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सावन विशेष : नई नवेली के नाथ थे इसलिए कहलाए 'नईनाथ'...जानिए महादेव के इस रूप की कहानी

राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 70 किलोमीटर दूर आगरा रोड पर स्थित एक प्राचीन शिवमंदिर के नामकरण की अनोखी कहानी है. इस मंदिर का नाम है नईनाथ महादेव मंदिर. मंदिर करीब 350 साल पुराना बताया जाता है. मंदिर में स्थित शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि वह स्वयंभू प्रकट है. इस मंदिर के नामकरण के बारे में क्षेत्र में एक कहानी प्रचलित है.

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Published : Jul 29, 2019, 7:29 PM IST

Mahadev's whole story of 'Nainath' form

जयपुर. मंदिर से जुड़े हरिनारायण ने बताया कि सैकड़ों साल पहले बांसखोह या बांसखो में एक राजा हुए थे. उनके तीन रानियां थी. विवाह पश्चात इन तीनों के कोई संतान नहीं हुई. तब यहां पास ही जंगल में स्थित शिवमंदिर में रह रहे बालवनाथ बाबा ने शिव मंदिर में पूजा करने की सलाह रानियों को दी. तीनों रानियों में से सबसे छोटी ने इस सलाह पर अमल किया. छोटी रानी ने हर माह अमावस्या पूर्व चतुदर्शी को वीरान जंगल में स्थित इस प्राचीन शिव मंदिर में पूजा करने व्रत लिया. वह शाही सवारी के साथ मंदिर जाती और पूजा अर्चना कर लौटती. इस शाही सवारी को देखने के लिए लोग जुटते थे. रानी की मुराद पूरी हुई और उसके जल्द ही संतान प्राप्ति हुई. चूंकि रानी नई नवेली थी यानि उनका विवाह कुछ समय पहले ही हुआ था इसलिए क्षेत्र में कहा जाने लगा कि नई पर नाथ यानि बालवनाथ की कृपा हुई है. बाद में यह स्थान नई का नाथ अथवा नईनाथ के नाम से फेमस हो गया.

पढ़ें: सपोटरा महादेव का अद्भुत चमत्कार, प्रतिमा दिन भर में तीन बार बदलती है रंग

दूसरी मान्यता स्वयंभू प्रकट है शिवलिंग

नईनाथ में भगवान शिव का मंदिर बना हुआ है. इस शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि सैकड़ों साल पहले इस क्षेत्र का नाम कोहिलापुरा था और वहां एक राजा हुए थे. राजा शिवभक्त था. वह नहा धोकर शिवजी की पूजा अर्चना के बिना अन्न ग्रहण नहीं करता था. एक बार दुश्मनों ने राजा को बंदी बना लिया और एक बावड़ी के पास कोठरी में कैद कर दिया. इस दौरान शिवजी की पूजा नहीं करने के कारण उसने सात दिन तक कुछ नहीं खाया. सातवें दिन बावड़ी का जल छलका और राजा पर गिरा. भूख-प्यास से अर्धबेहोश राजा को होश आया और उसने अपना सिर झटकाया तो देखा कि सामने शिवलिंग था. उसी समय उसकी सेना वहां आ जाती है और उसे मुक्त करा लेती है. कई साल बाद यहां बालवनाथ नामक बाबा कुटिया बना कर रहने लगे. वह सिद्ध पुरूष थे.

नई नाथ के मंदिर में साल में दो बार शिवरात्रि को और श्रावण में मेले आयोजित होते है. इन दोनों ही मेलों में लाखों की संख्या में भक्त आते है. श्रावण मास में यहां कावड़ यात्राओं की धूम रहती है.

पढ़ें: नहीं देखा होगा ऐसा दिलकश नजारा, ड्रोन की नजर से देखें धर्मनगरी में कांवड़ मेले की अद्भुत तस्वीर

बाबा बालव का धूणा
नई नाथ महादेव मंदिर के पास ही बालवनाथ बाबा का धूणा है. वहां उनके चरणों की पूजा होती है. लोग मन्नत मांगते हैं. यहां हर महीने अमावस्या से पूर्व चतुदर्शी को मेला आयोजित होता है. ऐसी मान्यता है कि यहां चिलम और सिगरेट चढ़ाने से मन की मुराद पूरी होती है. इसी आस्था के चलते हुए बाबा की समाधि पर बडी संख्या में लोग पहुंचते हैं और चिलम या सिगरेट अर्पित करते हैं.

जयपुर. मंदिर से जुड़े हरिनारायण ने बताया कि सैकड़ों साल पहले बांसखोह या बांसखो में एक राजा हुए थे. उनके तीन रानियां थी. विवाह पश्चात इन तीनों के कोई संतान नहीं हुई. तब यहां पास ही जंगल में स्थित शिवमंदिर में रह रहे बालवनाथ बाबा ने शिव मंदिर में पूजा करने की सलाह रानियों को दी. तीनों रानियों में से सबसे छोटी ने इस सलाह पर अमल किया. छोटी रानी ने हर माह अमावस्या पूर्व चतुदर्शी को वीरान जंगल में स्थित इस प्राचीन शिव मंदिर में पूजा करने व्रत लिया. वह शाही सवारी के साथ मंदिर जाती और पूजा अर्चना कर लौटती. इस शाही सवारी को देखने के लिए लोग जुटते थे. रानी की मुराद पूरी हुई और उसके जल्द ही संतान प्राप्ति हुई. चूंकि रानी नई नवेली थी यानि उनका विवाह कुछ समय पहले ही हुआ था इसलिए क्षेत्र में कहा जाने लगा कि नई पर नाथ यानि बालवनाथ की कृपा हुई है. बाद में यह स्थान नई का नाथ अथवा नईनाथ के नाम से फेमस हो गया.

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दूसरी मान्यता स्वयंभू प्रकट है शिवलिंग

नईनाथ में भगवान शिव का मंदिर बना हुआ है. इस शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि सैकड़ों साल पहले इस क्षेत्र का नाम कोहिलापुरा था और वहां एक राजा हुए थे. राजा शिवभक्त था. वह नहा धोकर शिवजी की पूजा अर्चना के बिना अन्न ग्रहण नहीं करता था. एक बार दुश्मनों ने राजा को बंदी बना लिया और एक बावड़ी के पास कोठरी में कैद कर दिया. इस दौरान शिवजी की पूजा नहीं करने के कारण उसने सात दिन तक कुछ नहीं खाया. सातवें दिन बावड़ी का जल छलका और राजा पर गिरा. भूख-प्यास से अर्धबेहोश राजा को होश आया और उसने अपना सिर झटकाया तो देखा कि सामने शिवलिंग था. उसी समय उसकी सेना वहां आ जाती है और उसे मुक्त करा लेती है. कई साल बाद यहां बालवनाथ नामक बाबा कुटिया बना कर रहने लगे. वह सिद्ध पुरूष थे.

नई नाथ के मंदिर में साल में दो बार शिवरात्रि को और श्रावण में मेले आयोजित होते है. इन दोनों ही मेलों में लाखों की संख्या में भक्त आते है. श्रावण मास में यहां कावड़ यात्राओं की धूम रहती है.

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बाबा बालव का धूणा
नई नाथ महादेव मंदिर के पास ही बालवनाथ बाबा का धूणा है. वहां उनके चरणों की पूजा होती है. लोग मन्नत मांगते हैं. यहां हर महीने अमावस्या से पूर्व चतुदर्शी को मेला आयोजित होता है. ऐसी मान्यता है कि यहां चिलम और सिगरेट चढ़ाने से मन की मुराद पूरी होती है. इसी आस्था के चलते हुए बाबा की समाधि पर बडी संख्या में लोग पहुंचते हैं और चिलम या सिगरेट अर्पित करते हैं.

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राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 70 किलोमीटर दूर आगरा रोड पर स्थित एक प्राचीन शिवमंदिर के नामकरण की अनोखी कहानी है. इस मंदिर का नाम है नईनाथ महादेव मंदिर. मंदिर करीब 350 साल पुराना बताया जाता है. मंदिर में स्थित शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि वह स्वयंभू प्रकट है. इस मंदिर के नामकरण के बारे में क्षेत्र में एक कहानी प्रचलित है.



जयपुर. मंदिर से जुड़े हरिनारायण ने बताया कि सैकड़ों साल पहले बांसखोह या बांसखो में एक राजा हुए थे. उनके तीन रानियां थी. विवाह पश्चात इन तीनों के कोई संतान नहीं हुई.  तब यहां पास ही जंगल में स्थित शिवमंदिर में रह रहे बालवनाथ बाबा ने शिव मंदिर में पूजा करने की सलाह रानियों को दी. तीनों रानियों में से सबसे छोटी ने इस सलाह पर अमल किया. छोटी रानी ने हर माह अमावस्या पूर्व चतुदर्शी को वीरान जंगल में स्थित इस प्राचीन शिव मंदिर में पूजा करने व्रत लिया. वह शाही सवारी के साथ मंदिर जाती और पूजा अर्चना कर लौटती. इस शाही सवारी को देखने के लिए लोग जुटते थे. रानी की मुराद पूरी हुई और उसके जल्द ही संतान प्राप्ति हुई. चूंकि रानी नई नवेली थी यानि उनका विवाह कुछ समय पहले ही हुआ था इसलिए क्षेत्र में कहा जाने लगा कि नई पर नाथ यानि बालवनाथ की कृपा हुई है. बाद में यह स्थान नई का नाथ अथवा नईनाथ के नाम से फेमस हो गया.



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दूसरी मान्यता स्वयंभू प्रकट है शिवलिंग



नईनाथ में भगवान शिव का मंदिर बना हुआ है. इस शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि सैकड़ों साल पहले इस क्षेत्र का नाम कोहिलापुरा था और वहां एक राजा हुए थे. राजा शिवभक्त था. वह नहा धोकर शिवजी की पूजा अर्चना के बिना अन्न ग्रहण नहीं करता था. एक बार दुश्मनों ने राजा को बंदी बना लिया और एक बावड़ी के पास कोठरी में कैद कर दिया. इस दौरान शिवजी की पूजा नहीं करने के कारण उसने सात दिन तक कुछ नहीं खाया. सातवें दिन बावड़ी का जल छलका और राजा पर गिरा. भूख-प्यास से अर्धबेहोश राजा को होश आया और उसने अपना सिर झटकाया तो देखा कि सामने शिवलिंग था. उसी समय उसकी सेना वहां आ जाती है और उसे मुक्त करा लेती है. कई साल बाद यहां बालवनाथ नामक बाबा कुटिया बना कर रहने लगे. वह सिद्ध पुरूष थे. 



नई नाथ के मंदिर में साल में दो बार शिवरात्रि को और श्रावण में मेले आयोजित होते है. इन दोनों ही मेलों में लाखों की संख्या में भक्त आते है. श्रावण मास में यहां कावड़ यात्राओं की धूम रहती है.



पढ़ें:  नहीं देखा होगा ऐसा दिलकश नजारा, ड्रोन की नजर से देखें धर्मनगरी में कांवड़ मेले की अद्भुत तस्वीर



बाबा बालव का धूणा 

नई नाथ महादेव मंदिर के पास ही बालवनाथ बाबा का धूणा है. वहां उनके चरणों की पूजा होती है. लोग मन्नत मांगते हैं. यहां हर महीने अमावस्या से पूर्व चतुदर्शी को मेला आयोजित होता है. ऐसी मान्यता है कि यहां चिलम और सिगरेट चढ़ाने से मन की मुराद पूरी होती है. इसी आस्था के चलते हुए बाबा की समाधि पर बडी संख्या में लोग पहुंचते हैं और चिलम या सिगरेट अर्पित करते हैं. 


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