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Down Syndrome Day: मनोचिकित्सक से आसान भाषा में समझिए क्या है डाउन सिंड्रोम

21 मार्च के दिन दुनिया भर में डाउन सिंड्रोम को लेकर जागरूकता के तहत कई कार्यक्रम होते (Down Syndrome Day) हैं. इन कार्यक्रमों का मकसद है कि सभी को सामाजिक पहलुओं के आधार पर जिंदगी बसर करने के बराबर के मौके दिए जाएं.

World Down Syndrome Day
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Published : Mar 21, 2023, 10:01 AM IST

मनोचिकित्सक से आसान भाषा में समझिए क्या है डाउन सिंड्रोम

जयपुर. वसुदेव कुटुंबकम यानी संपूर्ण विश्व एक परिवार है और सबको साथ लेकर चलना है. इसी भावना को लेकर विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस हर वर्ष 21 मार्च को मनाया जाता है. इसका मकसद है दुनियाभर में डाउन सिंड्रोम के बारे में जन जागरूकता को बढ़ाया जाए. संयुक्त राष्ट्र महासभा की सिफारिश के बाद साल 2012 में डाउन सिंड्रोम डे बनाने की शुरुआत हुई थी. ब्रिटिश डॉक्टर जॉन लैंगडन डाउन के नाम पर डाउन सिंड्रोम का नाम किया गया. लैंगडन डाउन ने 1866 में पहली बार डाउन सिंड्रोम की पहचान की थी.

माना जाता है कि दुनिया भर के 1100 जीवित बच्चों में से एक में यह लक्षण पाया जाता है. विज्ञान की भाषा के अनुसार अगर समझाया जाए तो वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम डे यानी WDSD के लिए तीसरे महीने के 21 वें दिन को 21 वें क्रोमोसोम के ट्रिप्लिकेशन (ट्राइसॉमी) की खासियत को दर्शाने के लिए चुना गया था, गुणसूत्रों की यहीं विशिष्टता डाउन सिंड्रोम का कारण बनती है.
21 मार्च के दिन दुनिया भर में डाउन सिंड्रोम को लेकर जागरूकता के तहत कई कार्यक्रम होते हैं. इन कार्यक्रमों का मकसद है कि सभी को सामाजिक पहलुओं के आधार पर जिंदगी बसर करने के बराबर के मौके दिए जाएं. खासतौर पर नकारात्मक सोच, भेदभाव, बहिष्कार और अपेक्षाओं की वजह से डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्तियों को अलग नहीं समझा जाए. इन लोगों के सामने आने वाली चुनौती को ही समझ कर सशक्त समाज की भागीदारी में सबका साथ लिया जाये. हमारे देश में बहुत ज्यादा जरूरत है कि इस बीमारी के बारे में अवेयरनेस फैलाई जाए, क्योंकि इस तरह के बच्चे अधिकतर नेगलेक्ट किए जाते हैं या फिर इनके पर ध्यान नहीं दिया जाता. जिसकी वजह से इनकी क्वालिटी ऑफ लाइफ एफेट होती है.

World Down Syndrome Day
डाउन सिंड्रोम को लेकर जागरूकता

क्या होता है डाउन सिंड्रोम ? : मनोचिकित्सक डॉ. अनीता गौतम ने कहा कि सामान्य भाषा में समझा जाए तो डाउन सिंड्रोम शरीर की रचना के दौरान बना एक अनुवांशिक विकार है, जो 21 वे क्रोमोजोम की तीसरी लेयर में मौजूद होता है. सामान्य लोगों में जहां 46 गुणसूत्र होते हैं. वहीं, डाउन सिंड्रोम वाले लोगों में गुणसूत्रों की संख्या 47 होती है. इसी वजह से उनके चेहरे की बनावट भी अलग नजर आती है. यही वजह है कि यह लोग सीखने के लिए भी अलग तरीका अपनाते हैं. उन्होंने बताया कि कहा जाए तो, डाउन सिंड्रोम वंशागुनत क्रोमोसोमल बीमारी है, जिसकी वजह से जेनेटिक डिफेक्ट आते हैं. दुनिया की अपेक्षा में भारत में हर 830 बच्चों में से एक बच्चा डाउन सिंड्रोम का पैदा होता है. यह जेनेटिक डिफेक्ट इन बच्चों की बौद्धिक क्षमता, शारीरिक विकास पर असर डालता है. इन बच्चों में संक्रमण या इंफेक्शन या अन्य बीमारियों के चांसेस बहुत ज्यादा होते हैं.

पढ़ें : विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस : आनुवांशिक विकार है डाउन सिंड्रोम

मनोचिकित्सक डॉ. अनीता गौतम ने कहा कि जैसे कि ब्लड कैंसर अल्जाइमर इंफेक्शन हार्ट की बीमारी पेट की बीमारी जैसे लक्षण भी देखने को मिलते हैं. डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे जन्मजात हृदय के मरीज, सुनने की ताकत में कमी, आंखों की समस्याओं जैसे विभिन्न दोषों से प्रभावित हो सकते हैं. डाउन सिंड्रोम सभी जाति और आर्थिक स्थिति के लोगों में होता है. डाउन सिंड्रोम वाला बच्चा किसी भी उम्र में मां से पैदा हो सकता है, हालांकि मां की बढ़ती उम्र के साथ डाउन सिंड्रोम का खतरा भी बढ़ सकता है. एक रिसर्च के मुताबिक 35 साल से ज्यादा की उम्र वाली महिलाओं की बच्चों में हर 350 वाक्य में से एक में डाउन सिंड्रोम की आशंका होती है. वहीं, 40 वर्ष से अधिक उम्र की महिला के गर्भ धारण करने पर 100 में से 1 डिलीवरी में डाउन सिंड्रोम का खतरा बढ़ जाता है. मतलब यह है कि बड़ी उम्र के अंदर गर्भधारण करने पर कई बार बच्चों में यह बीमारी हो सकती है.

डाउन सिंड्रोम वाले लोगों के शरीर की बनावट अलग तरह की होती है. ऐसे लोगों में छोटी नाक या चपटी नाक, आंख के ऊपर और कान के आकार का समान्य बनावट से अलग होना, जोड़ों में सामान्य से अधिक बढ़ने की क्षमता होना जैसे लक्षण होते हैं. डाउन सिंड्रोम वाले लोगों की सेहत की देखभाल भी विशेष रूप से की जानी चाहिए. हालांकि, शिक्षा के विकास के बाद ऐसे लोगों में औसत उम्र की वृद्धि हुई है. लेकिन सामान्य लोगों से बेहतर गुणवत्ता वाला जीवन देने के लिए इन लोगों की देखभाल में भी खास खयाल रखे जाने की जरूरत होती है. डाउन सिंड्रोम वाले लोगों की मानसिक और शारीरिक विकास की निगरानी के साथ-साथ फिजियोथैरेपी, रेगुलर कंसल्टेंसी और स्पेशल एजुकेशन जैसे बिंदुओं पर विशेष रुप से ध्यान देने की जरूरत होती है.

पढ़ें : Health Tips for Typhoid : समय पर इलाज न मिले तो मामूली सा बुखार हो सकता है जानलेवा, डॉक्टर से जानिए कैसे करें बचाव

यह मॉडल और एक्टर हैं मिसाल : शॉर्ट फिल्म एन आयरिश गुडबाय के लिए ऑस्कर जीतने वाले जेम्स मार्टिन डाउन सिंड्रोम से पीड़ित हैं. वह इस खासियत के साथ अवॉर्ड से सम्मानित होने वाले पहले व्यक्ति बने थे. ऑस्कर दिवस पर मार्टिन का जन्मदिन था और मंच पर दर्शकों ने उनके लिए 'हैप्पी बर्थडे' गाया. जेम्स मार्टिन डाउन सिंड्रोम पीड़ित अन्य लोगों के लिए एक मिसाल है, क्योंकि अक्सर ऐसे लोगों को समाज पीछे छोड़ देता है. इसी तरह से मॉडल एली गोल्डस्टीन डाउन सिंड्रोम पीड़ित लोगों के लिए एक मिसाल है. वह बी. डी. मैनेजमेंट के साथ साल 2017 के बाद से काम कर रही हैं. एली के दोस्तों ने मॉडलिंग की दुनिया में आने के लिए उनकी मदद की थी. जेऐम्स और एली आज दुनिया के सामने डाउन सिंड्रोम पीड़ित लोगों के लिए एक मिसाल हैं.

मनोचिकित्सक से आसान भाषा में समझिए क्या है डाउन सिंड्रोम

जयपुर. वसुदेव कुटुंबकम यानी संपूर्ण विश्व एक परिवार है और सबको साथ लेकर चलना है. इसी भावना को लेकर विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस हर वर्ष 21 मार्च को मनाया जाता है. इसका मकसद है दुनियाभर में डाउन सिंड्रोम के बारे में जन जागरूकता को बढ़ाया जाए. संयुक्त राष्ट्र महासभा की सिफारिश के बाद साल 2012 में डाउन सिंड्रोम डे बनाने की शुरुआत हुई थी. ब्रिटिश डॉक्टर जॉन लैंगडन डाउन के नाम पर डाउन सिंड्रोम का नाम किया गया. लैंगडन डाउन ने 1866 में पहली बार डाउन सिंड्रोम की पहचान की थी.

माना जाता है कि दुनिया भर के 1100 जीवित बच्चों में से एक में यह लक्षण पाया जाता है. विज्ञान की भाषा के अनुसार अगर समझाया जाए तो वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम डे यानी WDSD के लिए तीसरे महीने के 21 वें दिन को 21 वें क्रोमोसोम के ट्रिप्लिकेशन (ट्राइसॉमी) की खासियत को दर्शाने के लिए चुना गया था, गुणसूत्रों की यहीं विशिष्टता डाउन सिंड्रोम का कारण बनती है.
21 मार्च के दिन दुनिया भर में डाउन सिंड्रोम को लेकर जागरूकता के तहत कई कार्यक्रम होते हैं. इन कार्यक्रमों का मकसद है कि सभी को सामाजिक पहलुओं के आधार पर जिंदगी बसर करने के बराबर के मौके दिए जाएं. खासतौर पर नकारात्मक सोच, भेदभाव, बहिष्कार और अपेक्षाओं की वजह से डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्तियों को अलग नहीं समझा जाए. इन लोगों के सामने आने वाली चुनौती को ही समझ कर सशक्त समाज की भागीदारी में सबका साथ लिया जाये. हमारे देश में बहुत ज्यादा जरूरत है कि इस बीमारी के बारे में अवेयरनेस फैलाई जाए, क्योंकि इस तरह के बच्चे अधिकतर नेगलेक्ट किए जाते हैं या फिर इनके पर ध्यान नहीं दिया जाता. जिसकी वजह से इनकी क्वालिटी ऑफ लाइफ एफेट होती है.

World Down Syndrome Day
डाउन सिंड्रोम को लेकर जागरूकता

क्या होता है डाउन सिंड्रोम ? : मनोचिकित्सक डॉ. अनीता गौतम ने कहा कि सामान्य भाषा में समझा जाए तो डाउन सिंड्रोम शरीर की रचना के दौरान बना एक अनुवांशिक विकार है, जो 21 वे क्रोमोजोम की तीसरी लेयर में मौजूद होता है. सामान्य लोगों में जहां 46 गुणसूत्र होते हैं. वहीं, डाउन सिंड्रोम वाले लोगों में गुणसूत्रों की संख्या 47 होती है. इसी वजह से उनके चेहरे की बनावट भी अलग नजर आती है. यही वजह है कि यह लोग सीखने के लिए भी अलग तरीका अपनाते हैं. उन्होंने बताया कि कहा जाए तो, डाउन सिंड्रोम वंशागुनत क्रोमोसोमल बीमारी है, जिसकी वजह से जेनेटिक डिफेक्ट आते हैं. दुनिया की अपेक्षा में भारत में हर 830 बच्चों में से एक बच्चा डाउन सिंड्रोम का पैदा होता है. यह जेनेटिक डिफेक्ट इन बच्चों की बौद्धिक क्षमता, शारीरिक विकास पर असर डालता है. इन बच्चों में संक्रमण या इंफेक्शन या अन्य बीमारियों के चांसेस बहुत ज्यादा होते हैं.

पढ़ें : विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस : आनुवांशिक विकार है डाउन सिंड्रोम

मनोचिकित्सक डॉ. अनीता गौतम ने कहा कि जैसे कि ब्लड कैंसर अल्जाइमर इंफेक्शन हार्ट की बीमारी पेट की बीमारी जैसे लक्षण भी देखने को मिलते हैं. डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे जन्मजात हृदय के मरीज, सुनने की ताकत में कमी, आंखों की समस्याओं जैसे विभिन्न दोषों से प्रभावित हो सकते हैं. डाउन सिंड्रोम सभी जाति और आर्थिक स्थिति के लोगों में होता है. डाउन सिंड्रोम वाला बच्चा किसी भी उम्र में मां से पैदा हो सकता है, हालांकि मां की बढ़ती उम्र के साथ डाउन सिंड्रोम का खतरा भी बढ़ सकता है. एक रिसर्च के मुताबिक 35 साल से ज्यादा की उम्र वाली महिलाओं की बच्चों में हर 350 वाक्य में से एक में डाउन सिंड्रोम की आशंका होती है. वहीं, 40 वर्ष से अधिक उम्र की महिला के गर्भ धारण करने पर 100 में से 1 डिलीवरी में डाउन सिंड्रोम का खतरा बढ़ जाता है. मतलब यह है कि बड़ी उम्र के अंदर गर्भधारण करने पर कई बार बच्चों में यह बीमारी हो सकती है.

डाउन सिंड्रोम वाले लोगों के शरीर की बनावट अलग तरह की होती है. ऐसे लोगों में छोटी नाक या चपटी नाक, आंख के ऊपर और कान के आकार का समान्य बनावट से अलग होना, जोड़ों में सामान्य से अधिक बढ़ने की क्षमता होना जैसे लक्षण होते हैं. डाउन सिंड्रोम वाले लोगों की सेहत की देखभाल भी विशेष रूप से की जानी चाहिए. हालांकि, शिक्षा के विकास के बाद ऐसे लोगों में औसत उम्र की वृद्धि हुई है. लेकिन सामान्य लोगों से बेहतर गुणवत्ता वाला जीवन देने के लिए इन लोगों की देखभाल में भी खास खयाल रखे जाने की जरूरत होती है. डाउन सिंड्रोम वाले लोगों की मानसिक और शारीरिक विकास की निगरानी के साथ-साथ फिजियोथैरेपी, रेगुलर कंसल्टेंसी और स्पेशल एजुकेशन जैसे बिंदुओं पर विशेष रुप से ध्यान देने की जरूरत होती है.

पढ़ें : Health Tips for Typhoid : समय पर इलाज न मिले तो मामूली सा बुखार हो सकता है जानलेवा, डॉक्टर से जानिए कैसे करें बचाव

यह मॉडल और एक्टर हैं मिसाल : शॉर्ट फिल्म एन आयरिश गुडबाय के लिए ऑस्कर जीतने वाले जेम्स मार्टिन डाउन सिंड्रोम से पीड़ित हैं. वह इस खासियत के साथ अवॉर्ड से सम्मानित होने वाले पहले व्यक्ति बने थे. ऑस्कर दिवस पर मार्टिन का जन्मदिन था और मंच पर दर्शकों ने उनके लिए 'हैप्पी बर्थडे' गाया. जेम्स मार्टिन डाउन सिंड्रोम पीड़ित अन्य लोगों के लिए एक मिसाल है, क्योंकि अक्सर ऐसे लोगों को समाज पीछे छोड़ देता है. इसी तरह से मॉडल एली गोल्डस्टीन डाउन सिंड्रोम पीड़ित लोगों के लिए एक मिसाल है. वह बी. डी. मैनेजमेंट के साथ साल 2017 के बाद से काम कर रही हैं. एली के दोस्तों ने मॉडलिंग की दुनिया में आने के लिए उनकी मदद की थी. जेऐम्स और एली आज दुनिया के सामने डाउन सिंड्रोम पीड़ित लोगों के लिए एक मिसाल हैं.

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