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Special : डिजिटलाइज हो रहा राजस्थानी फड़ आर्ट, ऐसे होगा 700 साल पुरानी कला का विस्तार... - Rajasthani Phad art is getting digitized

आज राजस्थान की पारंपरिक फड़ आर्ट को आधुनिक समाज (Digitalization of phad art starts) से जोड़ने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं, जिसमें सबसे अहम है इसका डिजिटल स्वरूप. इस आर्ट के पूरी तरह से डिजिटलाइज होने से कई तरह की सहूलियत होगी, जिसमें शिक्षा से लेकर मनोरंजन तक शामिल है...

Digitalization of phad art starts
Digitalization of phad art starts
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Published : Dec 27, 2022, 9:03 PM IST

राजस्थान की पारंपरिक फड़ आर्ट

जयपुर. कला जीवन का अनुकरण करती है, इसलिए राजस्थान की (Rajasthani Phad painting) पारंपरिक फड़ कला को आधुनिक समाज में प्रासंगिक बनाने के लिए डिजिटल करने का प्रयास किया जा रहा है. धार्मिक अनुष्ठान और मनोरंजन कार्यक्रमों में गौरव बनने वाली इस कला को अब बंद अलमारियां से निकालकर युवाओं से जोड़ने की कोशिश की जा रही है.

दरअसल, राजस्थान की खूबसूरती यहां के (Expansion of 700 years old art) किले, महल और बावड़ियों तक ही सीमित नहीं है. यहां रेत के टीलों, लोक कला, परंपरा और इतिहास में भी इसकी खूबसूरती देखने को मिलती है. राजस्थान में कहानी कहने, कठपुतली नृत्य, हरि कथा और अन्य सामाजिक-धार्मिक गतिविधियों की पृष्ठभूमि के रूप में कला का बड़े पैमाने पर मनोरंजन के क्षेत्र में इस्तेमाल किया जाता रहा है, लेकिन तकनीक के आने से ये सब कहीं पीछे छूटता चला गया. ऐसी ही एक कला है जिसे हम फड़ के नाम से जानते हैं. राजस्थान के भीलवाड़ा से शुरू हुई 700 साल पुरानी फड़ पेंटिंग कहानी कहने का एक माध्यम है. जिसमें ज्यादातर देवी-देवताओं की कहानियां, राजाओं की युद्ध के चित्रण या संदेशों को एक गायक (भोपा) फड़ के जरिए पेश करता था.

इसे भी पढे़ं - फड़ चित्रकार ने अपनी कला के माध्यम से समझाया कोरोना की शुरुआत से लेकर अब तक का सफर..

सिटी पैलेस के डायरेक्टर एजुकेशन व विशेषज्ञ संदीप सेठी ने बताया कि राजा-महाराजाओं के जमाने में सूती कपड़े को फोल्ड कर चित्रकारी की जाती थी. कोई राजा युद्ध जीतकर आता था या (Traditional Phad Art of Rajasthan) जनता के बीच कोई संदेश पहुंचाना होता था तो कपड़ों पर चित्र बनाकर ले जाए जाते थे, जिसे भोपा गाकर सुनाया जाता था. इसी के जरिए मनोरंजन भी हुआ करते थे. एक दीए के माध्यम से फड़ के उस हिस्से को दिखाया जाता था, जिसके बारे में बताया जा रहा है. ये राजस्थान की पुरानी कला है. जिसे अब नए रूप में पेश किया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि तकनीक के जरिए इसे पढ़ाई का माध्यम बनाने के लिए डिजिटल प्लेटफार्म पर भी लाया जा रहा है. एकेडमिक सब्जेक्ट को लेकर प्रदेश के 28 स्कूलों को भी जोड़ा गया है. जिन्होंने जल संरक्षण, नदी संवर्धन, मेटलर्जी, भारत की आजादी के 75 वर्ष, मैनेजमेंट और इकोनॉमी से जुड़े हुए (Digitalization of phad art) सब्जेक्ट्स को भी फड़ पर उतारा गया है. इसे लेकर पहले स्कूलों को करीब एक साल तक ट्रेंड किया गया. टॉपिक से जुड़े हुए गाने तैयार किए गए और अब इन्हें किताब और क्यूआर कोड के जरिए डिजिटल किया जा रहा है.

वहीं, फड़ कला को केमिस्ट्री और मैनेजमेंट जैसे सब्जेक्ट के साथ भी जोड़ा गया है. इन विषयों के कुछ टॉपिक्स को सेलेक्ट कर उस पर फड़ तैयार किए गए. केमिस्ट्री के शिक्षक ने बताया कि उनका सब्जेक्ट मेटलर्जी उस पर स्टोरी लिखी गई और उसके कैरेक्टर (Rajasthani Phad art is getting digitized) डिफाइन किए गए. इन कैरेक्टर्स को टॉपिक के क्रम में ड्राइंग्स के जरिए फड़ पर उतारा गया. उदाहरण के लिए मेटल से बर्तन किस तरह से बनते हैं. उसकी कहानी ली. इसके लिए हरियाणा के रेवाड़ी जिले को चुना गया, जहां के पीतल के बर्तन प्रसिद्ध है. इसके इतिहास को फड़ पर उतार कर छात्रों के बीच लाया गया.

बहरहाल, राजस्थान में देवनारायण की फड़, पाबूजी की फड़, गोगाजी की फड़, रामदेव की फड़, माता जी की फड़ ग्रामीण अंचलों आज भी प्रसिद्ध है. लेकिन अब इसी फड़ पर रोचक और प्रासंगिक विषयों को उकेरते हुए युवाओं और छात्रों से जोड़ने के लिए स्कूली शिक्षा के साथ-साथ डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उतारने का भी प्रयास किया जा रहा है.

राजस्थान की पारंपरिक फड़ आर्ट

जयपुर. कला जीवन का अनुकरण करती है, इसलिए राजस्थान की (Rajasthani Phad painting) पारंपरिक फड़ कला को आधुनिक समाज में प्रासंगिक बनाने के लिए डिजिटल करने का प्रयास किया जा रहा है. धार्मिक अनुष्ठान और मनोरंजन कार्यक्रमों में गौरव बनने वाली इस कला को अब बंद अलमारियां से निकालकर युवाओं से जोड़ने की कोशिश की जा रही है.

दरअसल, राजस्थान की खूबसूरती यहां के (Expansion of 700 years old art) किले, महल और बावड़ियों तक ही सीमित नहीं है. यहां रेत के टीलों, लोक कला, परंपरा और इतिहास में भी इसकी खूबसूरती देखने को मिलती है. राजस्थान में कहानी कहने, कठपुतली नृत्य, हरि कथा और अन्य सामाजिक-धार्मिक गतिविधियों की पृष्ठभूमि के रूप में कला का बड़े पैमाने पर मनोरंजन के क्षेत्र में इस्तेमाल किया जाता रहा है, लेकिन तकनीक के आने से ये सब कहीं पीछे छूटता चला गया. ऐसी ही एक कला है जिसे हम फड़ के नाम से जानते हैं. राजस्थान के भीलवाड़ा से शुरू हुई 700 साल पुरानी फड़ पेंटिंग कहानी कहने का एक माध्यम है. जिसमें ज्यादातर देवी-देवताओं की कहानियां, राजाओं की युद्ध के चित्रण या संदेशों को एक गायक (भोपा) फड़ के जरिए पेश करता था.

इसे भी पढे़ं - फड़ चित्रकार ने अपनी कला के माध्यम से समझाया कोरोना की शुरुआत से लेकर अब तक का सफर..

सिटी पैलेस के डायरेक्टर एजुकेशन व विशेषज्ञ संदीप सेठी ने बताया कि राजा-महाराजाओं के जमाने में सूती कपड़े को फोल्ड कर चित्रकारी की जाती थी. कोई राजा युद्ध जीतकर आता था या (Traditional Phad Art of Rajasthan) जनता के बीच कोई संदेश पहुंचाना होता था तो कपड़ों पर चित्र बनाकर ले जाए जाते थे, जिसे भोपा गाकर सुनाया जाता था. इसी के जरिए मनोरंजन भी हुआ करते थे. एक दीए के माध्यम से फड़ के उस हिस्से को दिखाया जाता था, जिसके बारे में बताया जा रहा है. ये राजस्थान की पुरानी कला है. जिसे अब नए रूप में पेश किया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि तकनीक के जरिए इसे पढ़ाई का माध्यम बनाने के लिए डिजिटल प्लेटफार्म पर भी लाया जा रहा है. एकेडमिक सब्जेक्ट को लेकर प्रदेश के 28 स्कूलों को भी जोड़ा गया है. जिन्होंने जल संरक्षण, नदी संवर्धन, मेटलर्जी, भारत की आजादी के 75 वर्ष, मैनेजमेंट और इकोनॉमी से जुड़े हुए (Digitalization of phad art) सब्जेक्ट्स को भी फड़ पर उतारा गया है. इसे लेकर पहले स्कूलों को करीब एक साल तक ट्रेंड किया गया. टॉपिक से जुड़े हुए गाने तैयार किए गए और अब इन्हें किताब और क्यूआर कोड के जरिए डिजिटल किया जा रहा है.

वहीं, फड़ कला को केमिस्ट्री और मैनेजमेंट जैसे सब्जेक्ट के साथ भी जोड़ा गया है. इन विषयों के कुछ टॉपिक्स को सेलेक्ट कर उस पर फड़ तैयार किए गए. केमिस्ट्री के शिक्षक ने बताया कि उनका सब्जेक्ट मेटलर्जी उस पर स्टोरी लिखी गई और उसके कैरेक्टर (Rajasthani Phad art is getting digitized) डिफाइन किए गए. इन कैरेक्टर्स को टॉपिक के क्रम में ड्राइंग्स के जरिए फड़ पर उतारा गया. उदाहरण के लिए मेटल से बर्तन किस तरह से बनते हैं. उसकी कहानी ली. इसके लिए हरियाणा के रेवाड़ी जिले को चुना गया, जहां के पीतल के बर्तन प्रसिद्ध है. इसके इतिहास को फड़ पर उतार कर छात्रों के बीच लाया गया.

बहरहाल, राजस्थान में देवनारायण की फड़, पाबूजी की फड़, गोगाजी की फड़, रामदेव की फड़, माता जी की फड़ ग्रामीण अंचलों आज भी प्रसिद्ध है. लेकिन अब इसी फड़ पर रोचक और प्रासंगिक विषयों को उकेरते हुए युवाओं और छात्रों से जोड़ने के लिए स्कूली शिक्षा के साथ-साथ डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उतारने का भी प्रयास किया जा रहा है.

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