जयपुर. राजधानी जयपुर का ऐतिहासिक रामलीला मैदान आज सूना पड़ा है. कोरोना के कारण करीब 80 साल से संचालित (Ramleela Maidan in Jaipur) रामलीला के मंचन पर कुछ इस तरह ब्रेक लगा कि दो साल बाद परिस्थितियां सामान्य होने के बाद भी रामलीला मैदान की रौनक लौट नहीं पाई. प्रशासन भी इसके रखरखाव पर ध्यान नहीं दे रहा है. अब यह मैदान पूरी तरह पार्किंग प्लेस बन गया है.
एक समय था जयपुर के रामलीला मैदान में रामलीला देखने के लिए पूरा शहर उमड़ता था. मंच पर लक्ष्मण की ललकार, केवट के जरिए नदिया पार, अल्बर्ट हॉल से लवाजमे के साथ आते श्रीराम, ये दृश्य हर जयपुरवासी के जहन में बसे हुए हैं. लेकिन धीरे-धीरे यह परंपरा से सिमटती चली गई. हालांकि, रामलीला का विस्तार जरूर हुआ है. जयपुर के कई क्षेत्रों में रामलीला का मंचन हो रहा है.
दो साल बाद रामलीला : जयपुर में आदर्श नगर स्थित श्रीराम मंदिर, जवाहर नगर स्थित शिव मंदिर और पहली मर्तबा जवाहर कला केंद्र में भी रामलीला का मंचन हो रहा है. इस बार लोगों को दो साल बाद फिर से रामलीला देखने को मिल रही है. ऐसे में लोगों में काफी उत्साह भी है. लेकिन शहर के न्यूगेट स्थित रामलीला मैदान इस बार भी सूना पड़ा है.
पढ़ें. अलवर में होगा 75 फुट ऊंचे रावण का दहन, विशेष तकनीक से धीरे-धीरे जलेगा रावण
ऐसे हुई थी रामलीला की शुरुआत : रामलीला का इतिहास जयपुर स्थापना के समय से (History of Ramleela in Jaipur) जुड़ा हुआ है. जयपुर के स्थापना के बाद सवाई जयसिंह द्वितीय के समय से शहर में रामलीला होती आई है. इसके बाद न्यू गेट स्थित प्रदर्शनी मैदान में रामलीला शुरू हुई. इसके बाद इस मैदान का नाम ही रामलीला मैदान पड़ गया. यहां आजादी के पहले से ही रामलीला होती आ रही है. रामलीला की इस परंपरा ने लोगों को ऐसे जोड़ा कि शहर के विस्तार के साथ रामलीला का मंचन बढ़ता चला गया. स्थानीय लोगों के बाद मथुरा, वृंदावन से भी कलाकार आकर रामलीला को साकार करने लगे. आधुनिक दौर में भी बुजुर्ग से लेकर युवा को रामलीला मंचन का इंतजार रहता है.
रामलीला मैदान बना पार्किंग स्पॉट : वर्तमान में रामलीला मैदान पार्किंग स्पॉट बना हुआ है. यहां हर दिन सैकड़ों टू व्हीलर और फोर व्हीलर पार्क होते हैं. शारदीय नवरात्रों में भी यह स्थिति बनी हुई है. हालांकि स्थानीय लोगों की मानें तो रामलीला के मंचन के जरिए भगवान श्री राम का जीवन संदेश युवाओं में जाता है. लेकिन 3 साल से रामलीला का मंचन नहीं हुआ और रामलीला मैदान को पार्किंग प्लेस बना दिया है. उन्होंने बताया कि परिवार की तीन पीढ़ी इस पारंपरिक रामलीला को देखते आ रही है. ऐसे में यदि गोलछा परिवार इसे नहीं करा रहा तो प्रशासन या सरकार को पहल करते हुए इस परंपरा को जारी रखा जाना चाहिए था.
पूर्व डिप्टी मेयर मनोज भारद्वाज ने रामलीला का मंचन नहीं होने को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि रियासत काल (Ramleela Maidan in Jaipur turned to Parking spot) से ये परंपरा जयपुर शहर में चली आ रही है. लेकिन कोरोना काल में रामलीला का मंचन नहीं हुआ. इस बार रामलीला आयोजन कराने वाली ट्रस्ट रजामंद नहीं हुई. चूंकि निगम प्रशासन पहले भी इसमें पार्टिसिपेट करता रहा है, ऐसे में ये परंपरा न टूटे इसे ध्यान में रखते हुए निगम को पहल करते हुए रामलीला का मंचन कराना चाहिए था. जहां तक रामलीला मैदान के रख-रखाव का सवाल है तो निगम यहां पार्किंग से लाखों रुपए जनरेट करता है. ऐसे में जयपुर की सांस्कृतिक धरोहर को संवारने का काम भी निगम को करना चाहिए.
लोगों की रुचि हुई कम : इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि आजादी के पहले रामलीला मैदान (Ramleela in Jaipur) विकसित हुआ था. यहां मेहताब गोलछा का परिवार दशकों से रामलीला का मंचन कराता आ रहा है. पहले यहां करीब एक से डेढ़ महीने तक रामलीला का भव्य मंचन हुआ करता था. सीता हरण, राम का पराक्रम, उड़ते हुए हनुमान को देखने के लिए पूरा शहर उमड़ा कराता था. हालांकि वर्तमान में रामलीला मैदान के मूल स्वरूप से काफी छेड़छाड़ हो चुका है.
पढ़ें. अयोध्या की रामलीला में परशुराम बने सांसद मनोज तिवारी, कहा- PFI पर सही एक्शन
राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष अशोक पांड्या ने बताया कि रामलीला मैदान मुख्य सांस्कृतिक केंद्र हुआ करता था. पहले मैदान छोटा था, मंच भी ऐसा नहीं था. रामलीला का वर्चस्व ऐसा था कि यहां राज्यपाल और मुख्यमंत्री तक पहुंचते थे. तब ये पूरे शहर की रामलीला होती थी. अब इसमें लोगों ने रुचि दिखाना कम कर दिया है. हालांकि शहर के विस्तार के साथ रामलीला के मंच भी बढ़ते गए. लेकिन बीते 3 साल से जिस मैदान का नाम ही रामलीला मैदान है वो ही सूना पड़ा है और शहर वासियों की आंखों में अपनी धूमिल हुई छवि को ढूंढता नजर आता है.