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Rajasthan Highcourt Order: आरोप तय होने के बाद मेडिकल जांच के आधार पर नहीं रोक सकते हर्जाना राशि

राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि आरोप तय होने के बाद मेडिकल जांच के आधार पर हर्जाना राशि नहीं रोक सकते हैं. कोर्ट ने पीड़ित पक्ष को दो माह में हर्जाना राशि अदा करने का आदेश दिया है.

highcourt order on rape victim compensation
highcourt order on rape victim compensation
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Published : Apr 19, 2023, 8:05 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में तय किया है कि एससी, एसटी एक्ट के तहत दुष्कर्म पीड़िता को दी जाने वाली हर्जाना राशि को इस आधार पर नहीं रोक सकते कि मेडिकल जांच में उसकी पुष्टि नहीं हुई है. प्रकरण में आरोप पत्र पेश होने के बाद निचली अदालत आरोप भी तय कर चुकी है. इसके साथ ही अदालत ने सामाजिक न्याय विभाग की हर्जाना राशि देने से इनकार करने वाले 15 अप्रैल 2021 के आदेश को रद्द करते हुए पीड़िता को क्षतिपूर्ति राशि दो माह में अदा करने को कहा है.

जस्टिस इन्द्रजीत सिंह ने यह आदेश पीड़िता की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए हैं. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि विधायिका ने यह कानून ऐसे गंभीर अपराध के पीड़ितों को आर्थिक रूप से राहत देने के लिए बनाया है. याचिका में अधिवक्ता बाबूलाल बैरवा ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता के नाबालिग रहने के दौरान वर्ष 2017 में उसके साथ दुष्कर्म हुआ था. घटना को लेकर उसके चाचा ने रेनवाल थाने में दुष्कर्म और एससी,एसटी एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई थी. प्रकरण में पुलिस ने आरोप पत्र भी पेश कर दिया है और निचली अदालत ने उस पर आरोप तय भी कर दिए हैं.

पढ़ें. Jaipur POCSO Court: दुष्कर्मी पिता को 20 साल की सजा, 40 हजार का अर्थ दंड भी लगाया

याचिका में कहा गया कि उसने एससी, एसटी एक्ट के तहत क्षतिपूर्ति राशि के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के उपनिदेशक के समक्ष आवेदन किया था, लेकिन विभाग ने 15 अप्रैल, 2021 को आवेदन यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि मेडिकल में दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई है. याचिका में कहा गया कि एससी, एसटी एक्ट में सिर्फ पीड़ता के मेडिकल की बात कही गई है. प्रकरण में आरोप पत्र पेश हो चुका है और निचली अदालत ने प्रथमदृष्टया आरोपी मानते हुए चार्ज भी फ्रेम कर दिए हैं. ऐसे में मेडिकल का परिणाम चाहे कुछ भी हो पीड़िता की क्षतिपूर्ति राशि नहीं रोकी जा सकती जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने पीड़िता को दो माह में क्षतिपूर्ति राशि अदा करने को कहा है.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में तय किया है कि एससी, एसटी एक्ट के तहत दुष्कर्म पीड़िता को दी जाने वाली हर्जाना राशि को इस आधार पर नहीं रोक सकते कि मेडिकल जांच में उसकी पुष्टि नहीं हुई है. प्रकरण में आरोप पत्र पेश होने के बाद निचली अदालत आरोप भी तय कर चुकी है. इसके साथ ही अदालत ने सामाजिक न्याय विभाग की हर्जाना राशि देने से इनकार करने वाले 15 अप्रैल 2021 के आदेश को रद्द करते हुए पीड़िता को क्षतिपूर्ति राशि दो माह में अदा करने को कहा है.

जस्टिस इन्द्रजीत सिंह ने यह आदेश पीड़िता की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए हैं. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि विधायिका ने यह कानून ऐसे गंभीर अपराध के पीड़ितों को आर्थिक रूप से राहत देने के लिए बनाया है. याचिका में अधिवक्ता बाबूलाल बैरवा ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता के नाबालिग रहने के दौरान वर्ष 2017 में उसके साथ दुष्कर्म हुआ था. घटना को लेकर उसके चाचा ने रेनवाल थाने में दुष्कर्म और एससी,एसटी एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई थी. प्रकरण में पुलिस ने आरोप पत्र भी पेश कर दिया है और निचली अदालत ने उस पर आरोप तय भी कर दिए हैं.

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याचिका में कहा गया कि उसने एससी, एसटी एक्ट के तहत क्षतिपूर्ति राशि के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के उपनिदेशक के समक्ष आवेदन किया था, लेकिन विभाग ने 15 अप्रैल, 2021 को आवेदन यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि मेडिकल में दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई है. याचिका में कहा गया कि एससी, एसटी एक्ट में सिर्फ पीड़ता के मेडिकल की बात कही गई है. प्रकरण में आरोप पत्र पेश हो चुका है और निचली अदालत ने प्रथमदृष्टया आरोपी मानते हुए चार्ज भी फ्रेम कर दिए हैं. ऐसे में मेडिकल का परिणाम चाहे कुछ भी हो पीड़िता की क्षतिपूर्ति राशि नहीं रोकी जा सकती जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने पीड़िता को दो माह में क्षतिपूर्ति राशि अदा करने को कहा है.

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