जयपुर. 15वें जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल का चौथा दिन फिल्म अभिनेता इरफान की मखमली यादों से सराबोर रहा. इसी दिन समारोह में ग्लोबल फिल्म टूरिज़्म समिट भी आयोजित किया गया था. जयपुर में फिल्म सिटी की आवश्यकता पर भी चर्चा की गई. इस बीच प्लेबैक सिंगर रवीन्द्र उपाध्याय के दिलकश गीतों का (Playback Singer Ravindra Upadhyay in Jiff 2023) फिल्म प्रेमियों ने जमकर लुत्फ उठाया. इसके अलावा जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के सहयोग से ईरानी संगीत का विशेष कार्यक्रम भी फिल्म प्रेमियों के आकर्षण का केन्द्र रहा.
चौथे दिन मानसिक योग पर आधारित छह ऐसी फिल्मों की स्क्रीनिंग की गई जिन्हें देखकर लोगों को सुकून की अनुभूति हुई. जिफ के फाउन्डर डायरेक्टर हनु रोज ने बताया कि ऐसा दुनिया में पहली बार हुआ है, जब फिल्मों के जरिए मानसिक योग की अनुभूति करवाई गई हो. इस दौरान इरफान खान के पुत्र ने पिता के साथ बिताए दिनों को याद करते हुए बताया कि मैं पापा की पतंग फाड़ देता था, लेकिन वो फिर भी उसे उड़ा देते थे.
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जिफ में सोमवार का दिन फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज की अभिनेता इरफान खान के साथ जुड़े अनुभवों पर लिखी किताब के साथ हुई. उन पर लिखी गई किताब ‘और कुछ पन्ने अधूरे रह गए...इऱफान’ के विमोचन के बाद (Book written on Irrfan Khan released) उस पर चर्चा भी हुई. इस चर्चा को फिल्म स्क्रिप्ट राइटर रामकुमार सिंह ने मॉर्ड्रेट करते हुए इरफान के बेटे अभिनेता बाबिल खान, इरफान के गुरु डॉ. रवि चतुर्वेदी और अजय ब्रह्मात्मज से विभिन्न पहलुओं पर बातचीत की.
चर्चा के दौरान बाबिल खान ने कहा कि इरफान पिता कम दोस्त ज्यादा (Son Babil Shares Memories) थे. जो लोग कहते हैं कि वो अत्यन्त गंभीर थे, लेकिन मेरी नज़र में वो बेहद खुशमिजाज और ज़िंदादिल इंसान थे. हम लोग जब साथ होते थे तो खूब हंसते थे. किसी कार्यक्रम में पापा को कोई बात अच्छी नहीं लगती थी तो वो मुझे साइड में ले जाकर मजाक करने लग जाते थे. मुझे उनके साथ जयपुर आना सबसे अच्छा लगता था. क्योकि वो जब मुझे जयपुर अपने साथ लाते थे तब मैं उन्हें अपने सबसे करीब पाता था, क्योंकि मुंबई में तो काम की व्यवस्थाओं के चलते हमारे बीच दूरी ही रहती थी. पापा को पतंगबाज़ी का बड़ा शौक था. इस बात का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि मैं उनकी पतंग फाड़ देता था, लेकिन वो फटी पतंग को भी उड़ा देते थे. बाबिल खान ने कहा उनका इनर वर्ल्ड बड़ा ही स्ट्रांग था. वो अपनी आंखों अथवा शब्दों से अभिनय करते थे. अभिनय उनके भीतर से निकलता था.
दस दिन में ही बिक गईं 1000 ई-बुक्स
अजय ब्रह्मात्मज ने कहा कि इस पुस्तक को छपे दो साल से ज्यादा समय हो गया है, लेकिन मैनें इसे कभी सार्वजनिक नहीं किया. आज पहली मर्तबा इसकी प्रतियों को आपके समक्ष लेकर आया हूं. दो साल पहले इसे ई-बुक के रूप में अमेजान पर अपलोड किया गया था. तब दस दिन के भीतर ही इसकी 1 हजार प्रतियां बिक गईं. अजय ब्रह्मात्मज ने कहा कि इस पुस्तक में इरफान से जुड़ी 36 हस्तियों के संस्मरण हैं जिन्होंने अपने-अपने हिस्से का इरफान इसमें शेयर किया है. इसमें इरफान की भाषा है, वो कैसे सोचते थे, कैसे बोलते थे. अजय ने कहा कि एक्टर क्या होता है, ये इरफान ने अच्छी तरह समझ लिया था. वो कहते थे मुझे खुद में कुछ भी बदलाव नहीं करना है. अपनी ही आवाज़ रखनी है. अपना ही चेहरा रखना है. मैं जैसा हूं वैसा ही रहूंगा और अपने मिजाज के साथ एक्ट करूंगा.
इरफान को मैनें सबसे ज्यादा डांट पिलाई थी
इरफान के गुरु डॉ. रवि चतुर्वेदी ने कहा कि इरफान उनके उन चुनिंदा शिष्यों में से थे जिन्हें मैनें सबसे ज्यादा डांट पिलाई. वो नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से निकलने के बाद तक मुझसे डांट खाते थे. मुंबई में गोविन्द निहलानी सहित कई बड़े फिल्म निर्माता-निर्देशकों से मेरे गहरे संबंध थे और इरफान इस बात को अच्छी तरह जानते थे. उन्होंने कई बार मुझसे खुद को प्रोड्यूस करने के लिए कहा, लेकिन मैं उन्हें साफ मना कर देता था. मैं कहता था कि मेरे कहने से तुम्हारी प्रतिभा का सही आंकलन नहीं हो पाएगा. मैनें उन्हें उनके एक बेहतरीन अभिनय की वीडियो कैसेट उन्हें दी और कहा जिससे भी मिलो कोशिश करके उसे ये अवश्य दिखा देना. यही तुम्हें काम दिलाएगी और हुआ भी यही. बातचीत के बाद रामकुमार सिंह, अजय ब्रह्मात्ज, बाबिल खान और डॉ. रवि चतुर्वेदी ने ‘और कुछ पन्ने अधूर रहे गए....इरफान’ पुस्तक का विमोचन किया.
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जिफ ने किया ईरानी संगीत का प्रमोशन
जिफ की ओर से ईरानी संगीत का प्रमोशन किया गया. इस मौके पर ईरानी संगीत पर अमेरिका में रहकर काम रहीं फिल्मकार मरियम पीरबंद का ईरानी में हिजाब के खिलाफ संघर्ष कर रही महिलाओं की मनोदशा पर आधारित तैयार संगीत को बजाया गया. उल्लेखनीय है कि जिफ फिल्मों की स्क्रीनिंग के साथ साथ फिल्मों और लीक से हटकर संगीत के प्रमोशन के लिए भी काम कर रहा है.
गूंजे रवीन्द्र उपाध्याय के दिलकश गीत
समारोह के दौरान जाने-माने बॉलीवुड पार्श्व गायक रवीन्द्र उपाध्याय की म्यूजिकल इवनिंग भी आकर्षण का केन्द्र रही. रवीन्द्र ने जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में आने वाले देसी-विदेशी मेहमानों को ‘पधारो म्हारे देस’ सुना कर दिल जीत लिया. आवाज का जादू बिखेरते हुए रविंद्र उपाध्याय ने स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर को याद करते हुए ‘सोलाह बरस की बाली उमर का 'सलाम’ को अपने ही अंदाज में सुनाया. यसुदास के गाए चर्चित गीत ‘बड़े अच्छे लगते हैं’ और जगजीत सिंह की ग़ज़ल ‘बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी. सभी श्रोताओं ने रविंद्र उपाध्याय के साथ आवाज से आवाज मिला दी. प्रोग्राम के अंत में हनुरोज ने सभी श्रोताओं को बताया कि कैसे लैपटॉप पर चलती उंगलियों ने ये जिफ का संसार बनाया, लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया. उन्होंने बताया कि मैं कछुए की चाल से चला पर अपनी मंजिल हासिल कर ही ली, पर अभी सफ़र बाकी है.