जयपुर: राजस्थान में नागरिकों के स्वास्थ्य सुरक्षा के दावों को लेकर एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं. गहलोत सरकार ने हर व्यक्ति को स्वास्थ्य का अधिकार देने के लिए राइट टू हेल्थ बिल को सदन में (Right to Health Bill in Rajasthan) लाया था. साथ ही इस बिल को प्रवर समिति को भेजे दो महीने से ऊपर हो चुके हैं. इसके बावजूद अभी तक सेलेक्ट कमेटी तक नहीं बन सकी है. ऐसे में अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या गहलोत सरकार राइट टू हेल्थ बिल को लेकर बैकफुट (Gehlot government on backfoot) पर है. वहीं, जन स्वास्थ्य अभियान राजस्थान की ओर से एक मजबूत स्वास्थ्य सेवा के अधिकार कानून की मांग की गई है.
राजस्थान में स्वास्थ्य अधिकार कानून का इतिहास: कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में स्वास्थ्य अधिकार कानून को लागू कराने की बात कही थी. सूबे में कांग्रेस सरकार बनने के बाद सामाजिक संगठनों ने वादे की याद दिलाई. जन स्वास्थ्य अभियान ने कानून का एक प्रारूप बनाकर तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री और अतिरिक्त मुख्य सचिव चिकत्सा को प्रस्तुत भी किया . जिसके बाद स्वास्थ्य मंत्री के निर्देश से गठित समिति में भी सदस्य के रूप में सामाजिक संगठन के सदस्यों ने कुछ संशोधनों के साथ नया प्रारूप बनाकर प्रस्तुत किया. लेकिन सरकार ने मार्च 2022 को अतिरिक्त संशोधनों के साथ एक नया प्रारूप बनाया, जो खासा कमजोर था.
2 माह बाद भी नहीं बन सकी सलेक्ट कमेटी: इस ड्राफ्ट को अनेकों संशोधनों के बाद 22 सितंबर 2022 को सरकार ने एक नए प्रारूप में राजस्थान विधानसभा में प्रस्तुत किया. जिसे मार्च वाले प्रारूप से भिन्न व कमजोर करार दिया गया. 23 सितंबर 2022 को विधानसभा में लगभग 28 विधायकों ने इस विधेयक से संबंधित चर्चा में भाग लिया और अपने मत प्रकट किए. 23 सितंबर को जब सदन में चर्चा हो रही थी, तब चिकत्सकों के एक दल ने विधानसभा के बाहर घंटों प्रदर्शन कर इसका विरोध किया था. हालांकि, सदन में चर्चा के बाद इस विधेयक को प्रवर समिति को प्रेषित करने का निर्णय लिया गया. तब यह भी कहा गया था कि इस विधेयक को प्रवर समिति गठित कर एक सप्ताह के भीतर सभी के सुझाव लेने के बाद फिर से विधानसभा में विशेष सत्र बुलाकर पारित किया जाएगा. लेकिन अब दो महीने बीतने के बाद भी स्थिति वही ढाक के तीन पात वाली है.
बिल की वर्तमान स्थिति: अभियान के सदस्यों की मानें तो दो माह से ऊपर निकल जाने के बाद भी अभी तक प्रवर समिति का गठन नहीं हुआ है. जिसकी वजह से कानून लाए जाने की पूरी प्रक्रिया अधर में अटकी है. राज्य के स्वास्थ्य सचिव की ओर हस्ताक्षरित एक पत्र में संभागीय सयुंक्त निदेशकों को यह निर्देश दिए गए कि वे अपने क्षेत्र में निजी चिकित्सकों से संपर्क कर उनका इस विधेयक पर मत जान उन्हें सूचित करें. लेकिन विभाग की ओर से समाज सेवी संगठनों का मत जानने के लिए अभी तक कोई प्रयत्न नहीं किया गया है. जन स्वास्थ्य अभियान राजस्थान ने विधेयक पर अपने सुझाव सरकार को लिखित में दिए हैं.