जयपुर. पति-पत्नी के बीच विश्वास की डोर को मजबूती प्रदान करने वाला व्रत करवा चौथ, इस बार 17 अक्टूबर को मनाया जाएगा. वहीं चंद्रोदय रात 8 बजकर 27 मिनिट पर दिखेगा. पंडितों के मुताबिक इस साल करवा चौथ का व्रत बेहद खास रहेगा. इस बार रोहणी नक्षत्र में करवाचौथ व्रत संपन्न होने जा रहा है, जो बेहद मंगलकारी माना गया है.
बता दें कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को महिलाएं यह व्रत अपने पति के उत्तम स्वास्थ्य, दीर्घायु और जन्म-जन्मांतर तक पति का साथ प्राप्त करने के लिए करती हैं. पति-पत्नी के अटूट बंधन का यह व्रत हर विवाहित नारी के मन को एक सुखद अनुभूति के एहसास से सरोवर कर देता है.
क्यों किया जाता है करवा चौथ व्रत
करवा चौथ दो शब्दों से मिलकर बना है. करवा यानी की मिट्टी का बर्तन और चौथ यानी गणेश जी की प्रिय तिथि चतुर्थी. प्रेम, त्याग और विश्वास के इस अनोखे महापर्व पर मिट्टी के बर्तन यानी करवे की पूजा का विशेष महत्व है, जिससे रात में चंद्र देव को जल अर्पण किया जाता है.
वहीं करवा चौथ व्रत की पूजन सामाग्री में विशेष रूप से मिट्टी का टोंटीदार करवा और ढ़क्कन का महत्व होता है. इस दिन महिलाएं सोलह शृंगार कर विशेष रूप से सजती है. करवाचौथ के दिन महिलाएं मुख्यत लाल रंग का कपड़ा पहनती हैं.
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धर्म ग्रंथों में मिलता है वर्णन
रामचरितमानस के लंका कांड के अनुसार एक पक्ष यह भी है कि जो पति-पत्नी किसी कारणवश एक दूसरे से बिछड़ जाते हैं, चंद्रमा की किरणें उन्हें अधिक कष्ट पहुंचाती है. इसलिए करवा चौथ की पूजा कर महिलाएं यह कामना करती है कि किसी भी कारण से उन्हें अपने पति का वियोग न सहना पड़े. महाभारत में भी एक और प्रसंग है, जिसके अनुसार पांडवों पर आए संकट को दूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण के सुझाव से द्रौपदी ने भी करवा चौथ का व्रत किया था. इसके बाद ही पांडव युद्ध में विजयी रहें.
वहीं बंशीधर पंचाग के संपादक ज्योतिष दामोदर प्रसाद शर्मा ने बताया कि करवा चौथ पर गणेश और चौथ माता की पूजा की जाती है. पूजा के बाद चंद्रमा को जल का अर्घ देकर चौथ माता की कथा सुनकर व्रत को खोला जाता है. इस दिन महिलाएं उध्यापन करवाती हैं, जिसमें 13 सुहागिन महिलाओं को भोजन भी करवाया जाता है.