जयपुर. राजस्थान का अन्नदाता इन दिनों हैरान और परेशान है. इस बार किसानों को दोहरी मार लग रही है. राम रूठा जो रूठा राज भी रूठ गया. पहले आसमान से बरसी आफत ने किसानों के सपनों की खेत में खड़ी फसल को नष्ट कर दिया. इसके बाद रही सही कसर केंद्र और राज्य सरकारों की किसानों के प्रति उदासीन ने उनकी आंखों से आंशू निकाल दिए हैं. उपज के दाम नहीं मिलने से अब किसानों ने विरोध का अलग ही तरीका निकाला है. प्रदेश में समर्थन मूल्य की कम में हो रही खरीद से नाराज कई गांव के किसानों ने फसल को मंडी में नहीं ले जाने का फैसला किया है. क्या हैं किसानों के आंशू के कारण ? क्यों अन्नदाता परेशान, इसके बारे में Etv भारत ने किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट से खास बात की और सरसों के एक साल में 3000 हजार से गिरे दामों पर खुल कर बात की.
एक साल में 3 हजार गिरे सरसों के दामः किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि सरसों की बुवाई बंपर हुई. लेकिन प्रकृति की मार के कारण उसकी पैदावार 50 फीसदी नष्ट हो गई. इसके बाद रही-सही कमर सरकार की नीतियों ने तोड़ दी. जाट ने कहा कि सरसों गत वर्ष 7444 रुपए प्रति क्विंटल के दामों से खरीदी गई थी. उस सरसों का आज 4500 दाम आ गया. एक क्विंटल पर एक साल में 3000 रुपए की गिरावट यह साधारण घटना नहीं है. यह अनहोनी घटना है और इतना ही नहीं जो सरसों भारत सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की परिधि में रखी. उसके 4550 रुपए दाम निर्धारित किए वह भी किसान को नहीं मिल रहे हैं. आज किसान को अपनी सरसों न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों में बेचनी पड़ रही है, तो किसान जाएं तो कहां जाएं ?
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सरसों के लिए शुरू किया सत्याग्रहः रामपाल जाट ने कहा कि जब राजस्थान विधानसभा सत्र चल रहा था. उस दौरान 1 दिन का धरना दिया गया था. उस दिन यह भी तय किया था कि किसानों की खरीद एमएसपी हो इसको लेकर सरसों सत्यग्रह शुरू किया जाए. आयात निर्यात का विषय जिसको भारत सरकार तय करती है. ऐसे में केंद सरकार तक अपनी बात पहुंचाने दिल्ली के जंतर-मंतर पर आठ राज्यों के 101 किसानों ने 5 घंटे तक उपवास किया. उसके उपरांत भी सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंगी. उस समय पर किसानों ने प्रस्ताव लिया कि अब हमारी सरसों एमएसपी से कम दामों में नहीं बेचेंगे और देश भर के किसान से आग्रह किया कि वह भी अपनी सरसों न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम नहीं बेचे. जाट ने कहा उस दिन के बाद से लगातार सरसों सत्याग्रह चल रहा है. कई जिलों में किसानों ने अपनी फसल को मंडी बिकने के आने नहीं दिया.
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महापंचायत की दो मांगः रामपाल जाट ने कहा कि हम चाहेंगे कि भारत सरकार दो काम कर दे. पहला काम पाम आयल को जो खाद्य तेल है ही नहीं उसे पाम आयल को खाद्य तेल श्रेणी से हटा दे. दूसरा काम पाम आयल पर आयात शुल्क 100% लगा दे क्योंकि 2016 में 80% तक 2017 से लेकर 2021 तक 45% था. सरकार ने 2021 के अंतिम तिमाही में पाम ऑयल को टैक्स फ्री कर दिया. जिसके बाद से पाम आयल की तेजी से देश में खपत होने लगी, जिसकी वजह से सरसों के दाम धड़ाम से नीचे गिर गए. जाट ने कहा कि पाम ऑयल पर 100 प्रतिशत टैक्स जरूरी है ताकि घेरलू सरसों के बाजार में उचित दाम मिल सकें.
50 प्रतिशत सरसों की पैदावारः रामपाल जाट ने बताया कि राजस्थान देश में सरसों के उत्पादन में सबसे ऊपर है. पूरे देश में जितनी सरसों की पैदा होती है. उसका आधा हिस्सा यानी 50 फीसदी तक राजस्थान अकेला उत्पादन करता है. जब हम खरीद की बात करते हैं तो राजस्थान खरीद के मामले में चौथे नंबर पर है. रामपाल जाट ने कहा कि सबसे ज्यादा सरसों की पैदा करने वाले राज्य के किसानों खरीद सबसे कम हो रही है. एमएसपी के दामों पर सरसों की खरीद में राजस्थान चौथे पर है. उसका कारण राजस्थान सरकार की उदासीनता. जिसका खामियाजा प्रदेश के अन्नदाता को उठाना पड़ता है.
2021-22 में सरसों उपज और खरीद की स्थतिः
- राजस्थान में सरसों की उपज 45.9 फीसदी , जबकि राज्य सरकार खरीद रही है, 5 हजार 931 मैट्रिक टन.
- मध्यप्रदेश में सरसों की उपज 12.7 फीसदी, जबकि राज्य सरकार खरीद रही है, 12 हजार 473 मैट्रिक टन.
- हरियाणा में सरसों की उपज 12.5 फीसदी, जबकि राज्य सरकार खरीद रही है, 1 करोड़ 58 लाख 5 हजार मैट्रिक टन.
- गुजरात में सरसों की उपज 4 फीसदी, जबकि राज्य सरकार खरीद रही है. 15 लाख 885 मैट्रिक टन.