जयपुर. भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को हम शिक्षक दिवस के रूप में सेलिब्रेट करते है. उनका जन्म तमिलनाडु के तिरुतनी गांव के एक गरीब परिवार में हुआ था. राधाकृष्णन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लूनर्थ मिशनरी स्कूल, तिरुपति और वेल्लूर में पूरी की. इसके बाद वे आगे की पढ़ाई करने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज चले गए.
उनके परिवार के आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि एक बार तो उन्होंने अपने परिवार का पेट भरने के लिए अपने मेडल तक बेच दिए थे. कहते हैं कि उनका परिवार केले के पत्तों पर ही भोजन किया करता था. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एक बार की घटना है कि जब राधाकृष्णन के पास केले के पत्ते खरीदने के पैसे नहीं थे. तब उन्होंने जमीन को साफ किया और जमीन पर ही भोजन कर लिया.
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एक बार उनके कुछ स्टूडेंट्स और दोस्तों ने उनसे कहा कि वे उनके जन्मदिन को सेलिब्रेट करना चाहते हैं. तब उन्होंने कहा था. मेरा जन्मदिन अलग से मनाने की बजाए इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए, तो मुझे ज्यादा खुशी होगी. राधाकृष्णन को 27 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था. साथ ही 1954 में उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया.
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वेजिटेरियन राधाकृष्णन की थाली में रखा गया मांस
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के इसी चीन यात्रा से जुड़ा एक और वाक्या बेहद रोचक है. कहा जाता है कि एक बार जब माओ और राधाकृष्णन एक साथ बैठकर खाना खा रहे थे. तभी माओ ने खाते-खाते स्नेह जताने के लिए चॉपस्टिक से अपनी प्लेट से खाने का एक निवाला उठाकर राधाकृष्णन की प्लेट में रख दिया. जबकि माओ को नहीं पता था कि राधाकृष्णन पूरी तरीके से शाकाहारी हैं. माओ के इस प्यार का राधाकृष्णन ने भी सम्मान किया. उन्होंने माओ को अहसास नहीं होने दिया कि उन्होंने कोई गलती की है.
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जब सर्वपल्ली की कटी अंगुली देख द्रवित हो उठे थे माओ
राधाकृष्णन और माओ से जुड़ा एक और किस्सा बेहद रोचक है. एक बार राधाकृष्णन कंबोडिया गए हुए थे. यहां उनके साथ गए सहयोगी की गलती की वजह से कार के दरवाजे से राधाकृष्णन की अंगुली की हड्डी टूट गई थी. राधाकृष्णन जब चीन पहुंचकर माओ से मिले. तो उनकी नजर अंगुली पर गई. उन्होंने पहले तत्काल अपने डॉक्टर को बुलाकर उसका मलहम-पट्टी कराया. इसी दौरान उन्होंने उनसे अंगुली के चोटिल होने की वजह भी जानी.