुत कुछ दिया है, जैसलमेर की पहचान पर्यटन से ही होती है. लेकिन अब पर्यटन को हमारी जरूरत है. जैसलमेर की साख यहां के स्थापत्य कला और सौंदर्य ने बनाई है. अब पर्यटन से जुड़ी कुछ समस्याओं की वजह से जैसलमेर की साख गिर रही है. हालांकि देशी पर्यटकों की आवक बढ़ रही है. लेकिन विदेशी सैलानियों की आवक कम हो रही है. समय रहते पर्यटन संरक्षण के प्रयास नहीं हुए तो जैसलमेर का पर्यटन खत्म हो जाएगा.

स्वर्णनगरी को पर्यटन ने बहुत कुछ दिया

गौरतलब है कि साल 1970 के दशक में कुछ विदेशी पेशेवर मरूस्थलीय जैसलमेर में तेल और गैस के अन्वेषण के कार्य के सिलसिले में आए. यहां आकर उन्हें तेल-गैस के भूगर्भिय भंडारों की थाह तो लगी, लेकिन उससे भी ज्यादा विस्मयपूर्ण और कला का बड़ा खजाना इस रेगिस्तानी शहर में स्थापत्य सौन्दर्य के तौर पर नजर आया. वे लोग अपने देश गए और राजस्थान के इस ‘अजूबा’ शहर के बारे में लोगों को बताया. धीरे-धीरे एक कारवां बनने लगा और आज जैसलमेर वर्तमान में पर्यटन क्षितिज पर पुख्ता पहचान बना चुका है.

पढ़ेंः भीलवाड़ा: जिला स्तरीय पोषण मेले का आयोजन

हर साल 5 लाख से अधिक आते हैं सैलानी
आज यहां हर साल 5 लाख से ज्यादा देशी-विदेशी सैलानी घूमने आते हैं. सैकड़ों की तादाद में होटल्स, गेस्ट हाउस उनकी अगवानी के लिए तैयार हो चुके हैं और हजारों जिला वासियों के साथ बाहरी लोगों को भी यहां का पर्यटन रोजगार प्रदान कर रहा है. पर्यटन व्यवसायियों का मानना है कि जैसलमेर में पर्यटन विकास की अब भी अकूत संभावनाएं हैं, लेकिन उनका दोहन करने से पहले इस राह में आने वाली रुकावटों को दूर किया जाना आवश्यक है.

पर्यटन आजीविका मुख्य स्रोत
राजस्थान के पश्चिमी कोने में बसे जैसलमेर जिले को विश्व भर में ख्याति मिल चुकी है. उसकी वजह पर्यटन है. यहां की ऐतिहासिकता, स्थापत्य कला ने देशी-विदेशी सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित किया है. जिस जैसलमेर को काले पानी की सजा माना जाता था. वहां आज सात समुंदर पार से पर्यटन घूमने के लिए आते हैं. जैसलमेर को पहचान दिलाने में पर्यटन की अहम भूमिका है. जानकारों के अनुसार साल 1980 के बाद से जैसलमेर में पर्यटन ने पांव पसारे और देखते ही देखते पर्यटन यहां की आजीविका का मुख्य स्रोत बन गया.

पढ़ें- राजस्‍थान की बेटी 'पायल' को मिला 'चेंजमेकर अवॉर्ड', कैलाश सत्यार्थी ने दी बधाई

छह साल में छह गुना बढ़े देसी पर्यटक
जैसलमेर की कलात्मकता और यहां का शांत वातावरण देशी पर्यटकों को खूब रास आ रहा है. यहां देशी सैलानियों की आवक साल 1990 के बाद से हो रही है, लेकिन साल 2012 तक इनकी आवक का ग्राफ 1 लाख तक ही पहुंचा. इस दौरान यहां केवल बंगाली और गुजराती पर्यटक ही आते रहे. वहीं साल 2012 के बाद तो देश के हर कोने से पर्यटक यहां पहुंचने लगे. जिससे आवक में इजाफा हुआ और साल 2018 तक छह साल में देसी पर्यटकों की आवक 6 गुना तक बढ़ गई. साल 2018 में यह आंकड़ा 8 लाख के करीब रहा.

विदेशी सैलानियों के आने की आस

विदेशी सैलानियों की आवक भी सुधरी 2012 से 2015 के बीच विदेशी सैलानियों की आवक का ग्राफ नीचे उतरा. जहां पहले सवा लाख विदेशी सैलानी सालाना आते थे. वहीं साल 2012 में 50 हजार और उसके बाद तीन साल तक यह आंकड़ा एक लाख से कम रहा. विदेशी पर्यटकों की आवक गिरने से पर्यटन व्यवसायी चिंतित हो गए और जानकारों के अनुसार कुछ समस्याओं के चलते जैसलमेर का पर्यटन दूसरी तरफ डायवर्ट हो गया. लेकिन 2015 के बाद से फिर विदेशी सैलानियों की आवक बढ़ने लगी और 2018 में 1.36 लाख विदेशी सैलानी जैसलमेर आए. वहीं साल 2019 में अब तक पर्यटकों की आवक में भारी गिरावट दर्ज की गई है. लेकिन पर्यटन से जुड़े लोगों को अभी सीजन के दुसरे पड़ाव में अधिक सैलानियों के आने की आस है.

पढ़ें: सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अब नहीं दिखेंगे प्लास्टिक के झंडे, गृह मंत्रालय ने राज्यों को लिखी चिट्ठी

नहीं दिया ध्यान और गिर गई साख
पर्यटनविदों के अनुसार यहां एक साल में करोड़ों का टर्न ओवर होता है. लेकिन पर्यटन को स्थाई और संरक्षण के लिए किसी ने ध्यान नहीं दिया. जिस कारण सालाना टर्न ओवर कम होता चला गया. इसमें स्थानीय लोगों के साथ-साथ सरकारें भी दोषी हैं. यहां का पर्यटन विभाग मरू महोत्सव के अलावा कभी भी हरकत में दिखाई नहीं देता है.

ऐसे गिरा ग्राफ
साल 2012 में जैसलमेर पर्यटन को बहुत बड़ा झटका लगा, जब सैलानियों की आवक में 40 प्रतिशत की कमी आई. यह कमी साल 2013 में भी बरकरार रही, इन सबके बावजूद अभी तक कोई गंभीर प्रयास नहीं किए जा रहे हैं. हालांकि साल 2014 और 2015 में मामूली बढ़ोतरी हुई है. लेकिन पर्यटन व्यवसायी उसे आशाजनक नहीं मानते हैं, क्योंकि साल 2012 से पहले विदेशी सैलानियों का ग्राफ सवा लाख से ज्यादा था, जो गिरकर एक लाख के अंदर आ गया है.

फैक्ट फाइल

  • होटले- 200
  • रिसोर्ट- 100
  • रेस्टोरेंट- 150
  • सालाना सैलानी- 3 से 4 लाख
  • पर्यटन पर निर्भर आबादी- 50 हजार
  • सालाना टर्न ओवर- 500 करोड़

पढ़ें: आरसीए विवाद से पिछड़ा राजस्थान का क्रिकेट, भारतीय गेंदबाज दीपक चाहर ने की विवाद खत्म करने की अपील

सैलानी बीकानेर की तरफ हो रहे हैं डायवर्ट
जैसलमेर का पर्यटन बीकानेर खींच रहा है. पर्यटन व्यवसायियों के अनुसार जैसलमेर का बिजनेस अब बीकानेर की तरफ जा रहा है. वहां के धोरे सैलानियों को आकर्षित कर रहे हैं और जैसलमेर की तरह वहां सैलानियों के साथ दुर्व्यवहार नहीं हो रहा है. पर्यटन व्यवसायियों के अनुसार देश की बड़ी-बड़ी 40 से अधिक कंपनियों के टूर में जैसलमेर का नाम हटा दिया गया है और उसकी जगह बीकानेर शामिल कर दिया गया है.

इन्होंने बिगाड़ी छवि

  • लपके- जैसलमेर की छवि बिगाड़ने में लपकों का सबसे बड़ा रोल है. जगह-जगह सैलानियों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाओं ने सैलानियों का मोह जैसलमेर से भंग कर दिया.
  • गंदगी- नगर परिषद की ओर से शहर को साफ-सुथरा नहीं रखने से भी सैलानियों के मन में यहां की छवि खराब हुई है.
  • ऊंट संचालक- धोरों पर सैलानियों के साथ होने वाली छीना झपटी व ठगी भी सैलानियों की आवक में कमी का मुख्य कारण है.
  • अस्थाई होटल संचालक- किराए पर लेकर होटल चलाने वाले भी पीछे नहीं है. उनकी ओर से सैलानियों के साथ भारी ठगी की जाती है, जिससे सैलानी अब जैसलमेर आना कम पसंद कर रहे हैं.
  • जाकरूकता की कमी- जैसे-जैसे पर्यटन बढ़ा है, वैसे कई समस्याएं सामने आई. लेकिन जैसलमेर के पर्यटन व्यवसायी इनके प्रति जागरूक नहीं हुए और उन्हें अब नुकसान उठाना पड़ रहा है.

पढ़ें: पिछले 30 साल के रिकॉर्ड में इस साल मानसून रहा अच्छा, प्रतापगढ़ में हुई सबसे ज्यादा बारिश

आकर्षण के नए केन्द्र बने

  • जैसलमेर में सोनार किला, गड़ीसर, कलात्मक हवेलियां, खाभा-कुलधरा के खंडहर तथा सम-खुहड़ी के रेतीले धोरे ही प्रमुख सैलानियों को दिखाए जाते रहे हैं.
  • गत कुछ अर्से से यहां के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त ऐहतियात बरतते हुए बॉर्डर टूरिज्म, जियोलॉजिकल टूरिज्म की दिशा में कदम बढ़ाने की जरूरत महसूस की जा रही है.
  • अब भी जैसलमेर के पास ऐसा बहुत कुछ है, जो दुनिया भर के सैलानियों के लिए आकर्षक साबित हो सकता है.

ऐसे सुधर सकते हैं हालात

  • पर्यटन के लिए नासूर बन चुके लपकों पर सख्ती से लगाम कसी जाए.
  • शहर को साफ-सुथरा रखने में नगर परिषद का आमजनता जागरूकता के साथ सहयोग करें.
  • नए पर्यटन क्षेत्र तलाशे जाकर उन्हें विकसित किया जाए ताकि सैलानियों को यहां कुछ नया मिल सके.
  • बड़े पर्यटन व्यवसायी नई कंपनियों से मिलकर जैसलमेर में पर्यटन बढ़ाने पर जोर दे.
  • धोरों पर ऊंट संचालकों पर सख्ती से लगाम कसने की जरूरत.

पढ़ें: प्रदेश कांग्रेस का विशेष अधिवेशन 1 अक्टूबर को बिरला ऑडिटोरियम में होगा

जैसलमेर और पर्यटन का रिश्ता बहुत पुराना है. जैसलमेर को पहचान दिलाने वाले पर्यटन को बचाने के लिए हमें जागरूक होने की जरूरत है. कुछ असामाजिक लोग थोड़े लालच में पर्यटन को नुकसान पहुंचा रहे हैं. पर्यटकों के साथ होने वाला दुर्व्यवहार पर्यटन के लिए घातक साबित हो रहा है. साफ-सफाई, बाहर से आने वाले सैलानियों का स्वागत, हेरीटेज स्थलों का रख-रखाव आदि काफी प्रयास किए जाते हैं. लेकिन ऐसा जैसलमेर में कुछ नजर नहीं आता है. ईटीवी भारत विचार यही है कि जो लोग पर्यटन से रोजी-रोटी कमा रहे हैं. ऐसे में जैसलमेर के निवासी अपने शहर और अपने पर्यटन के लिए आगे आएं. साथ ही सैलानियों का अतिथि देवो भव की तर्ज पर स्वागत करें.

साल देशी पर्यटक विदेशी पर्यटक
2012 100958 49119
2013 122883 73607
2014 250716 92276
2015 235713 84533
2016 359497 90667
2017 493755 122851
2018 592748 136406
2019 246796 59262 (अब तक)

Intro:Body:WORLD TOURISUM DAY SPECIAL

स्वर्णनगरी को पर्यटन ने बहुत कुछ दिया, अब पर्यटन को हमारी जरूरत

स्वर्णनगरी में पर्यटन के सामने कई चुनौतियां

नासूर बनती जा रही है लपकागिरी

पर्यटकों के साथ होती है छीना झपटी

अब भी नहीं चेते तो खत्म हो जाएगा स्वर्णनगरी का पर्यटन,

जैसलमेर के पर्यटन के संरक्षण का संकल्प लेने की जरूरत

फैक्ट फाइल : होटले : 200, रिसोर्ट : 100, रेस्टोरेंट 150, सालाना सैलानी : 3 से 4 लाख, पर्यटन पर निर्भर आबादी : 50 हजार, सालाना टर्न ओवर : 500 करोड़

ऐतिहासिक जैसलमेर शहर देशी-विदेशी सैलानियों के लिए सबसे सुकूनदायी स्थल बनने की ओर अग्रसर है। यही कारण है कि यहां पर्यटकों की आवक का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है। साढ़े आठ सौ साल से ज्यादा प्राचीन इस शहर में सैलानियों को लुभाने वाली सभी खासियतें मौजूद हैं। तभी आम से लेकर खास सभी श्रेणी के देशी-विदेशी सैलानी कम से कम एक बार इसका दीदार अवश्य करना चाहते हैं।
जैसलमेर स्वर्णनगरी को पर्यटन ने बहुत कुछ दिया है, जैसलमेर की पहचान पर्यटन से ही होती है, लेकिन अब पर्यटन को हमारी जरूरत है। जैसलमेर की साख यहां के स्थापत्य कला व सौंदर्य ने बनाई है और अब पर्यटन से जुड़ी कुछ समस्याओं की वजह से जैसलमेर की साख गिर रही है। हालांकि देसी पर्यटकों की आवक बढ़ रही है लेकिन विदेशी सैलानियों की आवक कम हो रही है। समय रहते पर्यटन संरक्षण के प्रयास नहीं हुए तो जैसलमेर का पर्यटन खत्म हो जाएगा।

गौरतलब है कि वर्ष 1970 के दशक में कुछ विदेशी पेशेवर मरुस्थलीय जैसलमेर में तेल और गैस के अन्वेषण के कार्य के सिलसिले में आए। यहां आकर उन्हें तेल-गैस के भूगर्भीय भंडारों की थाह तो लगी, लेकिन उससे भी ज्यादा विस्मयपूर्ण और कला का बड़ा खजाना इस रेगिस्तानी शहर में स्थापत्य सौन्दर्य के तौर पर नजर आया। वे लोग अपने देश गए तथा राजस्थान के इस ‘अजूबा’ शहर के बारे में बताया। धीरे-धीरे एक कारवां बनने लगा और आज जैसलमेर वर्तमान में पर्यटन क्षितिज पर पुख्ता पहचान बना चुका है। आज यहां प्रतिवर्ष 5 लाख से ज्यादा देशी-विदेशी सैलानी घूमने आते हैं। सैकड़ों की तादाद में होटल्स, गेस्ट हाउस उनकी अगवानी के लिए तैयार हो चुके हैं और हजारों जिलावासियों के साथ बाहरी लोगों को भी यहां का पर्यटन रोजगार प्रदान कर रहा है। पर्यटन व्यवसायियों का मानना है कि जैसलमेर में पर्यटन विकास की अब भी अकूत संभावनाएं हैं, लेकिन उनका दोहन करने से पहले इस राह में आने वाली रुकावटों को दूर किया जाना आवश्यक है।
अब तक के हालात यही बताते हैं कि हमारी कमियों ने ही पर्यटन को अन्य जगहों के लिए डायवर्ट होने पर मजबूर कर दिया। राजस्थान के पश्चिमी कोने में बसे जैसलमेर जिले को विश्व भर में ख्याति मिल चुकी है। उसकी वजह पर्यटन है। यहां की ऐतिहासिकता, स्थापत्य कला ने देसी विदेशी सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित किया है। जिस जैसलमेर को काले पानी की सजा माना जाता था वहां आज सात समुंदर पार से पर्यटन घूमने के लिए आते हैं। जैसलमेर को पहचान दिलाने में पर्यटन की अहम भूमिका है। जानकारों के अनुसार 1980 के बाद से जैसलमेर में पर्यटन ने पांव पसारे और देखते ही देखते पर्यटन यहां की आजीविका का मुख्य स्रोत बन गया।

छह साल में छह गुणा बढ़े देसी पर्यटक -
जैसलमेर की कलात्मकता व यहां का शांत वातावरण देसी पर्यटकों को खूब रास आ रहा है। यहां देसी सैलानियों की आवक 1990 के बाद से हो रही है लेकिन 2012 तक इनकी आवक का ग्राफ 1 लाख तक ही पहुंचा। इस दौरान यहां केवल बंगाली व गुजराती पर्यटक ही आते रहे। 2012 के बाद तो देश के हर कोने से पर्यटक यहां पहुंचने लगे। जिससे आवक में इजाफा हुआ और 2018 तक छह साल में देसी पर्यटकों की आवक 6 गुणा तक बढ़ गई। 2018 में यह आंकड़ा 8 लाख के करीब रहा। विदेशी सैलानियों की आवक भी सुधरी 2012 से 2015 के बीच विदेशी सैलानियों की आवक का ग्राफ नीचे उतरा। जहां पहले सवा लाख विदेशी सैलानी सालाना आते थे वहीं 2012 में 50 हजार और उसके बाद तीन साल तक यह आंकड़ा एक लाख से कम रहा। विदेशी पर्यटकों की आवक गिरने से पर्यटन व्यवसायी चिंतित हो गए और जानकारों के अनुसार कुछ समस्याओं के चलते जैसलमेर का पर्यटन दूसरी तरफ डायवर्ट हो गया। लेकिन गनीमत रही कि 2015 के बाद से फिर विदेशी सैलानियों की आवक बढ़ने लगी और 2018 में 1.36 लाख विदेशी सैलानी जैसलमेर आए। 2019 में अबतक पर्यटकों की आवक में भारी गिरावट दर्ज की गई है लेकिन पर्यटन से जुड़े लोगों को अभी सीजन के दुसरे पड़ाव मे अधिक सैलानियों के आने की आस है।

नहीं दिया ध्यान और गिर गई साख -
जैसलमेरवासियों ने पर्यटन से खूब कमाई की। पर्यटनविदों के अनुसार सालाना टर्न ओवर 500 करोड़ से ज्यादा तक पहुंच गया लेकिन पर्यटन को स्थाई रखने व संरक्षण के लिए किसी ने ध्यान नहीं दिया। इसमें स्थानीय लोगों के साथ साथ सरकारें भी दोषी है। यहां का पर्यटन विभाग मरू महोत्सव के अलावा कभी भी हरकत में दिखाई नहीं देता है।

ऐसे गिरा ग्राफ-
साल 2012 में जैसलमेर पर्यटन को बहुत बड़ा झटका लगा, जब सैलानियों की आवक में 40 प्रतिशत की कमी आई। यह कमी वर्ष 2013 में भी बरकरार रही। इन सबके बावजूद अभी तक कोई गंभीर प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। हालांकि साल 2014 व 2015 में मामूली बढ़ोतरी हुई है लेकिन पर्यटन व्यवसायी उसे आशाजनक नहीं मानते हैं। क्योंकि 2012 से पहले विदेशी सैलानियों का ग्राफ सवा लाख से ज्यादा था जो गिरकर एक लाख के अंदर आ गया है।

सैलानी बीकानेर की तरफ हो रहे हैं डायवर्ट -
जैसलमेर का पर्यटन बीकानेर खींच रहा है। पर्यटन व्यवसायियों के अनुसार जैसलमेर का बिजनेस अब बीकानेर की तरफ जा रहा है। वहां के धोरे सैलानियों को आकर्षित कर रहे हैं और जैसलमेर की तरह वहां सैलानियों के साथ दुर्व्यवहार नहीं हो रहा है। पर्यटन व्यवसायियों के अनुसार देश की बड़ी-बड़ी 40 से अधिक कंपनियों के टूर में जैसलमेर का नाम हटा दिया गया है और उसकी जगह बीकानेर शामिल कर दिया गया है।

बाईट-1- ललित कुमार - स्थानीय गाईड
बाईट-2- विमल कुमार गोपा - पर्यटन व्यवसाई
बाईट-3- अविनाश बिस्सा - पर्यटन व्यवसाई
बाईट-4- अरुण पुरोहित - उपाध्यक्ष - गाइड

इन्होंने बिगाड़ी छवि

लपके :- जैसलमेर की छवि बिगाड़ने में लपकों का सबसे बड़ा रोल है। जगह जगह सैलानियों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाओं ने सैलानियों का मोह जैसलमेर से भंग कर दिया।
गंदगी :- नगरपरिषद की ओर से शहर को साफ सुथरा नहीं रखने से भी सैलानियों के मन में यहां की छवि खराब हुई है।
ऊंट संचालक :- धोरों पर सैलानियों के साथ होने वाली छीना झपटी व ठगी भी सैलानियों की आवक में कमी का मुख्य कारण है।
अस्थाई होटल संचालक :- किराए पर लेकर होटल चलाने वाले भी पीछे नहीं है। उनकी ओर से सैलानियों के साथ भारी ठगी की जाती है, जिससे सैलानी अब जैसलमेर आना कम पसंद कर रहे हैं।
जाकरूकता की कमी :- जैसे जैसे पर्यटन बढ़ा है वैसे कई समस्याएं सामने आई। लेकिन जैसलमेर के पर्यटन व्यवसायी इनके प्रति जागरूक नहीं हुए और उन्हें अब नुकसान उठाना पड़ रहा है।

आकर्षण के नए केन्द्र बने
-जैसलमेर में सोनार किला, गड़ीसर, कलात्मक हवेलियां, खाभा-कुलधरा के खंडहर तथा सम-खुहड़ी के रेतीले धोरे ही प्रमुख सैलानियों को दिखाए जाते रहे हैं।
-गत कुछ अर्से से यहां के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त ऐहतियात बरतते हुए बॉर्डर टूरिज्म, जियोलॉजिकल टूरिज्म की दिशा में कदम बढ़ाने की जरूरत महसूस की जा रही है।
-अब भी जैसलमेर के पास ऐसा बहुत कुछ है, जो दुनिया भर के सैलानियों के लिए आकर्षक साबित हो सकता है।

ऐसे सुधर सकते हैं हालात
पर्यटन के लिए नासूर बन चुके लपकों पर सख्ती से लगाम कसी जाए।
शहर को साफ सुथरा रखने में नगरपरिषद का आमजनता जागरूकता के साथ सहयोग करे।
नए पर्यटन क्षेत्र तलाशे जाकर उन्हें विकसित किया जाए ताकि सैलानियों को यहां कुछ नया मिल सके।
बड़े पर्यटन व्यवसायी नई कंपनियों से मिलकर जैसलमेर में पर्यटन बढ़ाने पर जोर दे।
धोरों पर ऊंट संचालकों पर सख्ती से लगाम कसने की जरूरत।
ईटीवी भारत विचार -

जैसलमेर और पर्यटन का रिश्ता बहुत पुराना है। जैसलमेर को पहचान दिलाने वाले पर्यटन को बचाने के लिए हमें जागरूक होने की जरूरत है। कुछ असामाजिक लोग थोड़े लालच में पर्यटन को नुकसान पहुंचा रहे हैं। पर्यटकों के साथ होने वाला दुर्व्यवहार पर्यटन के लिए घातक साबित हो रहा है। साफ सफाई, बाहर से आने वाले सैलानियों का स्वागत, हेरीटेज स्थलों का रखरखाव आदि काफी प्रयास किए जाते हैं। लेकिन ऐसा जैसलमेर में कुछ नजर नहीं आता है। ईटीवी भारत विचार यही है कि जो लोग पर्यटन से रोजी रोटी कमा रहे हैं ऐसे मे जैसलमेर के निवासी अपने शहर व अपने पर्यटन के लिए आगे आएं और सैलानियों का अतिथि देवो भव की तर्ज पर स्वागत करें।

वर्ष देशी पर्यटक विदेशी पर्यटक
2012 100958 49119
2013 122883 73607
2014 250716 92276
2015 235713 84533
2016 359497 90667
2017 493755 122851
2018 592748 136406
2019 246796 59262 (अब तक) Conclusion:
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