जयपुर. राजस्थान की शान हिंदुआ सूरज महाराणा प्रताप की आज पूरा देश जयंती मना रहा है. इस मौके पर आपको बताते हैं कि महाराणा प्रताप और आमेर के शासकों के बीच कैसा रिश्ता रहा है. क्या हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप और मिर्जा राजा मानसिंह आमने-सामने युद्ध लड़े थे? क्या उनमें किसी तरह की शत्रुता थी?
9 मई 1540 को जन्मे महाराणा प्रताप भीलों के बीच पले-बढ़े. जंगलों में घूमना, संघर्ष करना ये सब उन्होंने भीलों से ही सीखा. जो आगे चलकर उनके काम आया. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि मेवाड़ का आमेर से अच्छा रिश्ता रहा है. खांडवा के युद्ध में आमेर के राजा ने मेवाड़ की तरफ से लड़े थे. राणा सांगा को बचाकर लेकर आने वाले यहां के कछवाहा ही थे. हालांकि, अकबर की साम्राज्यवाद नीति के चलते इनमें विरोधाभास हुआ. तब अकबर की नीति का दो लोगों ने विशेष विरोध किया. जिसमें जोधपुर के राव चंद्रसेन और मेवाड़ के महाराणा प्रताप का नाम आता है.
17 साल तक जंगलों में भटकते रहे महाराणा प्रताप : महाराणा प्रताप ने संघर्ष करते एक के बाद एक युद्ध लड़े और लगभग 17 साल तक जंगलों में भटकते रहे. जंगलों में ही उन्होंने चावंड नाम से राजधानी भी बनाई. इतिहासकार ने बताया कि आमेर के राजा मिर्जा राजा मानसिंह हल्दीघाटी युद्ध से पहले महाराणा प्रताप को मनाने के लिए गए थे. मान सिंह ने महाराणा प्रताप और अकबर के साथ बातचीत करने के लिए भी कहा था, लेकिन महाराणा प्रताप को अधीनता शब्द स्वीकार नहीं था. उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि ना तो बेटी देंगे, ना उनके साथ खाना खाएंगे. महाराणा प्रताप ने मानसिंह को उनके स्तर पर स्वतंत्र होने की बात कही थी. चूंकि आमेर की राजकुमारी की शादी भी अकबर से हुई थी. यहां खुला मैदान था और आमेर मेवाड़ की तुलना में बहुत ज्यादा असुरक्षित था. हालांकि महाराणा प्रताप और मानसिंह के बीच बातचीत के दौरान महाराणा प्रताप के सामंत ड्योढ़ा भीम ने मानसिंह पर जातिगत टिप्पणी की. इस पर मानसिंह बातचीत को अधूरी छोड़कर वापस चले गए और फिर इसी हल्दीघाटी युद्ध में मुगल सेना की अगुवाई भी की.
मानसिंह अकबर की तरफ से लड़ रहे थे : इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि महाराणा प्रताप के प्रति मिर्जा राजा मानसिंह का बहुत आदर था. मानसिंह अकबर की तरफ से लड़ रहे थे. बावजूद इसके हल्दीघाटी युद्ध में एक समय ऐसा था कि हल्दीघाटी के बनास के मुहाने पर महाराणा प्रताप पकड़े जा सकते थे. मुगल सेना उनके पीछे पड़ी हुई थी. बदायूं में भी लिखा है कि 'इस दौरान अचानक ऐसा कुछ हुआ कि महाराणा प्रताप का पीछा कर रहे सवारों को पीछे से किसी ने रोक दिया और राणा प्रताप नाले को पार कर गए. उस वक्त तक चेतक को चोट लग चुका था और उसकी मौत हो गई थी. इसकी सूचना अकबर को लग गई थी कि महाराणा प्रताप मानसिंह के हाथ से निकल गए और ये भी पहुंच गया कि मानसिंह ने महाराणा प्रताप को भगाने में मदद की. इस पर अकबर नाराज भी हुआ और मानसिंह की ड्योढ़ी भी बंद कर दी.' मानसिंह का मानना था कि राजपूतों की तरफ से महाराणा प्रताप लड़ रहे हैं. उनके कानों में ये बात पड़ चुकी थी कि इस्लाम बढ़ाया जा रहा है. इसलिए उन्होंने इनडायरेक्टली महाराणा प्रताप की मदद की और हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप का जीवन बचाने में अहम रोल रहा.
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मेवाड़ हमेशा से हिंदुओं के लिए सिरमौर रहा : महाराणा प्रताप के नाम के साथ हिंदुओं सूरज जुड़ा हुआ है. इसे लेकर देवेंद्र कुमार भगत ने कहा कि मेवाड़ हमेशा से हिंदुओं के लिए सिरमौर रहा है. अंग्रेजी इतिहासकार हो या फिर गौरी शंकर, हीराचंद ओझा और आधुनिक इतिहासकार सभी ने एक मत होकर इसे स्वीकार किया है कि अगर हिंदुआ सूरज कोई हो सकता है, तो वो महाराणा प्रताप हो सकते हैं. समकालीन इतिहास को टटोले तो अमरसार, प्रताप रासो, अमर काव्य और राज प्रशस्ति के अंदर हिंदुआ सूरज के सिरमोर की बात की गई है. राणा प्रताप के साथ ये शुरुआत से ही जुड़ा है कि उन्होंने कभी अपना आत्म सम्मान नहीं बेचा. ऐसा उदाहरण पूरे विश्व में देखने को नहीं मिलता.
महाराणा प्रताप की वीरता शौर्य के अलावा उनमें चित्रकला का भी हुनर था. चावंड शैली की चित्रकारी उन्होंने ही चलाई. बहरहाल, राणा प्रताप का जीवन ही संघर्ष था, जो आज भी हमें प्रेरणा देता है कि हम विपरीत परिस्थितियों में आगे बढ़े.