जयपुर. राजस्थान में विधानसभा के लिए चुनावी साल में प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी ने मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया की जगह पर नये चेहरे की नियुक्ति कर दी है. चित्तौड़गढ़ सांसद सीपी जोशी की इस नियुक्ति के मायनों के बीच सतीश पूनिया की चुनाव से करीब नौ महीने पहले विदाई को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का दौर जारी है. कहीं जाति के समीकरण तलाशे जा रहे हैं, तो कहीं नाकामयाबियों की फेहरिस्त पढ़ी जा रही है. इन सबके बीच ईटीवी भारत पर आप बिंदुवार समझिये की कैसा रहा बतौर प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया का कार्यकाल और किन मुद्दों पर पार्टी के अध्यक्ष के रूप में पूनिया का कार्यकाल कसौटी पर रहा. पूनिया को पद से हटाये जाने के पीछे आखिर क्या वजह हो सकती है.
ताजा मुद्दों पर प्रदर्शनः राजस्थान में इसी साल पेपर लीक, कानून व्यवस्था और शहीद की विधवाओं के साथ मारपीट जैसे मुद्दों को लेकर प्रदेश की गहलोत सरकार को घेरने की कोशिश की गई थी. सदन से लेकर सड़क तक इन मुद्दों पर सतीश पूनिया की अगुआई में प्रदर्शन की रणनीति तैयार की गई थी. हालात यह रहे कि रणनीति के मुताबिक इन प्रदर्शनों का असर जनता के बीच नहीं पहुंच सका. हाल में जब इस हफ्ते की शुरुआत में सतीश पूनिया जन आक्रोश सभाओं के ऐलान के बीच संगठन की अहम बैठक के लिहाज से दिल्ली पहुंचे, तो इस बात के संकेत मिलने लगे थे कि राजस्थान के संगठन में चुनाव साल के दौरान आलाकमान कोई बड़ी तब्दीली कर सकता है. बीते दिनों जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भीलवाड़ा के जहाजपुर में जनसभा के दौरान सीपी जोशी को जिस अंदाज में संबोधित किया, वह भी सियासी हलकों में चर्चा का बिंदु रहा.
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राजे से रार और गुटबाजीः इसी महीने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने सालासर में अपने जन्मदिन से पहले अभिनंदन का कार्यक्रम रखा था. कार्यक्रम के दिन ही जयपुर में सतीश पूनिया ने भी प्रदेश सरकार को घेरने के मकसद से एक बड़ा प्रदर्शन आयोजित करवाया था. दोनों कार्यक्रमों के वक्त पर पूनिया-राजे गुट के बीच की दूरियों को लेकर कई खबरें बनी थी. ऐसे में आखिरी मौके पर पार्टी के प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह ने सालासर जाकर दिल्ली से राजस्थान तक एक नीति एक सोच का पैगाम दिया. इस कार्यक्रम में सतीश पूनिया की गैरमौजूदगी चर्चा का मुद्दा बनी रही.
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राजे को नजरअंदाज किया जाना मुमकिन नहींः इससे पहले पूनिया के प्रदेशाध्यक्ष पद पर ताजपोशी के साथ ही भाजपा के प्रदेश मुख्यालय से वसुंधरा राजे के चेहरे को हटाया जाना और इसी साल की शुरुआत में राजे की पोस्टर पर वापसी ने भी प्रदेश संगठन में बदलती सोच और समीकरण का संदेश दिया था. दोनों नेताओं के बीच गुटबाजी का पैगाम तब भी आया, जब बीते साल सितंबर में सतीश पूनिया ने पोकरण से रामदेवरा तक पैदल यात्रा निकालने का संदेश दिया. अंदरखाने राजे गुट के विरोध के बाद अमित शाह के आगामी दौरे का हवाला देकर आखिरी मौके पर इस यात्रा को रद्द करवा दिया गया. आलाकमान की नजर में राजस्थान में वसुंधरा राजे जैसे कद्दावर चेहरे को नजरअंदाज किया जाना किसी भी लिहाज से मुमकिन नहीं था.
एक के बाद एक उपचुनावों में हारः भारतीय जनता पार्टी के लिए राजस्थान में हुए उपचुनाव भी किसी चुनौती से कम नहीं थे. लोकसभा चुनाव के ठीक बाद हुए उपचुनाव में नागौर के खींवसर की सीट को भाजपा ने आरएलपी के गठबंधन से जीत लिया था, पर मंडावा की सीट को भाजपा ने गंवा दिया था. उपचुनावों में सीटों के गंवाने का यह सिलसिला यही नहीं रुका, इसके बाद भी क्रम जारी रहा. राजसमंद ,सहाड़ा ,सुजानगढ़ , वल्लभनगर , धरियावद और सरदारशहर में हुई वोटिंग में बीजेपी को किरण माहेश्वरी की बेटी दीप्ति माहेश्वरी ने बीजेपी के बैनर पर जीत हासिल की, पर यहां वोटों का अंतर कम हुआ. अन्य दो सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा. वल्लभनगर में भाजपा के प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई.धरियावद में कमल के निशान पर खड़े उम्मीदवार को तीसरा स्थान मिला. इसी तरह से निकाय चुनावों और पंचायत चुनाव में मिले नतीजे भी भाजपा की आशा के अनुरूप नहीं रहे. राज्यसभा चुनाव में चार में से तीन सीट कांग्रेस जीती, वहीं भाजपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी सुभाष चंद्रा को हार का सामना करना पड़ा. इन चुनावों में भाजपा की विधायक शोभारानी कुशवाह ने क्रॉस वोटिंग की थी और पूनिया अंदरखाने हुई बगावत की भनक तक नहीं लगा सके.
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हनुमान बेनीवाल का तोड़ नहीं निकाल सके पूनियाः सतीश पूनिया की जाति भी उनके प्रदेशाध्यक्ष पद पर ताजपोशी का प्रमुख कारण रही थी. राजस्थान में तब भाजपा का समर्थन कर रहे नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी विपक्ष के लिए बड़ी चुनौती थी. ऐसे में पश्चिमी राजस्थान में पार्टी से बिखर रहे जाट वोट बैंक को भी फिर से बांधने के मकसद से पूनिया को लाया गया था. पूनिया की एंट्री के साथ ही आरएलपी के साथ भाजपा की तल्खियां और बढ़ गईं. इसकी वजह से कई उपचुनावों में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था . ऐसे में फ्लोर मैनेजमेंट में मिली विफलता भी आलाकमान की नजर में रही और पूनिया को रुख्सत किया गया.
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पूनिया का दिलचस्प सियासी सफरः भाजपा के निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया आमेर से विधायक हैं और बीता चुनाव करीब 13 हजार वोटों से उन्होंने जीता था. यह तथ्य दिलचस्प है कि साल 2013 में भी पूनिया आमेर से बीजेपी के प्रत्याशी थे, उन्हें तब किरोड़ीलाल मीणा की पार्टी एनपीपी के प्रत्याशी नवीन पिलानिया से महज 329 वोटों से शिकस्त का सामना करना पड़ा था. भाजपा की ऐतिहासिक जीत में पूनिया की हार के चर्चे पूरे प्रदेश में रहे. इससे पहले भी साल 2000 में सतीश पूनिया ने सादुलपुर से उपचुनाव लड़ा था. जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. इसके पहले वे भारतीय जनता पार्टी राजस्थान में साल 2004 से 2006 तक प्रदेश महामंत्री और 2006 से 2007 तक प्रदेश मोर्चा प्रभारी के रूप में काम करते रहे. पूनिया साल 2004 से 2014 तक चार बार भारतीय जनता पार्टी में प्रदेश महामंत्री रह चुके है. साल 2011 में उन्होंने नेता लालकृष्ण आडवाणी की जन चेतना यात्रा के संयोजक की भूमिका निभाई थी. पूनिया ने छात्र राजनीति से लेकर युवा मोर्चे तक सक्रिय भूमिकाएं निभाई. उन्हें संघ के करीबी नेताओं में शुमार किया जाता रहा है. यहां तक की साल 2022 में उन्हें बतौर प्रदेशाध्यक्ष कार्यकाल की दूसरी पारी के रूप में मिले एक्सटेंशन के दौरान भी कसौटी पर रखा गया था.