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जयपुर के बस्सी में धूमधाम से मनाई गई गोपाष्टमी का पर्व

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Published : Nov 4, 2019, 8:36 PM IST

जयपुर के बस्सी उपखण्ड क्षेत्र में सोमवार को गोपाष्ठमी का पर्व धूमधाम से मनाया गया. इस दौरान महिलाओं और युवतियों ने मंगल गीत गाकर गाय का पूजन किया. साथ ही गाय के पूछ के हाथ लगाकर की वैतरणी नदी पार करने की कामना.

बस्सी की खबर, गोपाष्ठमी पर्व मनाया गया, bassi gopashtami festival celebrated

बस्सी (जयपुर). राजधानी के बस्सी उपखण्ड क्षेत्र में हर वर्ष के भांति इस वर्ष भी सोमवार को गोपाष्ठमी का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया गया. इस पर्व कर कार्तिक स्नान करने वाली महिलाएं और युवतियों ने सबसे पहले गोमाता के पैरों को शुद्ध जल से स्नान कराकर सुंदर चुनड़ी पहनाई, गाय के पैरों और सींगों में महंद, आंखों में काजल लगाकर सुन्दर सुषोभित श्रृंगार किया. साथ ही मंगल गीत गाकर हरा चारा खिलाया.

जयपुर के बस्सी में मनाई गई गोपाष्टमी

जाने वैतरणी नदी का गाय से संबंध

गरुड़ पुराण के अनुसार 21 मुख्य नरक हैं, जिसमें वैतरणी नदी सबसे बड़ा नरक माना जाता है. वैतरणी नदी नरक से बचने के लिए गाय का दान किया जाता है या फिर कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि के दिन गोपाष्ठमी के रूप में मनाया जाता है. गाय की पूजा के बाद गाय की पूछ के हाथ लगाकर वैतरणी नदी पार करने की कामना करते हैं.

पढ़ेंः मंत्री यादव ने भाजपा को बताया डमरू वाली पार्टी, कार्यकर्ताओं को सतर्क रहने की दी नसीहत

गोपाष्टमी का थी दिन

जब कृष्ण भगवान ने अपने जीवन के छठे वर्ष में कदम रखा. तब वो अपनी यशोदा मैया से जिद्द करने लगे कि वो अब बड़े हो गये हैं और बछड़े को चराने के साथ वो अब गाय चराएंगे. उनके बालहठ के आगे मैया को हार माननी ही पड़ी और मैया ने उन्हें अपने पिता नन्द बाबा के पास इसकी आज्ञा लेने भेज दिया. भगवान कृष्ण ने नन्द बाबा के सामने जिद्द रख दी कि अब वे गैया ही चरायेंगे. नन्द बाबा गैया चराने के मुहूर्त के लिए, शांडिल्य ऋषि के पास पहुंचे, बड़े अचरज में आकर ऋषि ने कहा कि अभी इसी समय के अलावा कोई शेष मुहूर्त नहीं हैं, अगले बरस तक. शायद भगवान की इच्छा के आगे कोई मुहूर्त क्या था और वो दिन गोपाष्टमी का था.

कान्हा को किया तैयार

जब श्री कृष्ण ने गैया चराना आरंभ किया. उस दिन यशोदा माता ने अपने कान्हा को तैयार किया. मोर मुकुट लगाया, पैरों में घुंघरू पहनाए और सुंदर सी पादुका पहनने दी, लेकिन कान्हा ने वे पादुकाए नहीं पहनी. उन्होंने मैया से कहा अगर तुम इन सभी गैया को चरण पादुका पैरों में बांधोगी तब ही मैं यह पहनूंगा. मैया ये देख कर भावुक हो जाती हैं और कान्हा बिना पैरों में कुछ पहने अपनी गैया को चराने के लिये ले जाते. गौ चरण करने के कारण ही, श्री कृष्णा को गोपाल या गोविन्द के नाम से भी जाना जाता है.

बस्सी (जयपुर). राजधानी के बस्सी उपखण्ड क्षेत्र में हर वर्ष के भांति इस वर्ष भी सोमवार को गोपाष्ठमी का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया गया. इस पर्व कर कार्तिक स्नान करने वाली महिलाएं और युवतियों ने सबसे पहले गोमाता के पैरों को शुद्ध जल से स्नान कराकर सुंदर चुनड़ी पहनाई, गाय के पैरों और सींगों में महंद, आंखों में काजल लगाकर सुन्दर सुषोभित श्रृंगार किया. साथ ही मंगल गीत गाकर हरा चारा खिलाया.

जयपुर के बस्सी में मनाई गई गोपाष्टमी

जाने वैतरणी नदी का गाय से संबंध

गरुड़ पुराण के अनुसार 21 मुख्य नरक हैं, जिसमें वैतरणी नदी सबसे बड़ा नरक माना जाता है. वैतरणी नदी नरक से बचने के लिए गाय का दान किया जाता है या फिर कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि के दिन गोपाष्ठमी के रूप में मनाया जाता है. गाय की पूजा के बाद गाय की पूछ के हाथ लगाकर वैतरणी नदी पार करने की कामना करते हैं.

पढ़ेंः मंत्री यादव ने भाजपा को बताया डमरू वाली पार्टी, कार्यकर्ताओं को सतर्क रहने की दी नसीहत

गोपाष्टमी का थी दिन

जब कृष्ण भगवान ने अपने जीवन के छठे वर्ष में कदम रखा. तब वो अपनी यशोदा मैया से जिद्द करने लगे कि वो अब बड़े हो गये हैं और बछड़े को चराने के साथ वो अब गाय चराएंगे. उनके बालहठ के आगे मैया को हार माननी ही पड़ी और मैया ने उन्हें अपने पिता नन्द बाबा के पास इसकी आज्ञा लेने भेज दिया. भगवान कृष्ण ने नन्द बाबा के सामने जिद्द रख दी कि अब वे गैया ही चरायेंगे. नन्द बाबा गैया चराने के मुहूर्त के लिए, शांडिल्य ऋषि के पास पहुंचे, बड़े अचरज में आकर ऋषि ने कहा कि अभी इसी समय के अलावा कोई शेष मुहूर्त नहीं हैं, अगले बरस तक. शायद भगवान की इच्छा के आगे कोई मुहूर्त क्या था और वो दिन गोपाष्टमी का था.

कान्हा को किया तैयार

जब श्री कृष्ण ने गैया चराना आरंभ किया. उस दिन यशोदा माता ने अपने कान्हा को तैयार किया. मोर मुकुट लगाया, पैरों में घुंघरू पहनाए और सुंदर सी पादुका पहनने दी, लेकिन कान्हा ने वे पादुकाए नहीं पहनी. उन्होंने मैया से कहा अगर तुम इन सभी गैया को चरण पादुका पैरों में बांधोगी तब ही मैं यह पहनूंगा. मैया ये देख कर भावुक हो जाती हैं और कान्हा बिना पैरों में कुछ पहने अपनी गैया को चराने के लिये ले जाते. गौ चरण करने के कारण ही, श्री कृष्णा को गोपाल या गोविन्द के नाम से भी जाना जाता है.

Intro:गोपाष्ठमी का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया गया

कार्तिक स्नान करने वाली महिलाओं व युवतियों ने मंगल गीत गाकर की पूजन

गाय को उड़ाई नई चुनड़ी

गाय के पहरो व सींगों में लगाई महन्दी , आंखों में काजल

गाय के पूछ के हाथ लगाकर की वैतरणी नदी पार करने की कामनाBody:बस्सी ( जयपुर ) राजधानी जयपुर के बस्सी उपखण्ड क्षेत्र में हर वर्ष के भांति इस वर्ष भी सोमवार को गोपाष्ठमी का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। कार्तिक स्नान करने वाली महिलाएं व युवतियों ने सबसे पहले गोमाता के पैरों को शुद्ध जल से स्नान कराकर सुंदर चुनड़ी पहनाई , गाय के पैरों व सींगों में महंदी , आँखों मे काजल लगाकर सुन्दर सुषोभित श्रृंगार किया । मंगल गीत गाकर हरा चारा खिलाया। और गाय के परिक्रमा लगाकर गाय की पूछ के हाथ लगाकर वैतरणी नदी पार करने की कामना की

जाने वैतरणी नदी का गाय से सम्बंध

गरुड़ पुराण के अनुसार 21 मुख्य नरक हैं । जिसमे वैतरणी नदी सबसे बड़ा नरक माना जाता हैं । वैतरणी नदी नरक से बचने के या तो गाय का दान किया जाता हैं या फिर कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि के दिन गोपाष्ठमी के रूप में मनाया जाता हैं । गाय की पूजा के बाद गाय की पूछ के हाथ लगाकर वैतरणी नदी पार करने की कामना करते हैं।

ये है गोपाष्टमी पर्व से जुडी कुछ पौराणिक कथाएं

गाय का दूध, गाय का घी, दही, छांछ यहाँ तक कि मूत्र भी मनुष्य जाति के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं। गोपाष्टमी त्योहार हमें बताता हैं कि हम सभी अपने पालन के लिए गाय पर निर्भर करते हैं इसलिए वो हमारे लिए पूज्यनीय हैं और हिन्दू संस्कृति, गाय को माँ का दर्जा देती हैं।


ये है पहली कथा

जब कृष्ण भगवान ने अपने जीवन के छठे वर्ष में कदम रखा। तब वो अपनी यशोदा मैया से जिद्द करने लगे कि वो अब बड़े हो गये हैं और बछड़े को चराने के साथ वो अब गाय चराएंगे। उनके बालहठ के आगे मैया को हार माननी ही पड़ी और मैया ने उन्हें अपने पिता नन्द बाबा के पास इसकी आज्ञा लेने भेज दिया।भगवान कृष्ण ने नन्द बाबा के सामने जिद्द रख दी कि अब वे गैया ही चरायेंगे। नन्द बाबा गैया चराने के मुहूर्त के लिए, शांडिल्य ऋषि के पास पहुँचे, बड़े अचरज में आकर ऋषि ने कहा कि, अभी इसी समय के आलावा कोई शेष मुहूर्त नहीं हैं अगले बरस तक।शायद भगवान की इच्छा के आगे कोई मुहूर्त क्या था। वो दिन गोपाष्टमी का था। जब श्री कृष्ण ने गैया चराना आरंभ किया। उस दिन यशोदा माता ने अपने कान्हा को बहुत सुन्दर तैयार किया। मोर मुकुट लगाया, पैरों में घुंघरू पहनाये और सुंदर सी पादुका पहनने दी लेकिन कान्हा ने वे पादुकायें नहीं पहनी। उन्होंने मैया से कहा अगर तुम इन सभी गैया को चरण पादुका पैरों में बांधोगी तब ही मैं यह पहनूंगा। मैया ये देख कर भावुक हो जाती हैं और कान्हा बिना पैरों में कुछ पहने अपनी गैया को चराने के लिये ले जाते। गौ चरण करने के कारण ही, श्री कृष्णा को गोपाल या गोविन्द के नाम से भी जाना जाता है।

पीटूसी :- पुरुषोत्तम शर्मा , संवाददाता Etv भारतConclusion:
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