जयपुर. राजस्थान में चल रहे सियासी उठापटक (rajasthan political crisis) के बीच सरकार ने अन्नदाताओं को भुला दिया (Government does not care about farmers) है. आलम यह है कि पिछले साल की तरह ही इस साल भी प्रदेश के किसान बाजार में अपने बाजरे को औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर हैं. वहीं, उपार्जन नीति में बाजरे को शामिल नहीं किए जाने और एमएसपी पर बाजरे की खरीद को लेकर काम न होने के कारण किसानों को नुकसान झेलना पड़ रहा है.
दरअसल, पिछले 12 सालों से राजस्थान में बाजरे की सरकारी खरीद केवल राजनीतिक दलों के लिए सियासत का विषय ( Politics on Bajra in Rajasthan) बनी हुई है. किसान को राहत देने का काम ना तो बीजेपी ने किया और ना ही कांग्रेस की ओर से किया गया. हर बार राज्य सरकार बाजरे की खरीद के मामले को केंद्र पर छोड़ देती है और केंद्र सरकार बाजरे का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करके राज्य सरकार को कुछ शर्तों के साथ इसकी खरीद का ऑप्शन दे देती है. राजस्थान से आने वाले केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने (Union Minister Kailash Choudhary allegation) प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर बाजरे को राजस्थान में पीडीएस में शामिल करने का आग्रह किया था. जिससे केंद्र सरकार की ओर से बाजरे की घोषित एमएसपी दरों का राज्य को भुगतान किया जा सके. एक ओर खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत बाजरे को राज्य सरकार ने उपार्जन नीति में शामिल नहीं किया तो वहीं केंद्र ने बाजरा उत्पादक राजस्थान के किसानों को राहत देने के लिए कोई कदम नहीं उठाया.
केंद्र देती है खरीद का लक्ष्य: केंद्र सरकार हर राज्य को एमएसपी पर खरीद का लक्ष्य देती है और जो लक्ष्य होता है उसी के अनुरूप राज्यों को अनुदान और भुगतान किया जाता है. अब यदि राजस्थान पीडीएस में बाजरे को शामिल कर भी लें तो मौजूदा समय में खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सार्वजनिक राशन की दुकान पर जो आनाज आज सस्ते दाम पर मिल रहे हैं. उसमें फेरबदल करना होगा. अभी सार्वजनिक राशन की दुकानों पर गेहूं और चावल ही पीडीएस के तहत परिवारों को निश्चित मात्रा में प्रदान किया जाता है.
राजस्थान में होता है सर्वाधिक बाजरे का उत्पादन: देश में राजस्थान में सर्वाधिक बाजरे का उत्पादन होता है. बताया जा रहा है कि देश में बाजरे के कुल उत्पादन का करीब 49% राजस्थान में ही होता है. बावजूद इसके बाजरे की सरकारी खरीद को लेकर अब तक कोई व्यवस्था नहीं की गई है. यही कारण है कि बाजरे के बंपर उत्पादन होने के बावजूद किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य भी प्राप्त नहीं हो पा रहा है. वहीं, संयुक्त राष्ट्र संघ ने बाजरे की उपयोगिता को स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्ताव पर साल 2023 को 'इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स' घोषित किया है. हालांकि, यह राजस्थान का दुर्भाग्य है कि देश में सर्वाधिक बाजरा उत्पादक राज्य होने के बावजूद यहां के किसानों को उसकी उपज का पूरा मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है.
2350 रुपये प्रति टन एमएसपी घोषित: केंद्र सरकार ने बाजरे की न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित कर दिया है. इस बार 2350 प्रति टन एमएसपी घोषित की गई है और एक अक्टूबर से इसकी सरकारी खरीद भी शुरू होगी. राजस्थान के ही पड़ोसी राज्य हरियाणा में सरकार बाजरे की सरकारी खरीद करती है, लेकिन राजस्थान में इसकी कोई व्यवस्था नहीं हो पाई है. किसान महापंचायत के संरक्षक व अध्यक्ष रामपाल जाट ने बताया कि राजस्थान में बाजरा उत्पादक किसानों की उपज की सरकारी खरीद नहीं हो पाने की दोषी केवल राज्य ही नहीं, बल्कि केंद्र सरकार भी है. नेता किसी भी पार्टी के क्यों न हो, किसी ने भी किसानों की नहीं सोची. बाजरे की खरीद को केवल राजनीतिक मुद्दा बनाकर बयान दिए जाते रहे हैं.