जयपुर. सरकारी स्कूलों में तृतीय भाषा के रूप में उर्दू की मैपिंग को लेकर सवाल उठने लगे हैं. अभिभावकों का आरोप है कि उनकी सहमति के बिना ही उनके बच्चों की तृतीय भाषा की मैपिंग की जा रही है और बच्चों के लिए संस्था प्रधान ही उर्दू के स्थान पर संस्कृत का चयन कर रहे है. अभिभावकों ने इस मामले की जांच करा कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है.
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दरअसल प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी बजट घोषणा 2021 में कहा था कि राजस्थान के सरकारी स्कूलों में अल्पसंख्यक विद्यार्थी यदि कक्षा 6 से उर्दू की पढ़ाई करना चाहता है, तो उसके लिए स्कूलों में मैपिंग करवाई जाएगी और मैपिंग के आधार पर ही बच्चों के पढ़ने के लिए वहां उर्दू शिक्षकों की व्यवस्था भी की जाएगी. मुख्यमंत्री की बजट घोषणा के बावजूद भी कई सरकारी स्कूलों में मैपिंग को लेकर फर्जीवाड़ा किया जा रहा है और संस्था प्रधान खुद ही बच्चों की मैपिंग कर रहे हैं.
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राजस्थान उर्दू शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अमीन कायमखानी का कहना है कि शिक्षा विभाग में संकीर्ण मानसिकता के चलते सही तरह से उर्दू भाषा की मैपिंग नहीं की जा रही. स्कूल के प्राचार्य व प्रधानाध्यापक अपनी तरफ से बच्चों के लिए तृतीय भाषा की मैपिंग कर रहे हैं. जबकि इसमें अभिभावकों और बच्चे की सहमति जरूरी है. अधिकतर बच्चों के लिए संस्था प्रधानों ने अभिभावकों की सहमति नहीं ली और मैपिंग के लिए तृतीय भाषा के रूप में संस्कृत अंकित कर दिया.
उन्होंने मांग की सीएमओ स्तर से मैपिंग की मॉनिटरिंग हो और मैपिंग के लिए तारीख बढ़ाई जाए. उर्दू को लेकर जो गलत मैपिंग हुई है उसको भी दुरुस्त किया जाए. अभिभावक भी तृतीय भाषा की मैपिंग को लेकर अनजान हैं. अभिभावकों का कहना है कि जब हम स्कूल पहुंचे तो पता चला कि उनके बच्चों की मैपिंग स्कूल के टीचर्स ने ही कर दी. उन्होंने ही अभिभावकों के हस्ताक्षर कर मैपिंग कर दी और दस्तावेज आगे भेज दिए है.