जयपुर. राइट टू हेल्थ बिल को लेकर प्रदेश के निजी अस्पतालों के चिकित्सक हड़ताल पर हैं. इस बीच अब सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों ने भी दो घंटे का कार्य बहिष्कार करके अपना समर्थन दिया है. यहां तक कि मेडिकल फैकल्टी ने भी अपना समर्थन दिया है. चिकित्सकों के आंदोलन के बीच स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा ने स्पष्ट किया है कि इस बिल को वापस नहीं लिया जाएगा. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार ने विधान सभा में राइट टू हेल्थ बिल को सर्वसम्मति से पास कराया है. इस पर राज्यपाल का अनुमोदन मिलते ही यह विधेयक कानून का रूप ले लेगा.
इसके लागू होने के बाद यह कानून प्रदेश के सभी अस्पतालों में मान्य होगा. इस बिल को विधानसभा में पास करने के बाद से ही निजी अस्पतालों के डॉक्टरों का विरोध जारी है. इस बिल को लेकर निजी चिकित्सकों का विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है. शुरुआत में सरकारी डॉक्टरों ने निजी चिकित्सकों के विरोध का समर्थन नहीं किया, लेकिन अब उनके विरोध को प्रदेश के सभी डॉक्टरों का समर्थन मिल रहा है. निजी अस्पताल राइट टू हेल्थ बिल वापस लेने की मांग पर अड़े हैं. वहीं प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा ने इस पर दो टूक कहा है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आमजन को निःशुल्क इलाज मुहैया कराने के मकसद से चिरंजीवी योजना लागू की है. ऐसे में निजी अस्पताल चाहे तो चिरंजीवी योजना लागू करें या नहीं करें यह उनकी मर्जी है. लेकिन सरकार ने आमजन को बेहतर इलाज देने के लिए राइट टू हेल्थ बिल लाई है, यह पूरे प्रदेश में लागू होगा.
कानून से बड़े डॉक्टर नहींः परसादी लाल मीणा ने कहा कि चिकित्सकों को कोई अधिकार नहीं है कि वह बिल को वापस लेने की मांग करें. उन्होंने कहा कि अस्पतालों में सरकारी चिकित्सक अभी भी काम कर रहे हैं. यदि वे कामकाज बंद करते हैं तो फिर सरकार भी सख्ती करेगी. विधानसभा में सभी सदस्यों ने एक स्वर में बिल पास किया है. आंदोलनरत चिकित्सक अपने आपको कानून से ऊपर न समझें. कानून लाने से पहले सभी चिकित्सकों से बातचीत की गई थी, उनकी हर बात को कानून में शामिल किया गया है. लेकिन अब चिकित्सक वादाखिलाफी कर रहे हैं जो बर्दाश्त से बाहर है. चिकित्सकों के आंदोलन से जनता के बीच सरकार की नेक मंशा पर सवाल उठ रहे हैं. इसलिए उन्होंने स्पष्ट किया की राइट टू हेल्थ बिल वापस नहीं लिया जाएगा. हालांकि चिकित्सा मंत्री ने यह कहा है कि सरकार की ओर से वार्ता के द्वार खुले हैं और हड़ताल कर रहे चिकित्सक कभी भी सरकार के साथ वार्ता कर सकते हैं.