जयपुर. प्रदेश बीजेपी पिछले साढे़ 3 साल से गुटबाजी के बीच उलझी रही जिसका खामियाजा पार्टी को उपचुनाव में उठाना पड़ा. अब बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व ने त्रिगुट बना कर जातीय समीकरण साध लिया. अध्यक्ष पद संभालने के साथ ही सीपी जोशी ने भी सभी से मतभेद और मनभेद को खत्म करने की कवायद शुरू कर दी हैै. हरिशंकर भाभड़ा से लेकर वसुंधरा राजे से मुलाकात कर जोशी ये संदेश दे रहे हैं कि वो सबका साथ लेकर आगामी विधानसभा चुनाव में सत्ता पक्ष को चुनौती देंगे.
मतभेद व मनभेद दूर करने की कोशिश - राजस्थान भाजपा में नए प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी की ताजपोशी के साथ ही ऑल इज वेल वाली तस्वीर को सामने आ रही है. जोशी की नियुक्ति के साथ ही पदभार ग्रहण कार्यक्रम में एक साथ पूर्व प्रदेश अध्यक्षों की मौजूदगी ने आलाकमान की लाइन पर ही प्रदेश के नेताओं को खड़ा दिखाया था. इसके बाद जोशी ने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हरिशंकर भाभड़ा से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से मुलाकात की, जो यह जाहिर करती है कि भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व चुनावी साल में मतभेद और मनभेद से परे मजबूत छवि को पेश करने वाला है.
यूं चला मुलाकात का दौर - सीपी जोशी ने अध्यक्ष बनने के साथ सबसे पहले पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हरिशंकर भाभड़ा के घर जाकर उनसे मुलाकात की और उनका आशीर्वाद लिया. इसके बाद बीजेपी पूर्व सांसद और वरिष्ठ नेता ओम माथुर के निवास पर मुलाकात की, फिर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और तत्कालीन उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ से भी उनका घर जाकर मुलाकात की. जोशी ने उसके बाद पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरूण चतुर्वेदी और अशोक परनामी से भी उनके आवास पर मुलाकात की. हालांकि इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के जयपुर में नहीं होने से उनसे मुलाकात नहीं हो पाई थी, लेकिन रविवार को राजे के जयपुर आते ही शाम को जोशी राजे से उनके आवास पर जाकर मिले. हालांकि दिन में दोनों की कोर ग्रुप की बैठक में मुलाकात हो गई थी, लेकिन फिर भी जोशी ने राजे के निवास पर जाकर मुलाकत की और मार्गदर्शन लिया.
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पार्टी ने बनाया त्रिगुट - वरिष्ठ पत्रकार श्याम सुंदर शर्मा बताते हैं कि एक तरफ जहां अध्यक्ष जोशी ने एंट्री के साथ ही अपनी सोशल इंजीनियरिंग के जरिये अलग-अलग गुटों को साधने की कोशिश की तो, वही कार्यसमिति की बैठक में राजेंद्र राठौड़ को नेता प्रतिपक्ष और सतीश पूनिया को उप नेता प्रतिपक्ष का पद देकर केंद्रीय नेतृत्व ने जातिगत समीकरण भी साधा है. अब प्रदेश में त्रिगुट वाला समीकरण बन गया है, अध्यक्ष के पद पर ब्राह्मण को तो, नेता प्रतिपक्ष के पद पर राजपूत और उपनेता प्रतिपक्ष के पद जाट समाज के प्रतिनिधि को जिम्मेदारी देकर जातीय समीकरण साध गुटबाजी को खत्म करने की कोशिश हुई है.
मोदी-शाह के बावजूद गुटबाजी हावी - श्यामसुंदर ने बताया कि बीजेपी भले ही चुनावी साल में नरेंद्र मोदी को आगे रखकर प्रदेश के समर में दाखिल हो रही है, लेकिन उनके लिए स्थानीय गुटबाजी चुनौती दिख रही थी. केंद्रीय नेतृत्व उपचुनाव में हुई हार से इस बात का आंकलन कर रही थी कि सतीश पूनिया और वसुंधरा राजे के बीच बनी दूरी और गुटबाजी इस कदर हावी है कि पीएम मोदी और अमित शाह की एंट्री के बाद भी कहीं न कहीं विधानसभा चुनाव में 2018 वाला हाल हो सकता है. 2018 के चुनाव में कड़ी टक्कर और नजदीकी मुकाबला होने के बाद भी भाजपा सत्ता से बेदखल हो गई. ऐसे में केंद्रीय नेतृत्व ने नेता प्रतिपक्ष को राज्यपाल बना कर राजस्थान बीजेपी का समीकरण ही नहीं बदला, बल्कि गुटबाजी को भी समाप्त करते हुए जातीय समीकरण भी साधा है.