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महर्षि पराशर को शिशु रूप में जंगल से मिले थे गणेश, ऐसी है पौराणिक कथा - जंगल में भगवान गणेश

एक घने जंगल में भगवान गणेश को शिशु रुप में माता पार्वती छोड़कर चली गई थी. जंगल का भ्रमण करते समय महर्षि पराशर की नजर भगवान गणेश पर पड़ी. महर्षि समझ गये कि यह कोई साधारण बालक नहीं हैं. उस शिशु को लेकर वह अपने आश्रम की ओर चल पड़े. पत्नी वत्सला के साथ मिलकर उन्होने भगवान का लालन-पालन किया.

Ganesha met Maharishi Parashar, महर्षि पराशर भगवान गणेश
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Published : Sep 3, 2019, 8:27 AM IST

जयपुर. ऐसा कहा जाता है कि एक घने जंगल में भगवान गणेश को शिशु रुप में माता पार्वती छोड़कर चली गई. उस जंगल में हिंसक जीव-जन्तु घूमते रहते थे. कई सालों में कभी-कभार उस जंगल से ऋषि मुनि गुजरते थे. उस भयानक जंगल में एक सियार ने उस शिशु यानि भगवान गणेश को देखा और वह उनके करीब जाने लगा. पुराणों के अनुसार तभी उसी समय वहां से ऋषि वेद व्यास के पिता पराशर मुनि गुजरे और उनकी दृष्टि उस अबोध बालक पर पड़ी और उन्होंने देखा की एक सियार भी उस शिशु की ओर बड़ रहा है. पहले तो पराशर मुनि ने सोच कि कहीं यह इंद्र का कोई खेल या माया तो नहीं जो मेरा तप भंग करना चाहता हो.?

महर्षि पराशर तेजी से शिशु की ओर बढ़े महर्षि को देखकर वह सियार अपनी जगह पर ही रुक गया और फिर चुपचाप ही वन में कहीं गुम हो गया. सियार के जाने के बाद महर्षि पराशर ने उस शिशु को काफी ध्यान से देखा. उस शिशु कि चार भुजाएं थीं. रक्त वर्ण और गजवदन था. वही उसने सुंदर वस्त्र भी पहने हुए थे. महर्षि ने उसके छोटे चरणों को देखा तो उस पर ध्वज, अंकुश और कमल की रेखाएं स्पष्ट नजर आ रही थी.

पढ़ें- चंद्रयान में विराजे लालबाग के राजा, गणपति बप्पा मोरया की मची धूम

शिशु को देख महर्षि पराशर रोमांचित हो गये और समझ गए कि यह कोई साधारण बालक नहीं बल्की स्वयं प्रभु हैं. तब उन्होंने शिशु यानि भगवान गणेश के चरणों में अपना मस्तक रखा और वह खुद को भाग्यशाली समझते हुए उस शिशु को लेकर अपने आश्रम कि और चल पड़े.

पढ़ें- प्रथम पूजनीय गणेश के हैं 108 नाम, जानिए उनकी महिमा

महर्षि कि पत्नी वत्सला ने जब उनके हाथों में नन्हें शिशु को देखा तब उन्होंने पूछा यह बालक आपको कहां से मिला. पत्नी वत्सला कि बात सुनते हुए. महर्षि ने कहा यह जंगल के एक सरोवर के तट पर पड़ा था. लगता है कोई इसे वहां छोड़ गया है. वत्सला शिशु को देखककर प्रसन्न हो गई. तब महर्षि पराशर ने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा कि यह कोई साधारण शिशु नहीं बल्कि साक्षात त्रिलोकी नाथ है और यह हमारे घर हमारा उद्धार करने आये है. यह वचन सुनकर वत्सला काफी खुश हुई. दोनों ने मिलकर गणेश का लालन पालन किया.

जयपुर. ऐसा कहा जाता है कि एक घने जंगल में भगवान गणेश को शिशु रुप में माता पार्वती छोड़कर चली गई. उस जंगल में हिंसक जीव-जन्तु घूमते रहते थे. कई सालों में कभी-कभार उस जंगल से ऋषि मुनि गुजरते थे. उस भयानक जंगल में एक सियार ने उस शिशु यानि भगवान गणेश को देखा और वह उनके करीब जाने लगा. पुराणों के अनुसार तभी उसी समय वहां से ऋषि वेद व्यास के पिता पराशर मुनि गुजरे और उनकी दृष्टि उस अबोध बालक पर पड़ी और उन्होंने देखा की एक सियार भी उस शिशु की ओर बड़ रहा है. पहले तो पराशर मुनि ने सोच कि कहीं यह इंद्र का कोई खेल या माया तो नहीं जो मेरा तप भंग करना चाहता हो.?

महर्षि पराशर तेजी से शिशु की ओर बढ़े महर्षि को देखकर वह सियार अपनी जगह पर ही रुक गया और फिर चुपचाप ही वन में कहीं गुम हो गया. सियार के जाने के बाद महर्षि पराशर ने उस शिशु को काफी ध्यान से देखा. उस शिशु कि चार भुजाएं थीं. रक्त वर्ण और गजवदन था. वही उसने सुंदर वस्त्र भी पहने हुए थे. महर्षि ने उसके छोटे चरणों को देखा तो उस पर ध्वज, अंकुश और कमल की रेखाएं स्पष्ट नजर आ रही थी.

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शिशु को देख महर्षि पराशर रोमांचित हो गये और समझ गए कि यह कोई साधारण बालक नहीं बल्की स्वयं प्रभु हैं. तब उन्होंने शिशु यानि भगवान गणेश के चरणों में अपना मस्तक रखा और वह खुद को भाग्यशाली समझते हुए उस शिशु को लेकर अपने आश्रम कि और चल पड़े.

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महर्षि कि पत्नी वत्सला ने जब उनके हाथों में नन्हें शिशु को देखा तब उन्होंने पूछा यह बालक आपको कहां से मिला. पत्नी वत्सला कि बात सुनते हुए. महर्षि ने कहा यह जंगल के एक सरोवर के तट पर पड़ा था. लगता है कोई इसे वहां छोड़ गया है. वत्सला शिशु को देखककर प्रसन्न हो गई. तब महर्षि पराशर ने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा कि यह कोई साधारण शिशु नहीं बल्कि साक्षात त्रिलोकी नाथ है और यह हमारे घर हमारा उद्धार करने आये है. यह वचन सुनकर वत्सला काफी खुश हुई. दोनों ने मिलकर गणेश का लालन पालन किया.

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