जयपुर. राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर राजनीतिक यात्रा के जरिए सत्ता परिवर्तन की फिराक में है. इसका आगाज दो सितंबर यानी शनिवार से होने जा रहा है. राज्य की चारों दिशाओं से परिवर्तन यात्रा निकाली जाएगी, जिसकी शुरुआत शनिवार को सवाई माधोपुर से होने जा रही है. वहीं, राजनीतिक यात्रा के इतिहास को देखें तो भाजपा की ये कोई पहली यात्रा नहीं है. सबसे पहले साल 1990 में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में सोमनाथ से अयोध्या तक यात्रा निकाली गई थी, हालांकि, उस समय भाजपा सत्ता परिवर्तन भले ही न कर पाई हो, लेकिन यात्रा का असर जरूर देखने को मिला था. तब संसद में भाजपा की संख्या में वृद्धि हुई थी. उसके बाद साल 2003 में फिर उसी प्रयोग को आजमाया गया और राजस्थान में पार्टी को बड़ी सफलता मिली.
कल से होगी यात्रा की शुरुआत - प्रदेश में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं. सत्ता परिवर्तन के लिए भाजपा एक बार फिर परिवर्तन यात्रा निकालने जा रही है. यात्रा का शुभारंभ दो सितंबर को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सवाई माधोपुर स्थित त्रिनेत्र गणेश मंदिर से करेंगे. ऐसा नहीं है कि यह सत्ता परिवर्तन की पहली यात्रा है. धार्मिक यात्राओं के जरिए सत्ता की तरफ बढ़ने का फार्मूला भाजपा पहले से आजमाते आ रही है. राजस्थान में पहली बार 2003 में इस तरह की यात्रा की शुरुआत हुई थी, जिसमें पार्टी को सफलता मिली थी. इसके बाद 2013 और अब 2023 में उसी फार्मूले को पार्टी ने अपनाया है.
1990 में हुई थी सियासी यात्रा की शुरुआत - सत्ता परिवर्तन के लिए राजनीतिक यात्रा भाजपा के लिए कोई नया प्रयोग नहीं है और न ही राजस्थान में इस प्रयोग को पहली बार किया जा रहा है. वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी बताते हैं कि 1990 में भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने धार्मिक यात्रा निकाली थी. देश में पहली बार किसी राजनीतिक दल की ओर से सोमनाथ से अयोध्या तक यात्रा निकालने का ऐलान किया गया था, हालांकि, बिहार में इस यात्रा को निकालने की अनुमति नहीं दी, जिसके चलते काफी विवाद हुआ था.
सैनी बताते हैं कि इस धार्मिक यात्रा के बाद भाजपा देश में खास तौर पर हिन्दू बेल्ट में कांग्रेस का विकल्प बनकर उभरी. संसद में पार्टी के सांसदों की संख्या में वृद्धि हुई. साथ कुछ राज्यों में भी भाजपा की सरकार बनी. इसके बाद भाजपा ने 2003 में इसी प्रयोग को राजस्थान में आजमाया और उसे सफलता मिली. उन्होंने आगे बताया कि भाजपा 2002 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री व सांसद वसुंधरा राजे को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी देते हुए राजस्थान की कमान सौंपी थी.
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तब राजे ने कांग्रेस को राज्य की सत्ता से बेदखल करने के लिए 2003 में परिवर्तन यात्रा निकाली थी. यह यात्रा प्रदेश की सभी विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरी थी, जिसका बड़ा असर हुआ और भाजपा को पहली बार राजस्थान में 120 सीटों पर जीत मिली. उसके बाद 2013 में भी राजे के नेतृत्व में सुराज संकल्प यात्रा निकाली गई और ये प्रयोग सफल हुआ और पार्टी को 163 सीटों पर रिकॉर्ड जीत हासिल हुई थी.
यात्राओं का असर क्यों - वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी बताते हैं कि भाजपा ने जब भी राजनीतिक यात्रा निकाली है उसे इसका फायदा जरूर हुआ है. चाहे लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में हो या फिर वसुंधरा राजे के नेतृत्व में, भाजपा हमेशा से ही धार्मिक स्थानों को चिन्हित कर यात्रा निकालते रही हैं. सैनी कहते हैं कि भारत में धार्मिक स्थानों का अपना एक विशेष महत्व है. ऐसे में आसानी से लोगों का इससे जुड़ाव होता है. साथ यात्रा के दौरान लाखों लोगों से नेता सीधे मिल पाते हैं और उनकी समस्याओं से जुड़ते हैं. राजनीतिक यात्रा से लोगों को लगता है कि कोई उन्हें सुनने, समझने, जानने के लिए उनके पास आया है. उनके मन में विश्वास जागता है कि अब उनकी परेशानियां कम होंगी.
भाजपा की इस बार निकलने वाली चारों यात्राएं भी धार्मिक स्थान से शुरू होंगी, जिसमें पहली यात्रा 2 सितंबर को सवाई माधोपुर जिले के त्रिनेत्र गणेश मंदिर रणथम्भौर से शुरू होगी. दूसरी यात्रा 3 सितंबर को डूंगरपुर जिले के बेणेश्वर धाम, तीसरी यात्रा 4 सितंबर को जैसलमेर जिले रामदेवरा और चौथी यात्रा हनुमानगढ़ के गोगामेड़ी से शुरू होगी. ये चारों धार्मिक स्थान प्रदेश के ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों के लोगों के लिए भी आस्था के केंद्र हैं.