जयपुर. हर साल एक अगस्त को माउंटेन क्लाइम्बिंग डे के रूप में मनाया जाता है. खास तौर पर अमेरिका में इस खास मौके को बॉबी मैथ्यूज और जोश मैडिगन की उपलब्धियों के लिहाज से विशेष माना जाता है. जिन्होंने न्यूयॉर्क में एडिरोनडैक पर्वत की सभी 46 चोटियों पर चढ़ने में कामयाबी हासिल की थी. इस दिन का मकसद आम लोगों में माउंट क्लाइंबिंग के प्रति जागरूकता लाना है. ताकि लोग सही तरीके से पर्वतारोहण के क्षेत्र में प्रशिक्षण के साथ कामयाबी की नई इबारत को लिखने के लिए आगे बढ़ें.
आज हम आपको इस विशेष मौके पर राजस्थान के ऐसे पिता-पुत्र की जोड़ी को आपसे रू-ब-रू करवा रहा है, जिन्होंने ना सिर्फ लोगों के लिए एक मिसाल कायम की है, बल्कि ये दोनों उन लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत भी बने हैं, जो अक्सर हालात को दोष देकर अपने सपनों का पीछा करना छोड़ देते हैं. चूरू जिले के सरदारशहर में जन्में भरत शर्मा का जन्म एक साधारण मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था, वे उन चंद लोगों में शुमार हैं, जिन्होंने दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट पर फतह कायम की. दरअसल पेशे से इंजीनियर भरत शर्मा ने गुजरात के जामनगर में नौकरी करते हुए फिटनेस की ओर ध्यान दिया और अपने सपने को पूरा करने की शुरुआत की.
उन्होंने पहले छोटे-छोटे प्रशिक्षण कैंप में भाग लिया और फिर पर्वतों पर चढ़ाई के टास्क को आगे बढ़ाया. उनका कहना है कि शुरुआती दौर में वे क्रिकेट को ही खेल का एक रूप मानते थे और एडवेंचर स्पोर्ट्स से उनका दूर-दूर तक का नाता नहीं था, पर 2014 की दीपावली के बाद उन्हें हाइकिंग और क्लाइंबिंग में दिलचस्पी आने लगी. उन्होंने शुरुआत में दौड़ने के साथ-साथ हाफ मैराथन और फुल मैराथन के सफर को पूरा किया. इस दरमियान भरत शर्मा को माउंट क्लाइंबिंग के फील्ड में दिलचस्पी नजर आने लगी और वे मशहूर पर्वतारोही मिली मस्तान बाबू से प्रभावित हुए. फिलहाल भरत शर्मा सऊदी अरब की एक तेल कंपनी में काम कर रहे हैं. ईटीवी भारत पर उन्होंने खास तौर पर अपना पैगाम भेजा और सभी को माउंटेन क्लाइम्बिंग डे पर शुभकामनाएं भेजी.
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माउंट आबू में कोर्स से शुरु किया सफर : भरत शर्मा ने माउंट आबू में दस दिन के माउंट क्लाइंबिंग कोर्स को ज्वॉइन किया. एक बारगी भरत शर्मा को तब भी अजीब लगा, जब उनके आस-पास में उनसे छोटी उम्र के लोग दिखे पर उन्होंने जज्बा और हौंसला कायम रखा. उसके बाद उत्तरकाशी में 28 दिन का एक और कोर्स करने के बाद उन्हें इस दिशा में आगे बढ़ने का रास्ता मिल गया. यहां से उन्हें पर्वतारोहण के क्षेत्र से जुड़े लोगों से और बारीकियों को जानने का मौका भी मिला. इस दौरान सियाचिन में देश की सेवा कर चुके इंस्ट्रक्टर और मशहूर पर्वतारोही एमएस कोहली और मगन बिस्सा ने उनके सपनों को पंख लगा दिए. साल 2016 में उन्होंने तंजानिया की मशहूर किलीमंजारो की चोटी को फतह किया और साल 2019 की 22 मई को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह कर लिया. भरत शर्मा कहते हैं कि प्रकृति ने उन्हें हमेशा आकर्षित किया है.
बेटे निश्चय ने पिता से ली प्रेरणा : पिता भरत शर्मा के नक्शे कदम पर चलते हुए निश्चय शर्मा ने भी ट्रेकिंग को बचपन से अपना शगल बना लिया. उन्होंने पिता की राह पर माउंट आबू से बेसिक ट्रेकिंग कोर्स को पूरा किया, इसके बाद वे कश्मीर में भी ट्रेकिंग के एक कोर्स पर गए. निश्चय ने इस दौरान गुजरात की सबसे ऊंची गिरनार पर्वत की चढ़ाई की. वे किलीमंजारों की चढ़ाई के अलावा एवरेस्ट के बेस कैंप को भी पूरा कर चुके हैं. भरत बताते हैं कि अपने बेटे की दिलचस्पी को देखते हुए उन्होंने जामनगर के आसपास दो हजार फीट ऊंची चट्टानों पर अक्सर अपने बेटे को वीक एंड पर लेकर जाते थे. भरत मानते हैं कि उनकी तरह निश्चय को कुदरत के करीब रहने के अलावा रोमांच से रूबरू होना पसंद है. ऐसे में उनके लिए बेटे की इस राह को पूरा करने में आसानी हुई. निश्चय फिलहाल वृंदावन में एक गुरुकुल में अपनी पढ़ाई कर रहे हैं और वक्त मिलने पर अपने पिता से मिले गाइडेंस के आधार पर वह अक्सर रोमांच के सफर की दुनिया में माउंट क्लाइंबिंग को तरजीह देते हैं.