जयपुर. राजस्थान विश्वविद्यालय में बीते 2 साल से शोध में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों को निराशा हाथ लग रही है. विश्वविद्यालय ने शोध के लिए होने वाली एमपैट परीक्षा आयोजित नहीं कराई है. यही वजह है कि राजस्थान विश्वविद्यालय को मिलने वाली ग्रांट में भी कटौती हो चुकी है. हालांकि, अब पीएचडी के ऑनलाइन वायवा कराकर विद्यार्थियों को राहत देने की कोशिश की जा रही है.
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कोरोना महामारी के चलते इस साल राजस्थान विश्वविद्यालय में शैक्षणिक सत्र की तैयारियां देरी से शुरू हुई. लेकिन, करीब 2 महीने की देरी के बाद विश्वविद्यालय ने अब तैयारियां तेज कर दी हैं. छात्रों के ऑनलाइन एडमिशन का दौर जारी है. हालांकि, रिसर्च में नए दाखिले को लेकर कोई कवायद होती नहीं दिख रही है. शोध के हालात इस कदर खस्ता हैं कि प्रशासन यहां रिसर्च के लिए एडमिशन टेस्ट एमपैट तक समय पर नहीं करवा पा रहा है. साल 2018 का एमपैट टेस्ट साल 2019 में कराया गया. यही वजह है कि पीएचडी करने की इच्छा रखने वाले विद्यार्थियों निराश हो रहे हैं. हालांकि अब विश्वविद्यालय प्रशासन पीएचडी के वायवा ऑनलाइन कराकर विद्यार्थियों के लिए रास्ते खोलने की शुरूआत कर रहा है.
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राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर जेपी यादव ने बताया कि बीते 5 महीने से पीएचडी के वायवा पेंडिंग चल रहे हैं. इससे छात्रों को परेशानी हो रही थी. ऐसे में अब यूजीसी के ऑनलाइन वायवा के निर्देश को राजस्थान विश्वविद्यालय में अप्लाई किया जा रहा है. इससे छात्रों के साथ-साथ विश्वविद्यालय को भी फायदा होगा. बाहर से एक्सपर्ट को बुलाने पर होने वाला आने-जाने और ठहरने का खर्चा भी बचेगा. वहीं, उन्होंने एमपैट एग्जाम को लेकर खाली सीटों का विश्लेषण करने और सीटें खाली होने की स्थिति में एग्जाम कराए जाने की बात कही.
बहरहाल, कोरोना संक्रमण के दौर में पीएचडी वायवा ऑनलाइन होने से शोधार्थी अपने घर से ही बाहरी विश्वविद्यालयों से आने वाले विशेषज्ञों, गाइड और विभागाध्यक्ष से जुड़ सकेंगे. साथ ही बाहरी विशेषज्ञ अपनी रिपोर्ट भी ऑनलाइन ई-मेल के माध्यम से ही देंगे.