जयपुर. बाल अधिकारों और सरंक्षण को लेकर जयपुर में दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है. जयपुर में रेलवे कॉलोनी के अरावली सभागृह में कार्यशाला का शुभारंभ किया गया. रेलवे सुरक्षा विभाग और प्रयास जेएसी सोसायटी की ओर से आयोजित हो रही इस कार्यशाला में चाइल्ड प्रोटक्शन एंड डीलिंग विद चिल्ड्रन इन कांटेक्ट विद रेलवेज विषय पर चर्चा की गई.
कार्यशाला के पहले दिन रेलवे के संपर्क में आने वाले बच्चों को न्याय तक पहुंचाने के उपायों पर भी चर्चा की गई. 2 दिन तक चलने वाली इस कार्यशाला में रेलवे के कई वरिष्ठ अधिकारी बच्चों से संबंधित अपराध और बाल तस्करी से जुड़े विभिन्न मुद्दों को लेकर चर्चा करेंगे. कार्यशाला में वक्ताओं ने बाल अधिकार और उनके सुरक्षा उपायों को लेकर विस्तार से चर्चा की. कार्यशाला में आरपीएफ, जीआरपी, टीटीइ, ग्राउंड स्टाफ के अधिकारियों के साथ कूली, वेंडर्स, टैक्सी चालक सहित कई सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल हुए. रेलवे कर्मचारियों को बाल अधिकारियों के महत्व की जानकारी भी दी गई.
राजस्थान स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी के मेंबर सेक्रेट्री अशोक जैन ने कहा कि बच्चों की देखभाल और सुरक्षा की जरूरत के संदर्भ में हमें अपना व्यवहार बदलने की आवश्यकता है. जुवेनाइल जस्टिस को समझने के लिए न्याय प्रणाली की औपचारिक और पारंपरिक प्रक्रियाओं के स्थान पर अनौपचारिक प्रणाली की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले 29 प्रतिशत बच्चों की उम्र 5 साल तक होती है और 28 प्रतिशत बच्चे 6 से 10 वर्ष की आयु समूह के हैं. मिसिंग होने वाले बच्चे आमतौर पर इस समूह के होते हैं.
प्रिंसिपल चीफ सिक्योरिटी कमिश्नर रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स सर्वप्रिय मयंक ने कहा कि देश में बच्चों की बड़ी आबादी के अतिरिक्त आर्थिक पिछड़ेपन जैसे कारणों की वजह से बच्चे अपनी परिवारों का सहयोग करने के लिए अधिकतर काम की तलाश में अन्य राज्यों में चले जाते है. देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले ऐसे बच्चे जो आरपीएफ के संपर्क में आते हैं. उनमें से 60 प्रतिशत बच्चों को उनके परिवारों के साथ फिर से जोड़ दिया गया है.
प्रयास जेएसी सोसायटी के जनरल सेक्रेटरी आमोद कांत ने कहा कि 2016- 17 के पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार भारत में लगभग एक लाख बच्चे प्रति वर्ष लापता हो रहे हैं. रेलवे स्टेशन इन बच्चों के लिए एक प्रमुख आश्रय होते हैं. ऐसे में रेलवे सुरक्षा बल के अधिकारियों के लिए यह आवश्यक है कि रेलवे स्टेशनों पर इन बच्चों की पहचान करें और उन्हें हेल्पलाइन, चाइल्ड वेलफेयर कमेटी और अन्य माध्यमों के सहयोग से इनका बचाव करें. इससे बाल तस्करी रोकने में भी सहायता मिलेगी. डिपार्टमेंट फॉर चाइल्ड राइट्स राजस्थान के डायरेक्टर निष्काम दिवाकर ने कहा कि नेशनल चाइल्ड प्रोटक्शन कमीशन जैसे संगठन बच्चों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य कर रहे हैं. जुवेनाइल जस्टिस एक्ट और उसको एक जैसे कानून भी बच्चों के संरक्षण की गारंटी देते हैं.