जयपुर. राजस्थान में एक बार फिर राइट टू हेल्थ अधिनियम का मुद्दा गरमाने लगा है. कानून को बने 9 महीने हो गए, लेकिन अभी तक न तो इस कानून के नियम बन पाए हैं और ना ही यह कानून लागू हो पाया है. ऐसे में सामाजिक संगठन एक बार फिर मुखर हो गए हैं. जन स्वास्थ्य अभियान राजस्थान सहित 72 सामाजिक संगठनों ने सीएम भजनलाल को संयुक्त ज्ञापन भेजा. ज्ञापन में कहा गया कि 21 मार्च 2023 को 'राजस्थान स्वास्थ्य का अधिकार अधिनियम 2022' विधानसभा में पारित कर राजस्थान ऐसा कानून लाने वाला देश का पहला राज्य बन गया था.
इस कानून को लाने में राज्य के स्वयं सेवी संगठनों और विशेषकर जन स्वास्थ्य अभियान राजस्थान, जो कि स्वास्थ्य विषयों पर कार्यरत संगठनों और जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का एक राज्यव्यापी नेटवर्क है, की अहम भूमिका रही थी. देश भर के जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस कानून को सरकार प्रभावी रूप से लागू करती है तो यह राज्य की जन स्वास्थ्य प्रणाली को सुदृढ़ कर लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच को बढ़ाने व आमजन के उपचार में अपनी जेब से होने वाले व्यय को कम करने में अत्यंत कारगर साबित हो सकता है.
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नो माह बाद भी लाभ नहीं : जन स्वास्थ्य अभियान राजस्थान कन्वीनर छाया पचौली ने बताया कि ये निराशा की बात है कि इस कानून को आए 9 माह बीत जाने के बाद भी अभी तक न तो इस कानून के नियम बन पाए हैं और न ही यह कानून लागू हो पाया है. पूर्व सरकार की ओर से नियमों को तैयार करने के लिए जुलाई 2023 में इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलीरी साइंस के निदेशक डॉ. एस.के. सरीन की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन तो किया गया था, लेकिन नियम अब तक तैयार नहीं हो पाए हैं. अब राज्य में सरकार बदलने के साथ इस कानून के भविष्य को लेकर कई तरह कि आशंकाएं जताई जा रही हैं.
ऐसे में जन स्वास्थ्य अभियान राजस्थान (JSA राजस्थान) से जुड़े राज्य भर के 72 संस्थाओं और संगठनों ने मुख्य मंत्री भजनलाल शर्मा के नाम एक ज्ञापन में इस कानून के नियमों के गठन और अधिसूचना में देरी को लेकर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए उन्हें इस कानून को जल्द से जल्द लागू करने कि मांग की है. अभियान का मानना है कि नियमों के गठन और उनके लागू होने में हो रहे लम्बे विलम्ब के कारण आमजन को इस कानून के तहत जो लाभ मिलने चाहिए थे, उनसे वो वंचित रह रहे हैं और स्वास्थ्य सेवाएं ग्रहण करने में उन्हें कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है जो कि उक्त कानून के अंतर्गत उल्लिखित सरकार के विभिन्न दायित्वों व रोगी अधिकारों की स्पष्ट रूप से अवहेलना है. छाया ने कहा कि अब आम जन के मन में इस बात का डर है कि सरकार बदल गई है. नई सरकार बन गई है तो इस कानून को आगे ले जाना चाहिए या नहीं. इसके नियम बन पाएंगे या नहीं बन पाएंगे. क्योंकि आम जन को बहुत उम्मीदें इस कानून से हैं. यह अपने आप में महत्वपूर्ण कानून है. ऐसे में जो नई सरकार है उसकी जिम्मेदारी है कि इस कानून करे. सामाजिक संगठन सरकार से मांग कर रहे हैं कि जल्द से जल्द इस कानून के नियमों को तैयार कर आम जनता को राहत दे.
RTH Act के पक्ष-विपक्ष में हुआ आंदोलन : बता दें कि राइट टू हेल्थ कानून उन चुनिंदा कानून में से एक है, जिसे लागू करने के लिए भी आंदोलन हुआ और उसके लागू होने के बाद भी आंदोलन किए गए. दरअसल, प्रदेश की जनता को स्वास्थ्य का अधिकार मिले, इसके लिए कई सामाजिक संगठनों ने लम्बे समय तक जन आंदोलन करके सरकार को इस कानून को लाने के लिए मजबूर किया. तत्कालीन गहलोत सरकार ने 21 मार्च 2023 को राजस्थान स्वास्थ्य अधिकार अधिनियम 2022 को विधानसभा में पारित करवाया. यह अपने आप में देश का ऐसा पहला कानून था, जिसमें आम जनता को उसके स्वास्थ्य का अधिकार दिए गए, लेकिन जैसे ही सदन में बिल पास हुआ उसके बाद प्रदेश भर के सभी गैर सरकारी डॉक्टर हड़ताल पर उतर गए. प्रदेश के सभी निजी अस्पतालों ने हड़ताल कर दी थी. हालांकि, बाद में सरकार और डॉक्टर्स के बीच में अधिनियम में कुछ संशोधन की बात पर सहमति बन गई थी, लेकिन कानून बनने के 9 महीने बाद भी इसके नियम तय नहीं हुए. जिसके कारण इस कानून का लाभ अभी भी प्रदेश की जनता को नहीं मिल रहा है.