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मेयर मुनेश गुर्जर को राहत, निलंबन आदेश को हाईकोर्ट ने किया रद्द - ETV Bharat Rajasthan News

राजस्थान हाईकोर्ट ने हेरिटेज नगर निगम की मेयर मुनेश गुर्जर को लेकर पुनः जारी किए गए निलंबन आदेश को रद्द कर दिया है. साथ ही प्रारंभिक जांच को भी निरस्त करते हुए एक माह में पुनः जांच करने को कहा है.

Rajasthan High Court
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Dec 1, 2023, 12:24 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से हेरिटेज नगर निगम की मेयर मुनेश गुर्जर को गत 22 सितंबर को पुन: निलंबित करने के आदेश को अवैध बताते हुए रद्द कर दिया है. इसके साथ ही अदालत ने मामले में की गई प्रारंभिक जांच को भी निरस्त करते हुए एक माह में पुनः जांच करने को कहा है. जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश मुनेश गुर्जर की याचिका को स्वीकार करते हुए दिए. अदालत ने मामले में दोनों पक्षों की बहस सुनकर गत 28 नवंबर को याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

अधिकारी की ओर से की गई जांच भेदभावपूर्ण: कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मुनेश गुर्जर के पूर्व के निलंबन आदेश के खिलाफ दायर याचिका में सरकार की ओर से नियुक्त ओआईसी को ही इस मामले में प्रारंभिक जांच अधिकारी बनाया गया. उनकी ओर से दी गई जांच रिपोर्ट सद्भावनापूर्वक प्रतीत नहीं होती है, क्योंकि उन्होंने मुनेश की ओर से दस्तावेज प्राप्त करने की अर्जी को भी उनका लिखित जवाब मानकर जांच रिपोर्ट दी गई. न्याय के नैसर्गिक सिद्धांत के अनुसार जांच अधिकारी निष्पक्ष होना चाहिए. मामले में जांच अधिकारी की ओर से की गई जांच भेदभावपूर्ण प्रतीत होती है. अतः ऐसी जांच रिपोर्ट के आधार पर की गई कार्रवाई अनुचित है, इसलिए उसे निरस्त किया जाता है.

पढ़ें. Rajasthan High Court: मुनेश को पुन: निलंबित करने का रिकॉर्ड मंगाया

दो जांच अधिकारी एक साथ जांच नहीं कर सकते: याचिका में अधिवक्ता विज्ञान शाह ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने याचिकाकर्ता का निलंबन नगर पालिका अधिनियम, 2009 की धारा 39 के प्रावधानों और तथ्यों के विपरीत जाकर किया है. उसके खिलाफ जिन तथ्यों पर जांच हुई हैं, वे एफआईआर से ही साबित नहीं हो पाए थे. इसके अलावा मामले में जांच अधिकारी नियुक्त करने का आदेश डीएलबी निदेशक ने निकाला, जबकि ऐसा आदेश राज्यपाल के निर्देशों के तहत ही जारी हो सकता है. वहीं, रूल्स ऑफ बिजनेस के तहत मेयर से संबंधित किसी भी कार्रवाई का मुख्यमंत्री से अनुमोदन जरूरी है, जबकि इस मामले में निलंबन और जांच की कार्रवाई स्वायत्त शासन मंत्री के आदेश पर की गई. मामले की डीएलबी निदेशक और उप निदेशक ने अलग-अलग नोटिस जारी कर जांच कार्रवाई आरंभ की, जबकि एक ही मामले में दो जांच अधिकारी एक साथ जांच नहीं कर सकते. वहीं, उप निदेशक की ओर से दी गई जांच रिपोर्ट भेदभावपूर्ण और दुर्भावनापूर्ण है, क्योंकि याचिकाकर्ता को पूर्व में निलंबन करने के खिलाफ हाईकोर्ट में पेश याचिका में उप निदेशक ही ओआईसी के तौर पर विभाग का प्रतिनिधित्व कर रहे थे.

राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता को जांच के बाद निलंबित किया गया है. रूल्स ऑफ बिजनेस बाध्यकारी नहीं है. गौरतलब है कि मेयर मुनेश गुर्जर के पति सुशील गुर्जर की ओर से नगर निगम के पट्टे जारी करने की एवज में रिश्वत मांगने से जुड़े मामले में एसीबी की कार्रवाई के बाद राज्य सरकार ने मुनेश को निलंबित किया था. इस निलंबन आदेश पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी. इसके बाद राज्य सरकार ने निलंबन आदेश वापस ले लिया था. बाद में राज्य सरकार ने जांच के बाद मुनेश गुर्जर को 22 सितंबर को पुन: निलंबित कर दिया था. इस आदेश को भी अब हाइकोर्ट ने रद्द कर दिया है.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से हेरिटेज नगर निगम की मेयर मुनेश गुर्जर को गत 22 सितंबर को पुन: निलंबित करने के आदेश को अवैध बताते हुए रद्द कर दिया है. इसके साथ ही अदालत ने मामले में की गई प्रारंभिक जांच को भी निरस्त करते हुए एक माह में पुनः जांच करने को कहा है. जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश मुनेश गुर्जर की याचिका को स्वीकार करते हुए दिए. अदालत ने मामले में दोनों पक्षों की बहस सुनकर गत 28 नवंबर को याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

अधिकारी की ओर से की गई जांच भेदभावपूर्ण: कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मुनेश गुर्जर के पूर्व के निलंबन आदेश के खिलाफ दायर याचिका में सरकार की ओर से नियुक्त ओआईसी को ही इस मामले में प्रारंभिक जांच अधिकारी बनाया गया. उनकी ओर से दी गई जांच रिपोर्ट सद्भावनापूर्वक प्रतीत नहीं होती है, क्योंकि उन्होंने मुनेश की ओर से दस्तावेज प्राप्त करने की अर्जी को भी उनका लिखित जवाब मानकर जांच रिपोर्ट दी गई. न्याय के नैसर्गिक सिद्धांत के अनुसार जांच अधिकारी निष्पक्ष होना चाहिए. मामले में जांच अधिकारी की ओर से की गई जांच भेदभावपूर्ण प्रतीत होती है. अतः ऐसी जांच रिपोर्ट के आधार पर की गई कार्रवाई अनुचित है, इसलिए उसे निरस्त किया जाता है.

पढ़ें. Rajasthan High Court: मुनेश को पुन: निलंबित करने का रिकॉर्ड मंगाया

दो जांच अधिकारी एक साथ जांच नहीं कर सकते: याचिका में अधिवक्ता विज्ञान शाह ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने याचिकाकर्ता का निलंबन नगर पालिका अधिनियम, 2009 की धारा 39 के प्रावधानों और तथ्यों के विपरीत जाकर किया है. उसके खिलाफ जिन तथ्यों पर जांच हुई हैं, वे एफआईआर से ही साबित नहीं हो पाए थे. इसके अलावा मामले में जांच अधिकारी नियुक्त करने का आदेश डीएलबी निदेशक ने निकाला, जबकि ऐसा आदेश राज्यपाल के निर्देशों के तहत ही जारी हो सकता है. वहीं, रूल्स ऑफ बिजनेस के तहत मेयर से संबंधित किसी भी कार्रवाई का मुख्यमंत्री से अनुमोदन जरूरी है, जबकि इस मामले में निलंबन और जांच की कार्रवाई स्वायत्त शासन मंत्री के आदेश पर की गई. मामले की डीएलबी निदेशक और उप निदेशक ने अलग-अलग नोटिस जारी कर जांच कार्रवाई आरंभ की, जबकि एक ही मामले में दो जांच अधिकारी एक साथ जांच नहीं कर सकते. वहीं, उप निदेशक की ओर से दी गई जांच रिपोर्ट भेदभावपूर्ण और दुर्भावनापूर्ण है, क्योंकि याचिकाकर्ता को पूर्व में निलंबन करने के खिलाफ हाईकोर्ट में पेश याचिका में उप निदेशक ही ओआईसी के तौर पर विभाग का प्रतिनिधित्व कर रहे थे.

राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता को जांच के बाद निलंबित किया गया है. रूल्स ऑफ बिजनेस बाध्यकारी नहीं है. गौरतलब है कि मेयर मुनेश गुर्जर के पति सुशील गुर्जर की ओर से नगर निगम के पट्टे जारी करने की एवज में रिश्वत मांगने से जुड़े मामले में एसीबी की कार्रवाई के बाद राज्य सरकार ने मुनेश को निलंबित किया था. इस निलंबन आदेश पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी. इसके बाद राज्य सरकार ने निलंबन आदेश वापस ले लिया था. बाद में राज्य सरकार ने जांच के बाद मुनेश गुर्जर को 22 सितंबर को पुन: निलंबित कर दिया था. इस आदेश को भी अब हाइकोर्ट ने रद्द कर दिया है.

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