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Rajasthan Assembly Election 2023 : प्रधान से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने गोविंद सिंह डोटासरा के सामने हैं ये बड़ी चुनौतियां - गोविंद सिंह डोटासरा

Govind Dotasra Political Journey, आज हम बात एक ऐसे नेता की करेंगे, जिसने महज 15 साल की सियासी करियर में प्रदेश कांग्रेस में सर्वोच्च पद हासिल कर लिया और आज उसके नेतृत्व में पार्टी विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही है.

Rajasthan Assembly Election 2023
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 4, 2023, 4:31 PM IST

जयपुर. तमाम अफवाहों और सियासी चर्चाओं के बाद अब यह तय हो चुका है कि कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव गोविंद सिंह डोटासरा के नेतृत्व में ही लड़ेगी. ऐसे में अब हर किसी की नजर उनकी ओर है. साथ ही सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या डोटासरा इस बार विधानसभा चुनावों के उस परंपरा को तोड़ने में कामयाब होंगे, जिसके तहत राजस्थान में एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा की सरकार बनती रही है. वहीं, अगर ऐसा नहीं होता है तो फिर डोटासरा भी उन प्रदेश अध्यक्षों की सूची में शामिल हो जाएंगे, जिनके रहते पार्टी सरकार रिपीट नहीं करा सकी.

प्रधान से प्रदेश अध्यक्ष तक का सफर - प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा साल 2005 में पहली बार कांग्रेस पार्टी की टिकट पर प्रधान बने और केवल 15 साल की राजनीतिक करियर में ही वो पार्टी के सर्वोच्च पद पर पहुंच गए. वहीं, 2008 में जब परिसीमन के बाद लक्ष्मणगढ़ की सीट सामान्य हुई तो डोटासरा पर पार्टी ने भरोसा जताते हुए उन्हें टिकट दिया. डोटासरा ने भले ही 2008 में केवल 34 वोट से जीत दर्ज की हो, लेकिन उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. इसके बाद साल 2013 में 10000 और 2018 में 22000 से ज्यादा मतों से चुनाव जीते.

Rajasthan Assembly Election 2023
प्रधान से प्रदेश अध्यक्ष बनने तक का सफर

2013 में जब मोदी लहर के चलते बड़े-बड़े दिग्गज चुनाव हार गए और राजस्थान में पार्टी महज 21 सीटों पर सिमट गई, उस समय भी डोटासरा चुनाव जीते और पूरे 5 साल उन्होंने बेहतरीन तरीके से विपक्ष की भूमिका निभाई. यही कारण रहा कि जब 2018 में डोटासरा तीसरी बार विधायक बने तो उन्हें शिक्षा मंत्री जैसी अहम भूमिका दी गई, लेकिन डोटासरा के कंधों पर असली जिम्मेदारी 2020 में आई. बगावत के आरोपों के चलते जुलाई 2020 में सचिन पायलट को अध्यक्ष पद से हटा दिया गया. उसके बाद डोटासरा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया.

इसे भी पढ़ें - जिसने जहर खाया वो मरेगा, किसान नहीं डरते ईडी, सीबीआई से, सरकार रिपीट होने पर बजेगी इनकी बैंड : गोविंद सिंह डोटासरा

ये भी है चुनौती - साल 2020 में जब गोविंद सिंह डोटासरा को विपरीत परिस्थितियों में पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया तो उनके पास टीम के नाम पर खुद अलावा कोई नहीं था. शुरुआती 39 पदाधिकारी भी छह माह बाद मिले, लेकिन उससे भी बड़ी समस्या डोटासरा के सामने थी सचिन पायलट और गहलोत को एकजुट करना. हालांकि, डोटासरा को इसमें काफी चुनौतियां भी झेलनी पड़ी और दोनों नेताओं के बीच शीत युद्ध जारी रहा. अब गहलोत और पायलट दोनों ही विधानसभा चुनाव में जीत के लिए एकजुटता की बातें कर रहे हैं. ऐसे में अब लगता है कि डोटासरा को आगे टकराव नहीं झेलना पड़ेगा. बावजूद इसके चुनावों में अध्यक्ष के तौर पर दोनों नेताओं के बीच सामंजस्य बैठना और टिकट वितरण भी किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है.

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कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ गोविंद सिंह डोटासरा

कांग्रेस में डोटासरा बने किसानों का सबसे बड़े चेहरा - वैसे तो कांग्रेस पार्टी में राजस्थान में एक से बढ़कर एक किसान चेहरे रहे हैं. इनमें मिर्धा परिवार, मदेरणा परिवार, ओला परिवार, रामनारायण चौधरी या फिर नारायण सिंह का परिवार आज भी कांग्रेस में सक्रिय है. लेकिन नई पीढ़ी में जो चेहरे कांग्रेस पार्टी में सामने आए हैं, उनमें गोविंद सिंह डोटासरा प्रदेश अध्यक्ष होने के साथ ही हर जाति को साथ लेकर चलने और किसानों की बात प्रखरता से रखने के चलते सबसे बड़े चेहरे के रूप में उभरे हैं. जहां राजस्थान में रामेश्वर डूडी, हरीश चौधरी, रामलाल जाट और लालचंद कटारिया जैसे नेताओं के रूप में कांग्रेस के पास नई जाट लीडरशिप है तो वहीं इन सब का नेतृत्व भी इनडायरेक्टली ही सही गोविंद डोटासरा ही कर रहे हैं.

इसे भी पढ़ें - Rajasthan Assembly Election 2023 : 1990 में सत्ता परिवर्तन के लिए भाजपा ने शुरू किया था सियासी यात्राओं का दौर, 2003 में दिखा राजस्थान में असर, जानें इतिहास

बात करें शेखावाटी की तो शीशराम ओला, रामनारायण चौधरी के निधन और नारायण सिंह की अधिक उम्र के चलते वहां भी कांग्रेस की जाट लीडरशिप नेतृत्व विहीन हो गई थी. अब गोविंद डोटासरा ने शेखावाटी की जाट लीडरशिप का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया है और निर्विवाद रूप से शेखावाटी के सबसे बड़े जाट नेता बन गए हैं.

जयपुर. तमाम अफवाहों और सियासी चर्चाओं के बाद अब यह तय हो चुका है कि कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव गोविंद सिंह डोटासरा के नेतृत्व में ही लड़ेगी. ऐसे में अब हर किसी की नजर उनकी ओर है. साथ ही सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या डोटासरा इस बार विधानसभा चुनावों के उस परंपरा को तोड़ने में कामयाब होंगे, जिसके तहत राजस्थान में एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा की सरकार बनती रही है. वहीं, अगर ऐसा नहीं होता है तो फिर डोटासरा भी उन प्रदेश अध्यक्षों की सूची में शामिल हो जाएंगे, जिनके रहते पार्टी सरकार रिपीट नहीं करा सकी.

प्रधान से प्रदेश अध्यक्ष तक का सफर - प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा साल 2005 में पहली बार कांग्रेस पार्टी की टिकट पर प्रधान बने और केवल 15 साल की राजनीतिक करियर में ही वो पार्टी के सर्वोच्च पद पर पहुंच गए. वहीं, 2008 में जब परिसीमन के बाद लक्ष्मणगढ़ की सीट सामान्य हुई तो डोटासरा पर पार्टी ने भरोसा जताते हुए उन्हें टिकट दिया. डोटासरा ने भले ही 2008 में केवल 34 वोट से जीत दर्ज की हो, लेकिन उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. इसके बाद साल 2013 में 10000 और 2018 में 22000 से ज्यादा मतों से चुनाव जीते.

Rajasthan Assembly Election 2023
प्रधान से प्रदेश अध्यक्ष बनने तक का सफर

2013 में जब मोदी लहर के चलते बड़े-बड़े दिग्गज चुनाव हार गए और राजस्थान में पार्टी महज 21 सीटों पर सिमट गई, उस समय भी डोटासरा चुनाव जीते और पूरे 5 साल उन्होंने बेहतरीन तरीके से विपक्ष की भूमिका निभाई. यही कारण रहा कि जब 2018 में डोटासरा तीसरी बार विधायक बने तो उन्हें शिक्षा मंत्री जैसी अहम भूमिका दी गई, लेकिन डोटासरा के कंधों पर असली जिम्मेदारी 2020 में आई. बगावत के आरोपों के चलते जुलाई 2020 में सचिन पायलट को अध्यक्ष पद से हटा दिया गया. उसके बाद डोटासरा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया.

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ये भी है चुनौती - साल 2020 में जब गोविंद सिंह डोटासरा को विपरीत परिस्थितियों में पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया तो उनके पास टीम के नाम पर खुद अलावा कोई नहीं था. शुरुआती 39 पदाधिकारी भी छह माह बाद मिले, लेकिन उससे भी बड़ी समस्या डोटासरा के सामने थी सचिन पायलट और गहलोत को एकजुट करना. हालांकि, डोटासरा को इसमें काफी चुनौतियां भी झेलनी पड़ी और दोनों नेताओं के बीच शीत युद्ध जारी रहा. अब गहलोत और पायलट दोनों ही विधानसभा चुनाव में जीत के लिए एकजुटता की बातें कर रहे हैं. ऐसे में अब लगता है कि डोटासरा को आगे टकराव नहीं झेलना पड़ेगा. बावजूद इसके चुनावों में अध्यक्ष के तौर पर दोनों नेताओं के बीच सामंजस्य बैठना और टिकट वितरण भी किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है.

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कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ गोविंद सिंह डोटासरा

कांग्रेस में डोटासरा बने किसानों का सबसे बड़े चेहरा - वैसे तो कांग्रेस पार्टी में राजस्थान में एक से बढ़कर एक किसान चेहरे रहे हैं. इनमें मिर्धा परिवार, मदेरणा परिवार, ओला परिवार, रामनारायण चौधरी या फिर नारायण सिंह का परिवार आज भी कांग्रेस में सक्रिय है. लेकिन नई पीढ़ी में जो चेहरे कांग्रेस पार्टी में सामने आए हैं, उनमें गोविंद सिंह डोटासरा प्रदेश अध्यक्ष होने के साथ ही हर जाति को साथ लेकर चलने और किसानों की बात प्रखरता से रखने के चलते सबसे बड़े चेहरे के रूप में उभरे हैं. जहां राजस्थान में रामेश्वर डूडी, हरीश चौधरी, रामलाल जाट और लालचंद कटारिया जैसे नेताओं के रूप में कांग्रेस के पास नई जाट लीडरशिप है तो वहीं इन सब का नेतृत्व भी इनडायरेक्टली ही सही गोविंद डोटासरा ही कर रहे हैं.

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बात करें शेखावाटी की तो शीशराम ओला, रामनारायण चौधरी के निधन और नारायण सिंह की अधिक उम्र के चलते वहां भी कांग्रेस की जाट लीडरशिप नेतृत्व विहीन हो गई थी. अब गोविंद डोटासरा ने शेखावाटी की जाट लीडरशिप का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया है और निर्विवाद रूप से शेखावाटी के सबसे बड़े जाट नेता बन गए हैं.

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