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जय महल पैलेस होटल की जमीन से जुड़ा मामला, पूर्व राजपरिवार सेवकों के वारिसों का 37 साल पुराना दावा खारिज - Rajasthan Hindi News

जय महल पैलेस होटल की जमीन से जुड़े मामले में कोर्ट का बड़ा फैसला सामने आया है. सिविल न्यायालय ने पूर्व राजपरिवार सेवकों के वारिसों का 37 साल पुराना दावा खारिज कर दिया है.

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Published : Dec 21, 2022, 8:32 PM IST

जयपुर. सिविल न्यायालय क्रम-1 महानगर द्वितीय ने जय महल पैलेस होटल व नाटाणियों के बाग की कुछ जमीन पर मालिकाना हक के मामले में पूर्व राजपरिवार सदस्यों को राहत देते हुए उनके सेवकों के वारिसान का 37 साल पुराना दावा खारिज कर दिया. अदालत ने रामसिंह व अन्य के दावे खारिज करते हुए कहा कि विवादित संपत्ति पर कब्जे के संबंध में कोई दस्तावेज व फोटो पेश नहीं किए हैं.

वादी ने ऐसा कोई गवाह भी पेश नहीं किया है, जो उनके पक्ष में संपत्ति के कब्जे को (Land of Jai Mahal Palace Hotel) साबित करता हो. वादी रामसिंह ने भी अपने बयानों में माना है कि विवादित जमीन पर जय महल पैलेस होटल का कब्जा है. ऐसे में वे कोई राहत के हकदार नहीं है.

मुकदमे से जुडे अधिवक्ता रामजीलाल गुप्ता ने बताया कि रामसिंह भाटी व अन्य ने पूर्व राजपरिवार के सदस्य भवानी सिंह, पदमनी कंवर, दीया कुमारी, पद्मनाभ सिंह सहित रामबाग होटल के मैनेजर विक्रम सिंह पक्षकार बनाते हुए 1985 में कोर्ट में दावा किया था. इसमें कहा था कि भवानी सिंह के पूर्वजों ने उनके पिता श्री बक्स सिंह को यह जमीन मालिकाना हक सहित दी थी. उनके पिता का निधन 1980 में हो चुका है और वे इस संपत्ति पर उनके वारिस मालिक की हैसियत से रह रहे हैं.

पढ़ें : रॉबर्ट वाड्रा मामले में सुनवाई पूरी, कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित

बिजली व जलदाय विभाग ने भी उनके पिता के नाम से बिजली व पानी का कनेक्शन दिया था, लेकिन अब प्रतिवादी (Civil Court on Jai Mahal Controversy) उनके मकान व संपत्ति पर कब्जा और बेदखल करना चाहते हैं. प्रतिवादियों ने उन्हें संपत्ति से बेदखल करने का प्रयास भी किया. इसलिए प्रतिवादियों को अस्थाई निषेधाज्ञा से पाबंद किया जाए कि वे वादियों को संपत्ति के उपयोग, उपभोग, जबरन प्रवेश व तोडफोड की कार्रवाई नहीं करें.

जवाब में पूर्व राजपरिवार का कहना था कि महाराजा मानसिंह ने विवादित संपत्ति पर दो कमरे ही रहने के लिए दिए थे. श्री बक्स सिंह के सेवाकाल से अवकाश लेने पर उनका जमीन पर लाइसेंस खत्म हो गया था. ऐसे में वादी जमीन पर अतिक्रमी की हैसियत से रह रहे थे.

मानसिंह ने अपने जीवनकाल में ही यह जमीन अपने बेटे जगत सिंह को 5 मई 1985 को दे दी थी और तब से वे ही इस जमीन पर काबिज रहे. बाद में जगतसिंह ने इस जमीन को ताज ग्रुप को लीज पर दिया था. ऐसे में वादियों का दावा खारिज किया जाए. कोर्ट ने दोनों पक्षों की बहस सुनकर पूर्व राजपरिवार व अन्य के खिलाफ दायर दावे को खारिज कर दिया.

जयपुर. सिविल न्यायालय क्रम-1 महानगर द्वितीय ने जय महल पैलेस होटल व नाटाणियों के बाग की कुछ जमीन पर मालिकाना हक के मामले में पूर्व राजपरिवार सदस्यों को राहत देते हुए उनके सेवकों के वारिसान का 37 साल पुराना दावा खारिज कर दिया. अदालत ने रामसिंह व अन्य के दावे खारिज करते हुए कहा कि विवादित संपत्ति पर कब्जे के संबंध में कोई दस्तावेज व फोटो पेश नहीं किए हैं.

वादी ने ऐसा कोई गवाह भी पेश नहीं किया है, जो उनके पक्ष में संपत्ति के कब्जे को (Land of Jai Mahal Palace Hotel) साबित करता हो. वादी रामसिंह ने भी अपने बयानों में माना है कि विवादित जमीन पर जय महल पैलेस होटल का कब्जा है. ऐसे में वे कोई राहत के हकदार नहीं है.

मुकदमे से जुडे अधिवक्ता रामजीलाल गुप्ता ने बताया कि रामसिंह भाटी व अन्य ने पूर्व राजपरिवार के सदस्य भवानी सिंह, पदमनी कंवर, दीया कुमारी, पद्मनाभ सिंह सहित रामबाग होटल के मैनेजर विक्रम सिंह पक्षकार बनाते हुए 1985 में कोर्ट में दावा किया था. इसमें कहा था कि भवानी सिंह के पूर्वजों ने उनके पिता श्री बक्स सिंह को यह जमीन मालिकाना हक सहित दी थी. उनके पिता का निधन 1980 में हो चुका है और वे इस संपत्ति पर उनके वारिस मालिक की हैसियत से रह रहे हैं.

पढ़ें : रॉबर्ट वाड्रा मामले में सुनवाई पूरी, कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित

बिजली व जलदाय विभाग ने भी उनके पिता के नाम से बिजली व पानी का कनेक्शन दिया था, लेकिन अब प्रतिवादी (Civil Court on Jai Mahal Controversy) उनके मकान व संपत्ति पर कब्जा और बेदखल करना चाहते हैं. प्रतिवादियों ने उन्हें संपत्ति से बेदखल करने का प्रयास भी किया. इसलिए प्रतिवादियों को अस्थाई निषेधाज्ञा से पाबंद किया जाए कि वे वादियों को संपत्ति के उपयोग, उपभोग, जबरन प्रवेश व तोडफोड की कार्रवाई नहीं करें.

जवाब में पूर्व राजपरिवार का कहना था कि महाराजा मानसिंह ने विवादित संपत्ति पर दो कमरे ही रहने के लिए दिए थे. श्री बक्स सिंह के सेवाकाल से अवकाश लेने पर उनका जमीन पर लाइसेंस खत्म हो गया था. ऐसे में वादी जमीन पर अतिक्रमी की हैसियत से रह रहे थे.

मानसिंह ने अपने जीवनकाल में ही यह जमीन अपने बेटे जगत सिंह को 5 मई 1985 को दे दी थी और तब से वे ही इस जमीन पर काबिज रहे. बाद में जगतसिंह ने इस जमीन को ताज ग्रुप को लीज पर दिया था. ऐसे में वादियों का दावा खारिज किया जाए. कोर्ट ने दोनों पक्षों की बहस सुनकर पूर्व राजपरिवार व अन्य के खिलाफ दायर दावे को खारिज कर दिया.

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