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नवजातों पर कहर कब तक: जैसलमेर जवाहर अस्पताल में पिछले साल 78 नवजात बच्चों की थमी सांसें

कोटा के जेके लोन अस्पताल में 112 से ज्यादा बच्चों की मौत पर जयपुर से दिल्ली तक हलचल मची हुई है. जिसके बाद लगातार प्रदेश के अन्य जिलों से भी नवजातों के मौत की खबरें सामने आ रही है. ऐसे में जब ईटीवी भारत ने जैसलमेर के राजकीय जवाहर अस्पताल के आंकड़ों की पड़ताल की तो..वहां के हालात भी कुछ ऐसे ही थे. देखिए जैसलमेर से स्पेशल रिपोर्ट...

Jaisalmer Jawahar Hospital, Jaisalmer news
जैसलमेर जवाहर अस्पताल में पिछले साल 78 नवजात बच्चों की थमी सांसें
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Published : Jan 6, 2020, 7:41 PM IST

जैसलमेर. जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत के बाद जब ईटीवी भारत ने जैसलमेर राजकीय जवाहर अस्पताल में स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट और बच्चा वार्ड के हालातों का जायजा लिया तो अस्पताल की व्यवस्थाएं ठीक मिली, लेकिन फिर भी जिला मुख्यालय के इस एकमात्र बड़े सरकारी अस्पताल में सुधार की आवश्यकता है.

जैसलमेर जवाहर अस्पताल में पिछले साल 78 नवजात बच्चों की थमी सांसें

पिछले वर्ष में 78 नवजात बच्चों की मौत
अगर बच्चों की मौत के आंकड़ों की बात करें तो र्ष 2019 में 1 जनवरी से 31 दिसंबर तक एसएनसीयू में 1339 नवजात भर्ती हुए.इ नमें से 78 बच्चों की मौत हो गई. अकेले दिसंबर महीने में 101 बच्चे भर्ती हुए. जिनमें 8 की मौत हो गई.

पढ़ें- राजस्थान : नहीं थम रहा नवजात शिशुओं की मौत का सिलसिला, 112 हुई मृतकों की संख्या

बच्चों की मौत का डॉक्टर ने ये बताया कारण
अस्पताल प्रशासन का कहना है कि जिन बच्चों की मौत हुई इनमें से कुछ बच्चों की मौत वजन कम होने से तो कुछ की उल्टी निकल जाने से हुई. वहीं कुछ बच्चों की मौत का कारण गले में नाल फंस जाना तो कुछ की संक्रमण से भी मौत हुई थी. पीएमओ डॉ.बी.एल. बुनकर ने बताया कि एसएनसीयू सहित बच्चा वार्ड और लेबर बोर्ड में सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त है. यहां वार्मर चालू है, ऑक्सीजन के लिए सेंट्रल लाइन है और न्यूबेलाइजर की भी सुविधा है. नर्सिंग स्टाफ की जरूर कमी है, लेकिन सीमित संसाधनों से बेहतर सुविधा देने के लिए पूरे प्रयास किए जा रहे हैं.

पढ़ें- नवजातों पर कहर कब तक: मैप के जरिए जाने राजस्थान में कहां कितनी हुई मौतें

एसएनसीयू में स्टाफ की कमी
यहीं नहीं एसएनसीयू में स्टाफ भी मापदंडों के अनुसार नहीं है. अस्पताल सूत्रों के मुताबिक एसएनसीयू में हर वक्त डॉक्टर और पर्याप्त स्टाफ जरूरी है. एसएनसीयू के लिए 12 का स्टाफ है. जिसमें से 4 स्टाफ है और 4 ही डॉक्टर है. अस्पताल में डॉक्टर कॉल पर आते हैं या फिर राउंड का वक्त होने पर बच्चों को देखते हैं. एसएनसीयू में 24 घंटे के लिए 12 में से 4 का ही स्टाफ है. इनमें मॉर्निंग और इवनिंग पारी में दो-दो और नाइट में एक स्टाफ रह जाता है. एक कर्मचारी हमेशा डे ऑफ और 1 नाइट ऑफ पर रहता है. ऐसे में बच्चे ज्यादा आ जाते हैं तो एक स्टाफ से काम नहीं चलता और 1 से ज्यादा बच्चों की एक साथ तबीयत बिगड़ने पर अकेले कर्मचारी की सांस फूल जाती है. सबसे ज्यादा समस्या रात को आती है और उसी वक्त एसएनसीयू में मात्र एक स्टाफ होता है.

जैसलमेर. जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत के बाद जब ईटीवी भारत ने जैसलमेर राजकीय जवाहर अस्पताल में स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट और बच्चा वार्ड के हालातों का जायजा लिया तो अस्पताल की व्यवस्थाएं ठीक मिली, लेकिन फिर भी जिला मुख्यालय के इस एकमात्र बड़े सरकारी अस्पताल में सुधार की आवश्यकता है.

जैसलमेर जवाहर अस्पताल में पिछले साल 78 नवजात बच्चों की थमी सांसें

पिछले वर्ष में 78 नवजात बच्चों की मौत
अगर बच्चों की मौत के आंकड़ों की बात करें तो र्ष 2019 में 1 जनवरी से 31 दिसंबर तक एसएनसीयू में 1339 नवजात भर्ती हुए.इ नमें से 78 बच्चों की मौत हो गई. अकेले दिसंबर महीने में 101 बच्चे भर्ती हुए. जिनमें 8 की मौत हो गई.

पढ़ें- राजस्थान : नहीं थम रहा नवजात शिशुओं की मौत का सिलसिला, 112 हुई मृतकों की संख्या

बच्चों की मौत का डॉक्टर ने ये बताया कारण
अस्पताल प्रशासन का कहना है कि जिन बच्चों की मौत हुई इनमें से कुछ बच्चों की मौत वजन कम होने से तो कुछ की उल्टी निकल जाने से हुई. वहीं कुछ बच्चों की मौत का कारण गले में नाल फंस जाना तो कुछ की संक्रमण से भी मौत हुई थी. पीएमओ डॉ.बी.एल. बुनकर ने बताया कि एसएनसीयू सहित बच्चा वार्ड और लेबर बोर्ड में सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त है. यहां वार्मर चालू है, ऑक्सीजन के लिए सेंट्रल लाइन है और न्यूबेलाइजर की भी सुविधा है. नर्सिंग स्टाफ की जरूर कमी है, लेकिन सीमित संसाधनों से बेहतर सुविधा देने के लिए पूरे प्रयास किए जा रहे हैं.

पढ़ें- नवजातों पर कहर कब तक: मैप के जरिए जाने राजस्थान में कहां कितनी हुई मौतें

एसएनसीयू में स्टाफ की कमी
यहीं नहीं एसएनसीयू में स्टाफ भी मापदंडों के अनुसार नहीं है. अस्पताल सूत्रों के मुताबिक एसएनसीयू में हर वक्त डॉक्टर और पर्याप्त स्टाफ जरूरी है. एसएनसीयू के लिए 12 का स्टाफ है. जिसमें से 4 स्टाफ है और 4 ही डॉक्टर है. अस्पताल में डॉक्टर कॉल पर आते हैं या फिर राउंड का वक्त होने पर बच्चों को देखते हैं. एसएनसीयू में 24 घंटे के लिए 12 में से 4 का ही स्टाफ है. इनमें मॉर्निंग और इवनिंग पारी में दो-दो और नाइट में एक स्टाफ रह जाता है. एक कर्मचारी हमेशा डे ऑफ और 1 नाइट ऑफ पर रहता है. ऐसे में बच्चे ज्यादा आ जाते हैं तो एक स्टाफ से काम नहीं चलता और 1 से ज्यादा बच्चों की एक साथ तबीयत बिगड़ने पर अकेले कर्मचारी की सांस फूल जाती है. सबसे ज्यादा समस्या रात को आती है और उसी वक्त एसएनसीयू में मात्र एक स्टाफ होता है.

Intro:कोटा के जेके लोन अस्पताल में 100 से अधिक बच्चों की मौत पर जयपुर से दिल्ली तक मची हलचल के बाद हमने राजकीय जवाहर अस्पताल में स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट और बच्चा वार्ड के हालातों का जायजा लिया। हालांकि यहां बेहतर व्यवस्थाएं देखी गई लेकिन फिर भी जिला मुख्यालय के इस एकमात्र बड़े सरकारी अस्पताल में सुधार की आवश्यकता है। जहाँ वर्ष 2019 में 1 जनवरी से 31 दिसंबर तक एसएनसीयू में 1339 नवजात भर्ती हुए इनमें से 78 बच्चों की मौत हो गई। अकेले दिसंबर माह में 101 बच्चे भर्ती हुए जिनमें 8 की मौत हो गई। खबर का मकसद सनसनी पैदा करना नहीं है पर, व्यवस्थाएं चुस्त करना जरूर है।


Body:अस्पताल प्रशासन का कहना है कि जिन बच्चों की मौत हुई इनमें से कुछ बच्चों की मौत वजन कम होने से तो कुछ की उल्टी निकल जाने से हुई, वही कुछ बच्चों की मौत का कारण गले में नाल फंस जाना तो कुछ की संक्रमण से भी मौत हुई थी। पीएमओ डॉ.बी.एल. बुनकर ने बताया कि एसएनसीयू सहित बच्चा वार्ड और लेबर बोर्ड में सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त है। यहाँ वार्मर चालू है, ऑक्सीजन के लिए सेंट्रल लाइन है और न्यूबेलाइज़र की भी सुविधा है। नर्सिंग स्टाफ की जरूर कमी है, लेकिन सीमित संसाधनों से बेहतर सुविधा देने के लिए पूरे प्रयास किए जा रहे हैं।


Conclusion:एसएनसीयू में स्टाफ भी मापदंडों के अनुसार नहीं है। अस्पताल सूत्रों के मुताबिक एसएनसीयू में हर वक्त डॉक्टर और पर्याप्त स्टाफ जरूरी है। एसएनसीयू के लिए 12 का स्टाफ है जिसमे से 4 ही उपलब्ध है और 4 डॉक्टर है। अस्पताल में डॉक्टर कॉल पर आते हैं या फिर राउंड का वक्त होने पर बच्चों को देखते हैं। एसएनसीयू में अभी 24 घंटे के लिए 12 में से 4 का ही स्टाफ है। इनमें मॉर्निंग और इवनिंग पारी में दो-दो और नाइट में एक स्टाफ रह जाता है। एक कर्मचारी हमेशा डे ऑफ और 1 नाईट ऑफ पर रहता है। बच्चे ज्यादा आ जाते हैं तो एक स्टाफ से काम नहीं चलता और 1 से ज्यादा बच्चों की एक साथ तबीयत बिगड़ने पर अकेले कर्मचारी की सांस फूल जाती है। सबसे ज्यादा समस्या रात को आती है और उसी वक्त एसएनसीयू में मात्र एक स्टाफ होता है।

बाईट-1-डॉ.बी.एल.बुनकर, पीएमओ राजकीय जवाहर चिकित्सालय

बाईट-2- नमित मेहता, जिला कलेक्टर
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