जयपुर. राजस्थान में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं. भाजपा राजस्थान की सत्ता में वापसी के लिए लगातार जिले व क्षेत्रवार पार्टी कार्यकर्ताओं व समर्थकों को एकजुट करने के मिशन में लगी हुई है. साथ ही बूथों को मजबूत करने के लिए कमजोर सीटों का विश्लेषण कर वहां से जिताऊ प्रत्याशी की तलाश की जा रही है. इस बीच उन नेताओं की घर वापसी का दौर भी शुरू हो गया है, जो पिछले चुनाव में बागी हो गए थे. पार्टी अबकी हर संभव कोशिश कर रही है कि एकजुट होकर चुनाव लड़ा जाए. इसके लिए लगातार बैठकों का दौर भी जारी है. वहीं, केंद्रीय नेतत्व भी लगातार पार्टी में व्याप्त अंदरूनी कलह व गुटबाजी को खत्म करने का प्रयास कर रहा है, बावजूद इसके आपसी खींचतान खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. मौजूदा आलम यह है कि एक गुट के नेता दूसरे गुट के लिए मुश्किलें पैदा करने में मशगूल हैं.
राजे समर्थकों की घर वापसी में इसलिए हो रही देरी - हाल ही में पूर्व सांसद सुभाष महरिया सहित कई रिटायर्ड आईएएस-आईपीएस अधिकारियों ने भी भाजपा का दामन थामा है. महरिया से पहले पूर्व मंत्री घनश्याम तिवाड़ी और राजकुमार रिणवा भी घर वापसी कर चुके हैं. लेकिन वसुंधरा खेमे के नेताओं की घर वापसी में हो रही देरी को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं. प्रदेश के सियासी जानकारों की मानें तो भले ही बाहरी तौर पार्टी एक जुटाता दिखा रही हो, लेकिन अभी भी आंतरिक गुटबाजी हावी है. सुभाष महरिया की घर वापसी कार्यक्रम और दो दिन पहले हुई कार्यसमिति की बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की गैर मौजूदगी इस सियासी चर्चाओं को बल दे रही है.
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कई नेताओं ने किए आवेदन - विधानसभा चुनावों से पहले पार्टियों में उठापटक का दौर शुरू हो गया है. सीकर से पूर्व सांसद सुभाष महरिया ने घर वापसी कर ली है तो महरिया के अलावा कुछ रिटायर्ड प्रशासनिक अधिकारियों ने भी भाजपा की सदस्यता ली है. आला नेताओं की मंजूरी और जॉइनिंग कमेटी की सहमति के बाद महरिया की पार्टी में वापसी हुई. अब माना जा रहा है कि आने वाले समय में भाजपा और भी नेताओं की पार्टी में एंट्री कराएगी. जॉइनिंग कमेटी के सदस्य वासुदेव देवनानी ने बताया कि कमेटी के पास कई नेताओं के आवेदन आए हैं. सभी आवेदनों पर विचार किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि नेताओं के स्तर के अनुसार पार्टी में उनकी एंट्री कराई जाएगी. स्थानीय स्तर के नेताओं की स्थानीय स्तर पर और प्रदेश स्तर के नेताओं की प्रदेश स्तर पर जॉइनिंग कराई जाएगी.
राजे खेमे में अड़चन क्यों - साल 2020 में राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी, नवंबर 2022 में पूर्व मंत्री राजकुमार रिणवा की घर वापसी के बाद अब पूर्व सांसद सुभाष महरिया भी पार्टी में शामिल हो चुके हैं. लेकिन वसुंधरा समर्थक नेताओं की घर वापसी को लेकर अब संशय बना हुआ है. बीकानेर से कद्दावर नेता देवी सिंह भाटी, विजय बंसल और सुरेन्द्र गोयल के नामों को लेकर भी चर्चाओं का बाजार गर्म है. जबकि देवी सिंह भाटी तो वसुंधरा राजे के बीकानेर कार्यक्रम में सार्वजनिक मंच से भाजपा में शामिल होने का ऐलान तक कर चुके हैं. हालांकि, देवी सिंह भाटी की बड़ी अड़चन केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को माना जा रहा है. मेघवाल उस कमेटी के संयोजक भी है, जो नेताओं की घर वापसी का जिम्मा संभाल रही है. मेघवाल और भाटी के बीच की अदावत भी जगजाहिर है. ऐसे में मान जा रहा है कि भाटी की वापसी आसान नहीं होगी.
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राजे खेमे के नेताओं ने नहीं किया आवेदन - देवी सिंह भाटी, विजय बंसल और सुरेन्द्र गोयल के नामों की पार्टी में वापसी को लेकर भले ही कितनी ही चर्चाएं क्यों न हो, लेकिन वापसी का रास्ता कमेटी से होकर ही बनेगा. ऐसे में अभी तक इनमें से किसी नेता ने कमेटी के सामने आवेदन नहीं किया है. कमेटी के संयोजक व पूर्व मंत्री वासुदेव देवनानी ने बताया कि पार्टी में जो अपनी निष्ठा रखता है वो आ सकता है. उन्होंने कहा कि अगर कोई नेता किसी भी कारण से पार्टी से अलग हुआ हो, लेकिन अब वो घर वापसी करना चाहता है तो सबसे पहले उसे कमेटी के समक्ष अपना आवेदन करना होगा. भाजपा में आने की इच्छा जाहिर करने वाले नेताओं को लेकर कमेटी विचार करेगी और फिर उन्हें पार्टी में शामिल किया जाएगा.
वर्चस्व की लड़ाई - बता दें कि केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को 2019 के लोकसभा चुनाव में बीकानेर से प्रत्याशी बनाए जाने पर पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के करीबी देवी सिंह भाटी ने उनका विरोध किया था. इतना ही नहीं भाटी ने भाजपा से बगावत कर खुद को पार्टी से अलग कर मेघवाल को हराने का बीड़ा उठाया था. जिसके बाद भाजपा ने भाटी को पार्टी से निष्कासित कर दिया था. हालांकि भाटी मेघवाल को चुनाव में पटखनी देने में सफल नहीं हुए थे, लेकिन दोनों के बीच स्थानीय स्तर पर वर्चस्व की लड़ाई अब भी जारी है. भाटी बीकानेर के कद्दावर नेताओं में शुमार हैं और कोलायत विधानसभा सीट से लंबे समय तक चुनाव जीते रहे हैं. हालांकि, पिछले दो चुनाव से उन्हें पराजय का सामना करना पड़ रहा है. बावजूद इसके अब भी क्षेत्र में उनका वर्चस्व माना जाता है.