जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के तहत भवन निर्माण की प्रथम किस्त के तौर पर मिले 30 हजार रुपए की रिकवरी करने के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है. इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह याचिकाकर्ता का पक्ष सुनकर दो माह में उसके अभ्यावेदन को तय करें. न्यायाधीश वीएस सिराधना की एकलपीठ ने यह आदेश सुमन की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.
याचिका में अधिवक्ता मोहित बलवदा ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता को पीएम आवास योजना के तहत 1 लाख 20 हजार रुपए स्वीकृत हुए थे. इसकी पहली किस्त के रूप में 30 हजार भी याचिकाकर्ता को दिए गए. वहीं याचिकाकर्ता के पक्का मकान होने की शिकायत पर गत 19 मार्च को राज्य सरकार ने आदेश जारी कर दिए गए 30 हजार की रिकवरी निकाल दी.
याचिका में कहा गया कि न तो याचिकाकर्ता पक्के मकान में रहती है और न ही रिकवरी आदेश जारी करने से पहले याचिकाकर्ता का पक्ष सुना गया. ऐसे में रिकवरी आदेश को रद्द किया जाए, जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने रिकवरी आदेश पर अंतरिम रोक लगाते हुए याचिकाकर्ता का पक्ष सुनकर उसका अभ्यावेदन तय करने को कहा है.
वहीं एक अन्य मामले में हाईकोर्ट ने कहा है कि कर्मचारी दिव्यांगता के कारण पद ग्रहण करने में असमर्थ है. इस कारण से उसका वेतन नहीं रोका जा सकता. हालांकि कर्मचारी को इस संबंध में नियोक्ता को जानकारी देनी होगी. अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता यदि इस संबंध में विभाग में प्रार्थना पत्र पेश करें तो उसे हर माह वेतन दिया जाए. न्यायाधीश अशोक कुमार गौड की एकलपीठ ने यह आदेश नलिन सिंह गहलोत की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए. हालांकि अदालत ने सरकार को छोड़ दी है कि वह दिव्यांगता को देखते हुए याचिकाकर्ता से दूसरा काम करा सकते हैं.
याचिका में कहा गया कि सरकार ने 12 जनवरी 2018 को प्रोग्राम ऑफिसर के पद पर तैनात याचिकाकर्ता की सेवा समाप्त कर दी थी. इस आदेश पर हाईकोर्ट ने 22 मार्च 2018 को रोक लगा दी थी. याचिकाकर्ता के पैरालिसिस होने के चलते वह ड्यूटी नहीं कर सकता. लेकिन इस आधार पर उसे सेवा से अलग भी नहीं किया जा सकता.
याचिका में कहा गया कि अदालती आदेश से उसे गत जनवरी माह तक वेतन दिया गया. वहीं अब उसे सीएल या पीएल का प्रार्थना पत्र देने पर ही पद ग्रहण करने के लिए बाध्य किया जा रहा है. जबकि दिव्यांग अधिनियम, 2016 के तहत वह बिना प्रार्थना पत्र दिए सेवा में बने रहने का अधिकारी है, जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने याचिकाकर्ता को हर माह वेतन अदा करने के आदेश दिए हैं.