जयपुर. राजस्थान विधानसभा चुनाव में केवल कुछ ही महीनों का वक्त है. ऐसे में चुनावी माहौल में प्रदेश के कर्मचारी एक बार फिर गहलोत सरकार के लिए सिरदर्द बनते जा रहे हैं. सरकार पर वादा खिलाफी का आरोप लगाते हुए अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ एकीकृत शुक्रवार को राजधानी जयपुर की सड़कों पर उतर आया.
पुलिस और कर्मचारियों के बीच धक्का-मुक्की : महासंघ एकीकृत के प्रदेश अध्यक्ष गजेंद्र सिंह राठौड़ के नेतृत्व में 17 सूत्री मांगों को लेकर बड़ी संख्या में कर्मचारी शहीद स्मारक पर एकत्रित हुए. इसके बाद रैली के रूप में सिविल लाइन फाटक की तरफ कूच करने लगे तो पुलिस ने उन्हें रोक लिया. इस दौरान पुलिस और कर्मचारियों में हल्की धक्का-मुक्की हुई, लेकिन बाद में सीएम से मुलाकात के आश्वासन पर कर्मचारी मान गए. कर्मचारियों ने सरकार को चेताया कि घोषणा पत्र में किए वादे पूरे नहीं हुए तो आने वाले विधानसभा चुनाव में यही कर्मचारी सरकार को सत्ता से बाहर निकालेगा.
खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहे कांग्रेस : अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ (एकीकृत) के प्रदेशाध्यक्ष गजेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि आंदोलन के प्रथम चरण में 2 अगस्त को प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों पर धरना-प्रदर्शन कर जिला कलेक्टर को मुख्यमंत्री के नाम के ज्ञापन सौंपा गया. दूसरे चरण में राजधानी जयपुर में एक प्रदेशव्यापी रैली निकाली गई है. फिर भी सरकार नहीं मानती है तो आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इसका खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहे.
2018 का वादा आज तक अधूरा : राठौड़ ने कहा कि सरकार ने जन घोषणा पत्र 2018 में राज्य कर्मचारियों से वेतन विसंगतियों को दूर करने का वादा किया था, लेकिन आज तक अपने उस वादे को पूरा नहीं किया है. वेतन विसंगतियों को दूर करने के लिए डी सी सामंत और खेमराज चौधरी की अध्यक्षता में गठित समितियों की रिपोर्ट सरकार के पास है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कर्मचारी हित में वेतन संशोधन की रिपोर्ट को शीघ्र सार्वजनिक करें और उसे कर्मचारियों की सलाह से लागू करें.
वादे भूल गई गहलोत सरकार : उन्होंने बताया कि घोषणापत्र में संविदा कर्मियों सहित अन्य सभी अस्थाई कर्मचारियों को नियमित करने का भी वादा किया गया था, लेकिन इस वादे को भी सरकार ने पूरा नहीं किया है. सरकार ने संविदा कर्मचारियों का नियमितीकरण करने के बजाए संविदाकरण कर दिया है. इस सरकार ने चुनाव से पहले कई तरह के वादे कर्मचारियों से किए, जिसकी बदौलत कांग्रेस सरकार बना पाई, लेकिन सरकार बनने के बाद घोषणा पत्र में किए वादे गहलोत सरकार भूल गई.
ये हैं प्रमुख मांगें :
- चयनित वेतनमान (एसीपी) का परिलाभ 9, 18 और 27 वर्ष के स्थान पर 8, 16, 24 और 32 वर्ष पर पदोन्नति पद के समान दिया जाए.
- तृतीय श्रेणी अध्यापकों के स्थानांतरण खोले जाएं और सभी कर्मचारियों के लिए एक स्पष्ट और पारदर्शी स्थानांतरण नीति बनाई जाए.
- अर्जित अवकाश की सीमा 300 दिवस से बढ़ाकर सेवानिवृत्ति तक जोड़ने के आदेश जारी किए जाएं.
- अधीनस्थ मंत्रालयिक संवर्ग को सचिवालय कर्मियों के समान पदोन्नति और वेतन भत्ते दिए जाएं. इसके साथ द्वितीय पदोन्नति ग्रेड पे 4200 पर सुनिश्चित की जाए.
- निविदा और संविदा पर लगे कार्मिकों का न्यूनतम पारिश्रमिक 18,000 रुपए तय किया जाए. इसके साथ बजट घोषणा 2023 के अनुसार ठेका प्रथा समाप्त कर राज्य के सभी निविदा/ ठेका और प्लेसमेंट एजेंसियों के मार्फत लगे कार्मिकों को आर एल एस डी सी के माध्यम से सीधे वेतन देने के आदेश जारी किए जाएं.
- राजस्थान परिवहन निगम को सरकार के विभाग के रूप में समाहित किया जाए.
- एमटीएस का पद सृजित कर सहायक कर्मचारियों को उसमें समायोजित किया जाए और इनका प्रारंभिक वेतन 18000 रुपए निर्धारित किया जाए.
- सत्र 2009-10 से पातेय वेतन पर पदस्थापित वरिष्ठ अध्यापक और प्रधानाध्यापक ग्रेड सेकंड को एडहॉक प्रमोशन की दिनांक से नियमित पदोन्नति सुनिश्चित की जाए.
- मुख्यमंत्री के आश्वासन के बाद जेल कर्मियों ने अपने वेतन संशोधन के आंदोलन को स्थगित कर दिया था, वार्ता में लिए गए निर्णय की पालना सुनिश्चित की जाए.
- पेंशनरों को 75 और 80 वर्ष पर 10-10% पेंशन वृद्धि के स्थान पर 65, 70, 75 और 80 वर्ष पर क्रमशः 5-5% पेंशन वृद्धि के आदेश जारी किए जाएं.