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Rajasthan High Court: स्पीकर के आदेश को चुनौती, खंडपीठ में सुनवाई 28 नवंबर को

कांग्रेस के 81 विधायकों के इस्तीफे से जुड़े मामले में संशोधित याचिका पर राजस्थान हाईकोर्ट में 28 नवंबर को सुनाई होगी. कोर्ट ने ये आदेश नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ की जनहित याचिका पर दिए.

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स्पीकर के आदेश को चुनौती
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 10, 2023, 8:07 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने कांग्रेस के 81 विधायकों के इस्तीफे से जुड़े मामले में संशोधित याचिका पर सुनवाई 28 नवंबर को तय की है. सीजे एजी मसीह और जस्टिस समीर जैन की खंडपीठ ने यह आदेश नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र सिंह राठौड़ की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता एमएस सिंघवी ने कहा कि उन्हें संशोधित याचिका की कॉपी हाल ही में उपलब्ध कराई गई है. ऐसे में याचिका पर जवाब पेश करने के लिए समय दिया जाए. इस पर अदालत ने मामले की सुनवाई 28 नवंबर को तय की है. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता राजेन्द्र सिंह राठौड़ अपने अधिवक्ता हेमंत नाहटा के साथ अदालत में पेश हुए. उनकी ओर से अदालत को बताया गया कि याचिका को संशोधित कर विधानसभा स्पीकर के आदेश को चुनौती दी गई है. इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष को स्वयं के साथ 75 अन्य विधायकों के इस्तीफे सौंपने वाले महेश जोशी, शांति धारीवाल, रामलाल जाट, महेंद्र चौधरी, रफीक खान और संयम लोढ़ा को भी पक्षकार बनाने की गुहार की गई है.

पढ़ें: राजस्थान: 91 कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे देने का मामला पहुंचा हाईकोर्ट

याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि इन विधायकों ने 81 विधायकों के इस्तीफे विधानसभा स्पीकर को सौंपे थे, लेकिन बाद में विधायकों ने स्पीकर को लिखित में कहा कि उनके त्यागपत्र स्वैच्छिक नहीं थे. ऐसे में यह जांच का विषय है कि इस्तीफे पर विधायकों की बिना इच्छा हस्ताक्षर कैसे कराए गए. इसके अलावा महेश जोशी सहित इन 6 विधायकों ने स्वयं के त्यागपत्र भी दिए थे. ऐसे में स्पीकर को उनके त्यागपत्र उसी दिन स्वीकार करने थे.

पढ़ें: कांग्रेस विधायकों के इस्तीफों पर निर्णय नहीं करने पर स्पीकर सीपी जोशी और सचिव को नोटिस

याचिका में यह भी कहा गया कि स्पीकर ने अदालत के समक्ष माना है कि उन्होंने इस्तीफों को लेकर कोई जांच नहीं की. विधायकों के त्यागपत्र स्वैच्छिक नहीं बताने के आधार पर ही उन्हें अस्वीकार किया गया है. ऐसे में यह माना जाना चाहिए कि स्पीकर ने आज तक मामले में कोई वैधानिक आदेश पारित नहीं किया है. याचिका में यह भी कहा गया कि इन विधायकों ने 25 सितंबर, 2022 से अब तक करीब 18 करोड़ रुपए बतौर वेतन-भत्ते प्राप्त किए हैं. ऐसे में मामले को पुनः स्पीकर रिमांड किया जाए या हाईकोर्ट अपने स्तर पर आदेश पारित करे.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने कांग्रेस के 81 विधायकों के इस्तीफे से जुड़े मामले में संशोधित याचिका पर सुनवाई 28 नवंबर को तय की है. सीजे एजी मसीह और जस्टिस समीर जैन की खंडपीठ ने यह आदेश नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र सिंह राठौड़ की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता एमएस सिंघवी ने कहा कि उन्हें संशोधित याचिका की कॉपी हाल ही में उपलब्ध कराई गई है. ऐसे में याचिका पर जवाब पेश करने के लिए समय दिया जाए. इस पर अदालत ने मामले की सुनवाई 28 नवंबर को तय की है. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता राजेन्द्र सिंह राठौड़ अपने अधिवक्ता हेमंत नाहटा के साथ अदालत में पेश हुए. उनकी ओर से अदालत को बताया गया कि याचिका को संशोधित कर विधानसभा स्पीकर के आदेश को चुनौती दी गई है. इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष को स्वयं के साथ 75 अन्य विधायकों के इस्तीफे सौंपने वाले महेश जोशी, शांति धारीवाल, रामलाल जाट, महेंद्र चौधरी, रफीक खान और संयम लोढ़ा को भी पक्षकार बनाने की गुहार की गई है.

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याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि इन विधायकों ने 81 विधायकों के इस्तीफे विधानसभा स्पीकर को सौंपे थे, लेकिन बाद में विधायकों ने स्पीकर को लिखित में कहा कि उनके त्यागपत्र स्वैच्छिक नहीं थे. ऐसे में यह जांच का विषय है कि इस्तीफे पर विधायकों की बिना इच्छा हस्ताक्षर कैसे कराए गए. इसके अलावा महेश जोशी सहित इन 6 विधायकों ने स्वयं के त्यागपत्र भी दिए थे. ऐसे में स्पीकर को उनके त्यागपत्र उसी दिन स्वीकार करने थे.

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याचिका में यह भी कहा गया कि स्पीकर ने अदालत के समक्ष माना है कि उन्होंने इस्तीफों को लेकर कोई जांच नहीं की. विधायकों के त्यागपत्र स्वैच्छिक नहीं बताने के आधार पर ही उन्हें अस्वीकार किया गया है. ऐसे में यह माना जाना चाहिए कि स्पीकर ने आज तक मामले में कोई वैधानिक आदेश पारित नहीं किया है. याचिका में यह भी कहा गया कि इन विधायकों ने 25 सितंबर, 2022 से अब तक करीब 18 करोड़ रुपए बतौर वेतन-भत्ते प्राप्त किए हैं. ऐसे में मामले को पुनः स्पीकर रिमांड किया जाए या हाईकोर्ट अपने स्तर पर आदेश पारित करे.

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