जयपुर. राजस्थान के एकीकरण का श्रेय सरदार वल्लभभाई पटेल को दिया जाता है. राजस्थान का एकीकरण 7 चरणों में 18 मार्च, 1948 से शुरू होकर 1 नवंबर, 1956 को पूरा हुआ. इसमें 8 वर्ष 7 माह 14 दिन लगे. हालांकि, सरदार पटेल चाहते थे कि माउंट आबू गुजरात का हिस्सा बने और हुआ भी ऐसा ही. लेकिन वल्लभ भाई पटेल के निधन के बाद राज्य पुनर्गठन आयोग ने माउंट आबू को राजस्थान का हिस्सा (History of Mount Abu inclusion) बना.
लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती 31 अक्तूबर को मनाई जा रही है. इस दिन को भारत में राष्ट्रीय एकता दिवस के तौर पर मनाया जाता है. देश की आजादी में सरदार पटेल ने अभूतपूर्व योगदान दिया. सरदार वल्लभ भाई पटेल को लौह पुरुष कहा जाता है और उनकी जयंती को राष्ट्रीय एकता दिवस के तौर पर मनाया जाता है. आजाद भारत में पटेल को देश का पहला उप प्रधानमंत्री बनाया गया. ये पद गृहमंत्री के समान था. उन्हें कई और जिम्मेदारियां सौंपी गईं. सबसे बड़ी चुनौती देसी रियासतों का भारत में विलय था. छोटे बड़े राजाओं, नवाबों को भारत सरकार के अधीन करते हुए रजवाड़े खत्म करना कोई आसान काम नहीं था. लेकिन बिना किसी जंग के सरदार पटेल ने 562 रियासतों का भारत संघ में विलय कराया.
आजादी के समय राजस्थान में भी 19 बड़ी रियासत, 3 छोटी रियासत (ठिकाने) और 1 केंद्र शासित प्रदेश अजमेर-मेरवाड़ा था. राजस्थान के एकीकरण का श्रेय भी सरदार वल्लभभाई पटेल को दिया जाता है. राजस्थान का एकीकरण 7 चरणों में पूरा हुआ. हालांकि, 30 मार्च, 1949 को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने राजस्थान का उद्घाटन किया. तब जयपुर महाराजा सवाई मानसिंह को राज प्रमुख, उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह को महाराज प्रमुख, कोटा के भीम सिंह और जोधपुर के हनुवंत सिंह को वरिष्ठ राजप्रमुख का पद सौंपा गया.
हीरालाल शास्त्री को राज्य का प्रधानमंत्री बनाते हुए उनके नेतृत्व में मंत्रिमंडल बनाया गया (उस समय मुख्यमंत्री को राज्य प्रधानमंत्री कहा जाता था). मार्च, 1952 में राजस्थान विधानसभा अस्तित्व में आई, लेकिन राजस्थान की जनता ने रियासत काल में ही संसदीय लोकतंत्र का अनुभव कर लिया. 26 जनवरी 1950 को भारत सरकार की ओर से राजस्थान को राज्य की मान्यता दी गई और भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर राजधानी जयपुर को बनाया गया.
राजस्थान में रियासतों का विलय के दौरान माउंट आबू इससे अछूता रहा. सिरोही को मुंबई के अधीन कर दिया गया और माउंट आबू को अब के गुजरात में शामिल कर दिया गया. सरदार पटेल ने माउंट आबू को स्पष्ट तौर पर गुजरात का हिस्सा घोषित किया था, लेकिन कांग्रेस लीडर गोकुलभाई भट्ट जो खुद सिरोही के रहने वाले थे, उन्होंने माउंट आबू को राजस्थान का हिस्सा होने की वकालत की थी. सरदार पटेल की वजह से उस वक्त माउंट आबू को गुजरात में देना पड़ा, लेकिन सरदार पटेल के निधन के बाद जब राज्य पुनर्गठन आयोग बना, तो उसने राजस्थान और दूसरे राज्यों में जो बाउंड्री के प्रकरण थे, उनके निस्तारण का कार्य किया. आखिर में राजस्थान संघ, अजमेर-मेरवाड़ा, आबू-देलवाड़ा, सुनेल टप्पा और सिरोंज क्षेत्र राजस्थान का हिस्सा बने.