जयपुर. इस मुल्क ने आजादी के बाद बहुत तरक्की कर ली, लेकिन आज भी देश में कुछ गांव ऐसे है जो अपनी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे है. ऐसा ही धौलपुर जिले में एक गांव राजघाट है जिसकी 2 साल पहले की तस्वीर और आज की तस्वीर में जमीन-आसमान का फर्क आ गया. और इतना सब कुछ हुआ जयपुर के सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज के छात्रों के जुनून की वजह से जिन्होंने इस बदहाल गांव को पहली बार उम्मीद की रोशनी से सरोबार कर दिया.
जब जुनून और मजबूत आत्मविश्वास हो तो हर मुश्किल काम आसान बन जाता है. ऐसा ही हौसला था एसएसएस मेडिकल कॉलेज के छात्र अश्वनी पारासर और उनकी टीम का जिन्होंने गांव में वंचित मूलभूत सुविधाओं को लाने के लिए दिन-रात एक कर दिया. आज इन्हीं के प्रयासों की बदौलत गांव की तस्वीर बदल गई है. जिन लोगों को मोबाइल चार्ज करने के लिए भी शहर जाना पड़ता था, आज उनके घर में तीन-तीन बिजली के बल्ब जल रहे हैं. जिन्हें गांव के गंदे पानी पर आश्रित रहना पड़ता था, वे आज फिल्टर पानी पी रहे हैं.
राजघाट गांव आजादी के बाद भी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए तरस रहा था. हालात यह थे कि इस गांव में न पानी की पर्याप्त सुविधा थी, और ना ही बिजली. लोग चंबल का पानी पीने को मजबूर थे. कई दफा चंबल नदी में तैरकर आई लाशों के बीच लोगों को पानी पीना पड़ता था. यहीं नहीं राजघाट गांव में बिजली-पानी नहीं होने के कारण लोग इस गांव में अपनी बेटियां भी नहीं देते थे.
यूं बदली तस्वीर
ऐसे में उम्मीद की किरण बन कर आए धौलपुर के रहने वाले एक डॉक्टर अश्विनी पाराशर जो दिवाली की छुट्टियां मनाने इस गांव के लोगों के बीच आए थे. जब गांव के लोगों ने अपनी समस्या बताई तो उन्होंने परिवर्तन की ठानी. सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस कर रहे डॉ अश्विनी पाराशर ने बताया कि जब वे पहली बार इस गांव में पहुंचे तो उन्हें यह देखकर विश्वास नहीं हुआ कि आज तक इस गांव में पानी और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं लोगों तक नहीं पहुंची है. जिसके बाद उन्होंने प्रशासन से गुहार लगाई लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी. फिर उन्होंने कोर्ट में राइट टू लाइफ की याचिका लगाई. उन्होंने एक गुजरात के एनजीओ की मदद से गांव में फिल्टर वाटर सिस्टम लगाए.
इसके लिए अश्विनी पाराशर ने पीएम को भी खत लिखा. पीएम से जवाब खत का जवाब आया तो अधिकारियों में खलबली मच गई. इसके बाद मामला सुर्खियों में आने लगा तो एक साथ 15 अधिकारियों ने गांव का दौरा किया. यह पहली बार था जब कोई अधिकारी गांव में पहुंचे. उन्हें लगने लगा कि अब उनकी मेहनत रंग लाने लगी है. क्राउड फंडिंग के तौर पर उन्होंने फंड इकट्ठा किया और गांव में सोलर लाइटे लगवा दी. हाईकोर्ट के नोटिस के बाद अधिकारियों की नींद खुली और 5 मई 2019 को गांव में पहली बार बिजली पहुंची. ग्रामीणों ने इस अवसर को त्यौहार के रूप में मनाया. खास बात यह रही कि अक्षय तृतीया के दिन गांव की एक बेटी की शादी थी, और यह पहली शादी थी जिसमें बिजली का भी इस्तेमाल हुआ.
लोगों की गरीबी देखकर नॉर्वे आगे आया
इस गांव के लोग काफी गरीब है और जब बिजली इस गांव तक पहुंची तो लोगों के पास कनेक्शन के लिए डिमांड ड्राफ्ट का पैसा नहीं था. ऐसे में अश्विनी पाराशर ने नॉर्वे की ऑस्लो सिटी की इंडियन नॉर्वेजियन कम्युनिटी से बात की तो उन्होंने बिजली के कनेक्शन का पैसा भेजा.