जयपुर. राजस्थान की विभिन्न जेलों में बंद कैदी बड़ी तादाद में कोरोना की चपेट में भी आए. वहीं, कोरोना के तेजी से बढ़ते संक्रमण की वजह से 23 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने भी सभी राज्यों को जेल में बंद कुछ कैदियों को पैरोल पर छोड़ने के लिए विचार करने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में इस बात का जिक्र किया था कि प्रत्येक राज्य जेल में बंद ऐसे कैदी जिन्हें 7 वर्ष से कम की सजा दी गई है और जो अंडर ट्रायल हैं उन्हें पैरोल पर रिहा किया जा सकता है.
कोर्ट के निर्देशों की पालना कराने के लिए राज्य सरकार ने तत्कालीन डीजी जेल एनआरके रेड्डी की अध्यक्षता में 3 सदस्यों की एक कमेटी का गठन किया था. अप्रैल माह में कमेटी ने राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश की. जिसके बाद गहलोत सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए कैदियों को पैरोल पर रिहा करने का फैसला लिया. इसके लिए सबसे पहले गृह विभाग ने राजस्थान प्रिजनर्स रिलीव ऑन पैरोल रूल्स में संशोधन किया. राजस्थान की जेलों में बढ़ते कोरोना संक्रमण को देखते हुए गहलोत सरकार ने संक्रमण ज्यादा ना फैले इसके लिए प्रदेश की जेलों में बंद कैदियों को पैरोल पर रिहा करने का फैसला लिया.
जिन कैदियों को पैरोल पर रिहा किया गया उनमें वह कैदी शामिल किए गए जो पहली बार जेल में आए और जिनका व्यवहार ठीक रहा. इसके साथ ही जो कैदी पहले से ही पैरोल पर चल रहे थे उन कैदियों की पैरोल की अवधि बढ़ाने का भी निर्णय गहलोत सरकार द्वारा लिया गया. पैरोल पर चल रहे कैदियों की पैरोल अवधि को 45 से 60 दिन तक के लिए बढ़ा दिया गया. इसके साथ ही ऐसे कैदी जिनका आचरण अच्छा था और जिनकी उम्र काफी थी उन्हें रिहा करने का भी फैसला सरकार द्वारा लिया गया. कैदियों को विशेष पैरोल, स्थाई पैरोल और विशेष परिहाय पर जेल विभाग द्वारा रिहा किया गया है.
ऐसे किया गया कैदियों को रिहा...
जेलों में बढ़ते कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए सरकार के निर्देशन पर जेल विभाग द्वारा कैदियों को अलग-अलग कैटेगरी के तहत रिहा किया गया. प्रदेश की विभिन्न जेलों में बंद ऐसे कैदी जिनका आचरण अच्छा था और वह काफी उम्र दराज थे. एक लिस्ट जेल विभाग द्वारा तैयार की गई थी और कैदी की मेडिकल हिस्ट्री को मद्देनजर रखते हुए प्रदेश के विभिन्न जिलों से तकरीबन 250 कैदियों को रिहा कर दिया गया. इसके साथ ही प्रदेश के विभिन्न जेलों से तकरीबन 150 कैदियों को विशेष पैरोल पर 45 से 60 दिन के लिए रिहा कर दिया गया. इसके साथ ही तकरीबन 60 कैदियों को स्थाई पैरोल पर रिहा कर दिया गया. स्थाई पैरोल पर रिहा किए गए कैदी 7 वर्ष से अधिक की सजा काट चुके थे और इसके साथ ही उनका आचरण लगातार अच्छा रहा. इसके साथ ही तकरीबन 15 कैदियों को विशेष परिहाय पर रिहा किया गया. वहीं पूर्व में रिहा हो चुके तकरीबन 172 कैदियों की पैरोल अवधि को लॉकडाउन खत्म होने की अवधि तक के लिए बढ़ा दिया गया.
पैरोल से लौटने वाले कैदियों को अलग रखने की व्यवस्थान...
डीजी जेल राजीव दासोत ने बताया कि पैरोल अवधि समाप्त होने के बाद जेल आने वाले कैदियों को कोरोना गाइडलाइन के तहत 14 दिन जेल में बनाए गए क्वॉरेंटाइन सेंटर में रखा जाता है. इसके साथ ही कैदी की कोरोना जांच करवाई जाती है और यदि उसमें कोरोना के लक्षण पाए जाते हैं तो चिकित्सकों की निगरानी में उसके स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखा जाता है. 14 दिन तक क्वॉरेंटाइन सेंटर में रहने के बाद चिकित्सकों द्वारा कैदी का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता है और फिर उसके बाद ही उसे मुख्य जेल में अन्य कैदियों के साथ बंद किया जाता है.
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इसके साथ ही जेल में जो भी नए कैदी आ रहे हैं उनकी कोरोना जांच करवाई जा रही है और संक्रमित पाए जाने पर जेल में ही बनाए गए कोरोना वार्ड में उनका इलाज किया जा रहा है.
कम सजा वाले कैदियों को भी दी जाए पैरोल...
राजस्थान के पूर्व पुलिस अधिकारी योगेंद्र जोशी का कहना है कि राजस्थान की जेलों में ऐसे अनेक कैदी बंद हैं जिनका ना तो कोई वकील है और ना ही उनकी कोर्ट में लंबे समय से कोई सुनवाई हुई है. ऐसे में सरकार को कम सजा वाले कैदी जिन्हें 3 वर्ष से लेकर 5 वर्ष तक की सजा सुनाई गई है उनके आचरण को देखते हुए पैरोल पर रिहा करना चाहिए. ऐसे कैदी जिनके जेल से बाहर निकलने पर ना तो समाज को किसी तरह का भय हो और ना ही कानून की स्थिति बिगड़े, ऐसे कैदियों को पैरोल देने पर सरकार को विचार करना चाहिए.
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जोशी ने कहा कि राजस्थान की जेलों में काफी बड़ी संख्या में कैदी बंद हैं और जेल में एक कैदी को एक बैरक में रखने की व्यवस्था नहीं है. एक बैरक में कई कैदियों को साथ में रखा जाता है और ऐसे में कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है. इन तमाम चीजों को ध्यान में रखते हुए सरकार को ऐसे कैदियों को पैरोल पर रिहा करना चाहिए.
क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने...
सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस के तेजी से फैलते संक्रमण को देखते हुए गत 23 मार्च को राज्यों को कुछ कैदियों को पैरोल पर छोड़ने के लिए विचार करने को कहा था. एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से कहा था कि इसके लिए कमेटी गठित करें. देश की शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि राज्य 7 वर्ष से कम सजा पाए कैदी और अंडर ट्रायल कैदियों को पैरोल पर रिहा कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की पालना के तहत राज्य सरकार ने डीजी जेल एनआरके रेड्डी की अध्यक्षता में 3 सदस्यीय कमेटी का गठन किया था.